बिहार में चल रहे वोटर लिस्ट के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision) को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है। कोर्ट ने साफ किया कि वोटर लिस्ट का संशोधन जारी रहेगा और कहा कि हम संवैधानिक संस्था (चुनाव आयोग) के कार्य में हस्तक्षेप नहीं कर सकते। हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय ने इस प्रक्रिया की टाइमिंग (समयसीमा) और चुनाव आयोग के तौर-तरीकों पर सवाल जरूर उठाए हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने क्यों उठाए सवाल?
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और जॉयमाल्या बागची की पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए तीन अहम बिंदु सामने रखे:
1. भारत निर्वाचन आयोग की शक्तियां कितनी हैं और कहां तक हैं?
2. इन शक्तियों का प्रयोग किस प्रक्रिया से किया जाना चाहिए?
3. समय-सीमा बहुत ही छोटी है, जो नवंबर में समाप्त हो जाएगी जबकि चुनाव अधिसूचना उससे पहले ही जारी हो सकती है।
याचिकाकर्ता और बहस के मुख्य बिंदु
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने दलील दी कि
वोटर लिस्ट का पुनरीक्षण कानून में पहले से , लेकिन यह या तो संक्षिप्त रूप से होना चाहिए या पूरी सूची को नए सिरे से तैयार कर के।
चुनाव आयोग ने इस बार एक नया शब्द ‘Special Intensive गढ़ा है, जो प्रक्रिया को संशय में डालता है।
2003 में भी यह प्रक्रिया अपनाई गई थी, लेकिन तब मतदाता संख्या काफी कम थी। अभी बिहार में 7 करोड़ से अधिक मतदाता हैं और इतने बड़े पैमाने पर यह कार्य इतनी तेजी से करना उचित नहीं।
उन्होंने इस पर भी सवाल उठाया कि चुनाव आयोग ने राष्ट्रीय अभ्यास के तहत केवल बिहार से ही शुरुआत क्यों की?
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
न्यायालय ने कहा कि हम इसमें नहीं पड़ रहे हैं कि आयोग क्या कर रहा है, लेकिन जो सवाल उठे हैं, उनकी सुनवाई जरूरी है। इसलिए कोर्ट ने कहा कि मामला 28 जुलाई 2025 को दोबारा उपयुक्त पीठ में सूचीबद्ध किया जाएगा। इसके पहले 21 जुलाई तक आयोग को जवाब दाखिल करना होगा और 28 जुलाई से पहले याचिकाकर्ता प्रत्युत्तर देंगे









