“जिस शब्द से इस सृ्ष्टि का सृजन हुआ। हमारे देश के सभी ऋषि, मुनि, ग्यानी दार्शनिकों ने शब्द की महिमा का बखान किया है। उसके पीछे सुदीर्घ अनुभव और उदाहरण हैं।
भारतीय संस्कृति के दो महाग्रंथ शब्दों की महिमा के चलते रचे गए। यदि सूपनखा का उपहास न होता तो क्या बात राम रावण युद्ध तक पहुँचती? कर्ण को सूतपुत्र और दुर्योधन को अंधे का बेटा न कहा गया होता तो क्या महाभारत रचता? इसीलिये, कबीर, नानक, तुलसी जैसे महान लोगों ने शब्द की सत्ता, इसकी मारक शक्ति को लेकर लगातार चेतावनियाँ दीं। पूज्य गुरु नानक कितने महान थे, उन्होंने शब्द को न सिर्फ़ ईश आराधना का आधार बनाया बल्कि उसे ईश्वर का दर्जा दिया। शबद क्या है, यही है उनका ईश्वर। गुरूग्रंथ साहिब श्रेष्ठ, हितकर, सर्वकल्याणकारी शब्दों का संचयन है। शब्द की सत्ता से ही एक पूरा पंथ चल निकला। भजनकीर्तन, प्रार्थना, जप सब शब्दों की साधना के उपक्रम हैं।”
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इसलिए कहा गया …साधौ शब्द साधना कीजै…
साधो शब्द साधना कीजै
जो ही शब्दते प्रगट भये सब
सोई शब्द गहि लीजै
शब्द गुरू शब्द सुन सिख भये
शब्द सो बिरला बूझै
सोई शिष्य सोई गुरू महातम
जेहि अंतर गति सूझै
शब्दै वेद-पुरान कहत है शब्द
शब्दै सब ठहरावै
शब्दै सुर मुनि सन्त कहत है
शब्द भेद नहि पावै
शब्दै सुन सुन भेष धरत है
शब्दै कहै अनुरागी
षट-दर्शन सब शब्द कहत है
शब्द कहे बैरागी
शब्दै काया जग उतपानी शब्दै
केरि पसारा
कहै ‘कबीर’ जहँ शब्द होत है
भवन भेद है न्यारा।
गुरुपर्व पर महान संत गुरूनानक जी के चरणों में नमन