अतुल मलिकराम
‘पिता’ एक ऐसा शब्द है, जो हमेशा ईश्वर के साथ गूँजता है। दो अक्षर का यह खूबसूरत शब्द भावनाओं का सैलाब लाने और उसमें साथ बहा ले जाने के लिए काफी है। पिता शब्द से सुरक्षित इस जहान में और कुछ कहाँ? पिता है, तो हम सुरक्षित हैं। बड़ी से बड़ी बलाएँ पिता के साथ चलने वाली परछाई के नीचे कहीं दब-कूच कर ही दम तोड़ जाती हैं। मुझे आज भी याद है, एक दिन मैं पूरे रास्ते रोते हुए स्कूल से घर आया था और खुद को एक कमरे में बंद कर लिया था। मेरी उम्र चौदह या पंद्रह साल रही होगी शायद।
मेरी माँ ने कई बार मेरे रोने का कारण जानना चाहा, लेकिन मैं उन्हें कुछ भी बताने के मूड में नहीं था। बाद में शाम को काम से थक-हारकर मेरे पिता घर आए और मेरे पास बैठ गए। मेरा मायूस चेहरा भाँपने में उन्हें एक सेकंड का भी समय नहीं लगा और जैसे ही उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या हुआ, तो मैं उन्हें सब कुछ बताने से खुद को रोक नहीं पाया। मैंने उन्हें बताया कि कैसे स्कूल में मेरे दोस्तों ने मुझे स्पोर्ट्स शूज़ न होने पर चिढ़ाया और कैसे उन सभी ने मेरा मज़ाक उड़ाया। मेरे पिता ने बिना कुछ कहे मेरा पूरा बखान सुन लिया। इसके बाद उन्होंने मुझे रात का खाना खिलाकर सुला दिया।
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अगले दिन जब मैं स्कूल से घर लौटा, तो क्या देखता हूँ कि टेबल पर एक सुँदर-सा बॉक्स रखा हुआ है। जैसे ही मैंने बॉक्स खोला, मेरे नए स्पोर्ट्स शूज़ अंदर से मुझे झाँककर देख रहे थे। मैं जान गया था कि यह मेरे पापा, मेरे लिए लाए हैं। उस दिन मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। मैंने अपने नए जूतों की जैसे प्रदर्शनी ही लगा दी और झूमता हुआ आस-पड़ोस के सभी लोगों को मेरे नए जूते दिखाने चला गया।
वापिस आया, तो पापा मुझे देख रहे थे, धन्यवाद् देने के लिए मैं कसकर उनके सीने से लग गया। पापा ने कुछ नहीं कहा और उन्होंने भी मुस्कुराते हुए मुझे कसकर गले लगा लिया। उस रात खुशी के कारण मुझे नींद ही नहीं आई। मैं उतारू था अपने दोस्तों को नए जूते दिखाने के लिए, खासकर उन्हें, जिन्होंने मुझे चिढ़ाया था।
सुबह जब मैं तैयार हो रहा था, तो मैंने पापा से माँ को कहते हुए सुना, “जिन पैसों को आप खुद के जूते लाने के लिए कई महीनों से जमा कर रहे थे, उन पैसों से आपने बेटे के लिए नए जूते क्यों खरीद लिए?” इस पर पापा ने जवाब दिया, “क्या तुमने उस वक्त हमारे बेटे के चेहरे पर खुशी देखी थी, जब उसने मुझे गले लगाया? उसके चेहरे की चमक मेरे लिए सबसे ज्यादा मायने रखती है। मैं अपने लिए जूते फिर कभी ले लूँगा, वैसे भी अभी वो कुछ महीने और काम दे सकते हैं।”
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यह सब सुनने के बाद मैं सीधा दौड़कर पापा द्वारा हर दिन पहने जाने वाले वो जूते देखने गया। उस वक्त मैंने जो देखा, उसने मेरा इस कदर दिल तोड़ दिया कि चंद मिनट पहले की खुशी पापा के जूतों के तलवों के नीचे दफन होकर रह गई। उनके जूते न सिर्फ पूरी तरह खराब हो गए थे, बल्कि उनके तलवे तक बुरी तरह उतर चुके थे। उनके लिए हर दिन उन जूतों को पहनना कितना मुश्किल भरा होता होगा।
उस दिन मैं किसी ओट में छिपे अपने बचपने से उठ खड़ा हुआ। उस दिन मुझे असल में यह एहसास हुआ कि पापा हमारे परिवार को ‘परिवार’ बनाने और उसमें खुशियाँ बिखेरने के लिए अपनी खुशियाँ कैसे खुशी-खुशी कुर्बान कर देते हैं। पापा से बड़ी त्याग की मूरत मुझे नहीं लगा कि कोई और हो सकती है। उस दिन मेरे पापा मेरे सुपर हीरो बन गए। मुझे महसूस हो गया कि पापा की बाँहों में स्वर्ग है और पापा साथ हैं, तो मैं इस दुनिया का सबसे अमीर शख्स हूँ और एक सच कि मेरे पापा से ही मैं हूँ।
पापा ने मुझे कभी नहीं बताया कि कैसे जीना है। घर में सबसे कम बोलने के बावजूद उन्होंने मुझे सब कुछ सीखा दिया। वे कैसे जीते हैं, उन्हें देखकर मैं यह बखूबी जान गया। मेरे और पूरे परिवार के लिए उनके गहरे और बिना शर्त वाले प्यार ने मुझे पंख दिए और कहा कि मैं जितनी चाहूँ, उतनी ऊँची उड़ान भरूँ। हाँ, वो जमीन पर ही रहे, लेकिन मैं कहीं डगमगाउ न, इसका पूरा ध्यान रखते रहे। तो हुए न जेब खाली होने के बावजूद सबसे अमीर मेरे पापा..
Source : PR