जीवन की दौड़ में जीत हासिल करने की चाह है, तो तेज रफ्तार से भागना ही पड़ेगा। किसी को दोष देकर बच निकलना, मैं मानता हूँ कि खुद से भागना है। जीवन में आखिर कब तक आप खुद से भागेंगे? कई मोड़ ऐसे आएँगे, जहाँ आपको खुद को साबित करने की जरुरत पड़ेगी। यहाँ जो सफल हुए, तो दुनिया आपकी मुट्ठी में होगी, और यहाँ बहानों की लिस्ट उड़ेली, तो समझिए जीत से पहले ही आप खुद अपनी हार तय कर चुके हैं, और यकीन मानिए, इस मोड़ पर आपकी हार ही होगी।
अक्सर देखने में आता है कि असफलता का दोष, लोग अपनी कमियों पर मढ़ते रहते हैं, जिसका कोई तुक ही नहीं होता। मेरे ज़हन में ऐसे कई बहाने हैं, जो लोगों के मुँह से अक्सर सुनने में आ जाते हैं। और बड़ी बात यह है कि इन्हीं कमियों को रौंदकर कई जानी-मानी हस्तियों ने अपना नाम बनाया है। असफलता का पहला बहाना है, “मुझे उचित शिक्षा लेने का अवसर नहीं मिला..” मैं यहाँ बताना चाहता हूँ कि उचित शिक्षा का अवसर तो फोर्ड मोटर्स के मालिक हेनरी फोर्ड को भी नहीं मिला था। कुछ लोगों को कहते हुए सुना जाता है, “मैं अत्यंत गरीब घर से हूँ..” पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम भी गरीब घर से थे, और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक चाय की गुमटी पर काम करते थे। फिर आता है, “मैं बचपन से ही अस्वस्थ था..” जानकार हैरानी होगी कि ऑस्कर विजेता अ अभिनेत्री मार्ली मैटलिन बचपन से बहरी और अस्वस्थ थीं। “मेरे पास टू व्हीलर नहीं थी, मैंने साइकिल पर घूमकर आधी जिंदगी गुजारी है..” निरमा के करसन भाई पटेल ने भी साइकिल पर निरमा बेचकर आधी ज़िंदगी गुजारी।
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कुछ लोग जीवन के हादसों को अपनी सफलता की रुकावट बताते हैं। “एक दुर्घटना में अपाहिज होने के बाद मेरी हिम्मत चली गई..” बता दूँ कि प्रख्यात नृत्यांगना सुधा चन्द्रन का एक पैर नकली है। “बचपन में ही मेरे पिता का देहांत हो गया था..” तो उन्हें बता दूँ कि प्रख्यात संगीतकार ए.आर. रहमान के पिता का देहांत भी उनके बचपन में हो गया था। “मेरी कम्पनी दिवालिया हो चुकी है, अब मुझ पर कौन भरोसा करेगा..” दुनिया की सबसे बड़ी कोल्डड्रिंक निर्माता पेप्सी, कोला भी दो बार दिवालिया हो चुकी है।
“मुझे ढेरों बीमारियां हैं..” वर्जिन एयरलाइंस के प्रमुख भी कई बीमारियों से घिरे हुए थे, और अमेरिका के 32वें राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डेलानो रूज़वेल्ट के दोनों पैर काम नहीं करते थे। “मैं सुन या देख नहीं सकता..” सामान्य तौर पर इस तरह की एक या दो ही कमियाँ लोगों में होती है, लेकिन मिशेल मैक्नली न सुन सकती थी, न देख सकती थी और न ही बोल सकती थी, जिसका किरदार रानी मुखर्जी ने ब्लैक फिल्म में निभाया है।
फिर कुछ लोग अलग ही दुनिया में होते हैं, और कहते हैं, “मुझे बचपन से ही मंदबुद्धि कहा जाता है..” उन्हें बता दूँ कि थॉमस ऐल्वा एडीसन को भी बचपन से मंदबुद्धि कहा जाता था और यह कहकर उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया था। “मैं इतनी बार हार चुका, अब हिम्मत नहीं..”अब्राहम लिंकन 15 बार चुनाव हारने के बाद राष्ट्रपति बने। “मुझे बचपन से परिवार की जिम्मेदारी उठानी पड़ी..” लता मंगेशकर को भी बचपन से परिवार की जिम्मेदारी उठानी पड़ी थी। “मेरी लंबाई बहुत कम है..” सचिन तेंदुलकर की भी लंबाई कम है।
“मैं एक छोटी-सी नौकरी करता हूँ, इससे क्या होगा..” धीरु भाई अंबानी भी छोटी ही नौकरी करते थे। “मेरी उम्र बहुत ज्यादा है..” विश्व प्रसिद्ध केंटुकी फ्राइड चिकन (केएफसी) के मालिक ने 60 साल की उम्र में पहला रेस्तरां खोला था। “मैं बहुत अच्छे आइडिया देता हूँ, लेकिन लोग अस्वीकार कर देते हैं..” ज़ेरोक्स फोटो कापी मशीन के आइडिया को भी ढेरों कम्पनीज़ ने अस्वीकार किया था, लेकिन आज परिणाम सामने हैं। “मेरे पास पैसा नहीं है..” इन्फोसिस के पूर्व चेयरमैन नारायणमूर्ति के पास भी पैसे नहीं थे, उन्हें अपनी पत्नी के गहने बेचने पड़े थे।
उपरोक्त तमाम उदाहरण किसी के लिए बहानें, तो किसी के लिए मिसाल बन खड़े हुए, लेकिन कुछ बहानें ऐसे भी हैं, जिन्हें हम कई दफा रोज़मर्रा के जीवन में कहते-सुनते जान पड़ते हैं। गाड़ी में पेट्रोल नहीं, आज मेरी तबियत ठीक नहीं, ऑफिस दूर होने की वजह से पहुँचने में देरी हो जाती है, मेरी अंग्रेजी अच्छी नहीं है, उसकी तनख्वाह मुझसे ज्यादा है, मेरी कोई सुनता नहीं, मेरी कोई बखत नहीं, आदि.. आदि.. ऐसे ढेरों बहाने हैं, जो हमारी सफलता की रुकावट हैं। इनका वजन सिर पर लेकर चलेंगे, तो कभी आगे नहीं बढ़ पाएँगे, हम जहाँ हैं, वहीं खड़े रहेंगे।
कुछ लोगों के मन में निश्चित ही यह विचार आया होगा, जरुरी नहीं कि जो प्रतिभा इन महानायकों में थी, वह हम में भी हो.. बेशक, हो सकता है.. मैं आपकी बात से सहमत हूँ, लेकिन यह भी तो हो सकता है कि जो प्रतिभा आप में है, वह इन महानायकों में भी न हो.. बात गहरी है, विचार जरूर करिएगा। चुनाव आपके हाथों में है: ‘सफलता’ या ‘खोखले बहाने’।