राजकुमार जैन
क्या साक्षी का यही दोष था कि अपने सुनहरे भविष्य के सपने देखते हुए अपने घर जाने के लिए वह सही दिशा में गाड़ी चला रही थी। कैसे किसी को यह हक मिल जाता है कि वो गलत दिशा से आये और साक्षी को रौंदता हुआ निकल जाए। कैसे कोई इतना निडर होकर दिन की रोशनी में इस तरह का जघन्य और जानलेवा अपराध कर सकता है वो भी हमारे इंदौर की सड़कों पर।
इन परिस्थितियों में कैसे हम नम्बर वन स्मार्ट सिटी के तमगे को अपनी छाती से चिपकाकर इतराते हुए घूम सकते है।
एक साक्षी की मौत पर क्यों सड़कों पर कोई शोर नहीं मचता। क्यों सब आंखे फेर लेते है। क्यों हम सब शुतुरमुर्ग की तरह अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं। कैसे आप अपनी संतान को सड़कों पर निकलने देंगे किसी राक्षस के पैरों तलों रौंदे जाने की लिए। प्रशासन कब तक कुम्भकर्ण की नींद सोता रहेगा। क्यों कोई राजनेता यातायात सुधार हेतु आंदोलन नही करता।
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अब समय आ गया है कि इन सवालों के जवाब खोजें जाएं। वाहन चालक को पुलिस प्रशासन का इतना डर होना चाहिए कि भविष्य में फिर कोई ऐसी हिम्मत ना करे। पुलिस प्रशासन को जनता का इतना भय हो कि ढिलाई बरतते ही जनता के हाथ उनके गिरहबान पर होंगे। जनता को इतना डर हो कि नियम नहीं मानने की कीमत जान से चुकाना होगी।
शहर का प्रशासन तो संवेदनहीन हो ही चुका है लेकिन इस जीवंत शहर की जनता का इस तरह मौन रहना भी पूरी तरह गलत है।
यातायात प्रबन्धन पुलिस अपने कम संसाधनों का रोना रोती रहती है और हमारे अति सामर्थ्यवान राजनेता इस कमी को दूर करवाने के लिए उंगली भी नहीं हिलाते, आखिर क्यों उन्होंने जनता को मरने के लिए छोड़ दिया है। कहीं सड़क पर जानलेवा गड्ढे हैं तो कहीं सड़क ही नहीं है। सबके पास खुद को बचाने के लिए अपने अपने तर्क है लेकिन साक्षी की जान का क्या।
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हम कब तक हाथ पर हाथ रखकर बैठे रहेंगे, कब तक “मुझे क्या?” कहकर स्वयम को बहलाते रहेंगे, कब तक।
याद रखिये आपका यह मौन ही जिम्मेदार है इस मौत के खेल को निरन्तर जारी रखने के लिये।
कब तक हम प्रतीक्षा करेंगे ईश्वर के भेजे किसी ‘नायक/हीरो’ की, कि वो आयेगा और सब कुछ ठीक कर देगा।
हमें बदलना ही होगा। आगे आना ही होगा। आवाज को इस बुलंद करना ही होगा कि वो प्रदेश के मुखिया तक पहुंचे।