गोगाजी राजस्थान के लोक देवता हैं, जिन्हे जाहरवीर गोगा राणा के नाम से भी जाना जाता है। राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले का एक शहर गोगामेड़ी है। यहां भादों शुक्लपक्ष की नवमी को गोगाजी देवता का मेला लगता है। वहीं गोगा नवमी मंगलवार, 31 अगस्त यानि आज है। आज बाबा के प्रिय भक्त पूरे विधि-विधान से उनकी पूजा-अर्चना करते हैं और उनकी सेवा में अपना तन-मन-धन सब लगा देते हैं।
बाबा जाहरवीर के भक्त अच्छी तरह से जानते हैं कि उनकी सेवा करने वालों पर बाबा की कृपा हमेशा बनी रहती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार गोगा जी महाराज की पूजा करने से सर्पदंश का खतरा नहीं रहता है। गोगा देवता को सांपो का देवता माना गया है इसलिए इस दिन नागों की पूजा की जाती है। मान्यता है कि पूजा स्थल की मिट्टी को घर पर रखने से सर्पभय से मुक्ति मिलती है।
गोगा नवमी पर ऐसे करें पूजन
नवमी के दिन स्नानादि करके गोगा देव की या तो मिटटी की मूर्ति को घर पर लाकर या घोड़े पर सवार वीर गोगा जी की तस्वीर को रोली,चावल,पुष्प,गंगाजल आदि से पूजन करना चाहिए। खीर, चूरमा, गुलगुले आदि का प्रसाद लगाएं एवं चने की दाल गोगा जी के घोड़े पर श्रद्धापूर्वक चढ़ाएं।
भक्तगण गोगा जी की कथा का श्रवण और वाचन कर नागदेवता की पूजा-अर्चना करते हैं। कहीं-कहीं तो सांप की बांबी की पूजा भी की जाती है। ऐसा माना जाता है कि जो भी सच्चे मन से नागों के देव गोगा जी महाराज की पूजा करते हैं उनकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इस दिन एक और मान्यता है, वह यह कि बहनें रक्षाबंधन पर अपने भाइयों को जो रक्षासूत्र बांधती हैं, वह गोगा नवमी के दिन ही खोलकर गोगा देव को चढ़ाई जाती है।
ऐसे हुआ गोगाजी का जन्म
जन-जन के आराध्य एवं राजस्थान के महापुरुष कहे जाने वाले गोगाजी का जन्म गुरु गोरखनाथ के आशीर्वाद से हुआ था। गोगा जी की मां बाछल देवी निसंतान थीं। संतान प्राप्ति के सभी प्रयत्न करने के बाद भी उनको कोई संतान नहीं हुई। एक बार गुरु गोरखनाथ बाछल देवी के राज्य में ‘गोगा मेडी’ पर तपस्या करने आए।
बाछल देवी उनकी शरण में गई तथा गोरखनाथ ने उनको पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया और साथ में ‘गुगल’ नामक अभिमंत्रित किया हुआ फल उन्हें प्रसाद के रूप में दिया और आशीर्वाद दिया कि उसका पुत्र वीर तथा नागों को वश में करने वाला तथा सिद्धों का शिरोमणि होगा। इस प्रकार रानी बाछल को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई जिनका नाम गुग्गा रखा गया।
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