Floor v/s flour मंजिल बनाम आटा?

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By Akanksha JainPublished On: July 16, 2020

शशिकांत गुप्ते


आम तो आम है,कच्चा हो तो छील कर, चटनी बनाकर,खा जाओ या चाट जाओ,पकने पर
काट कर खाओ या चूस कर फैंक दो।
आम को जैसा चाहो वैसा यूज करो।
वर्तमान में बहस का मुद्दा है,आम आदमी बनाम संस्कारवान नेता।देश के हर एक प्रदेश में एक ही तरह की नोटंकी चल रही है।
गाजर लटकाकर प्रलोभन देना, बिकाऊ माल खरीदना और ऐसे तमाशबीन बनना जैसे ख़ासिल दूध के धुले यहीं हैं।
जब प्रांतों की निर्वाचित सरकारें षडयंत्र का शिकार हो कर कमजोर होती हैं, तब कुत्सित हँसी के साथ floor फ्लोर टेस्ट की नोटंकी शुरू हो जाती है।
जो भी होगा, वह अंग्रेजी के फ्लोर (floor) अर्थात मंजिल पर टेस्ट में होगा।फ्लोर का मतलब मंजिल होता है।आप तो अपनी मंजिल पर किसी भी तरह पहुँच ही जाओगे।साम दाम दंड और भेद यह चारो अनीतियों का सहारा लेकर अपनी मंजिल गांठ ही लेते हो इसमें तो आपको महारथ हासिल है।
बहरहालनाटक का समापन फ्लोर पर ही होगा।कैसे होगा, नाई नाई कितने बाल, ठहरो जजमान सब सामने आएंगे।
बाल से याद आया “बाल की खाल”वाली कहावत भी प्रचलित है।
आम आदमी के शरीर पर खाल तो श्रम करते हुए घीस गई है,और आम आदमी का मांस तो व्यवस्था ने जो शोषण करने की छूट प्रदत्त की है, उसी ने नोच लिया है।आम आदमी के शरीर की एक एक हड्डी बग़ैर किसी एक्स रे मशीन के गिन सकते हो।
यह सब देखने की फुर्सत आपके पास नहीं है।आपको आपकी गिनती पूरी करना है।आप सिर्फ फ्लोर टेस्ट में सफल होना चाहते हों।दूसरी ओर आम आदमी अपने पेट की आग बुझाने के लिए फ्लौर (flour) अर्थात आटे की जुगाड में परेशान है।आम आदमी के पास अपने परिवार के लिए आटा, दाल, तेल और नमक खरीद ने के लिए पैसे नहीं है।आप जनप्रतिनिधियों को खरीद ने की औकात रखते हो।आप तो भूखमरी,बेकारी,कुपोषण के सही आंकडों को छिपाते हो,और सत्ता प्राप्त करने के लिए बेशर्मी की सारी हदें पार कर जाते हो।
आप क्या गिनोगे आम आदमी हड्डियों को आप तो बहुमत जुटाने के लिए आंकड़े गिनते रहते हों?
आप को लॉक डाउन से कुछ फर्क पड़ता है।लॉक डाउन में भी आप पूर्ण रुप से लॉक डाउन के नियमों को तोड़ कर प्रसन्न चित्त होकर, शपथ लेकर, सत्ता की कुर्सी पर विराजमान हो जाते हो।
लॉक डाउन ने कितने लोग बेरोजगार हो गए।कितने परिवार बेघर हो गए,आपको इसकी तनिक भी चिंता नहीं है।आपको घर बैठे सारी सुविधाएं मुहैय्या हो जाती है।आपके पेट का पानी भी नहीं हिलता।
आम आदमी को तो आज भी चार से आठ कोस दूर से पानी भर कर लाना पड़ता है।
आप यह गणित लगाने में व्यस्त हो कि, बहुमत का आंकड़ा कैसे पूरा करें।यहाँ से वहां से जुगाड़ कैसे भी पूरा कर लोगे।
आप को एक छींक भी आ जाए तो दस डॉक्टर आपकी सेवा में लग जाएंगे।आम आदमी को दसों अस्पतालों में चक्कर काटने के बाद भी उपचार मिलना दूभर है?
आप की तारीफ करने के लिए सबसे बड़ा उदाहरण तो यह है कि, आम आदमी की शोषण से पिचकी हुई,काया के सामने, आप छप्पन इंच के सीने का नाप दिखाते हो।इसे आत्म स्तुति नहीं कहते यह तो बेबस,बेकस के सामने मुह चिड़ाना होता है।
आप की तारीफ के लिए शब्द भी कम पड़ेंगे।देश हर एक पेट्रोल पम्प पर विशाल होर्डिंग पर आपका हँसता हुआ नूरानी चेहरा देख कर बहुत प्रसन्नता होती है।यह विज्ञापन देखते हुए महंगा ईंधन जब वाहन भरा जाता है, तब वाहन चालक को महसूस होता है कि, कोई चौकीदार होकर भी उसकी हँसी किस तरह उड़ा रहा है।
इन सब बातों से आपको क्या लेना देना आप तो आप हैं।
आप सब floor फ्लोर पर एनकेनप्रकारेन बहुमत सिध्द कर ही लेते हो।आप आदमी के फ्लौर (flour) आटे से आपका कोई लेना देना नहीं।
आज यह राष्ट्रव्यापी बहस का मुद्दा होना चाहिए।