कांग्रेस की सरकारों ने आदिवासी सभ्यता, संस्कृति को मिटाने धर्मांतरण को दिया प्रोत्साहन

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भोपाल। भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता गोविन्द मालू नें कहा है कि कांग्रेस ने आजादी के बाद से आदिवासियों भाई बहनों को छला, धोखा दिया, लूटा। इसकी स्वीकारोक्ति स्वयं तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने १४ नवंबर १९९५ को जारी पहली मानव विकास रिपोर्ट में की थी। उन्होंने स्वीकारा था कि प्रदेश में आदिवासियों की हालत १९५० के समान है। जब कांग्रेस ने ४५ सालों में इस वर्ग का भला नहीं किया, तो अब क्या करेंगे? अब आदिवासी युवा पंचायत कर फिर धोखाधड़ी की जा रही है।

प्रदेश प्रवक्ता गोविन्द मालू ने कहा कि दिग्विजय सिंह झूठ बोलते हैं कि उन्होंने आदिवासियों के साथ अन्याय नहीं होने दिया। जब वे प्रदेश अध्यक्ष थे तब बने पार्टी के घोषणा पत्र में ना पेसा एक्ट की बात की, ना स्वास्थ्य की, ना शिक्षा की , ना वनोपज और ना ही जनजाति आयोग को संवेधानिक दर्जा देने की बात की। उन्होंने तो आदिवासी मंत्रणा परिषद की लगातार अवहेलना की जबकि वह संवैधानिक संस्था थी। बल्कि १००० करोड़ रुपये आदिवासियों के नाम भष्टाचार की भेंट चढ़ा दिए। अब वे ३० साल बाद फिर झूठ बोल रहे हैं कि आपकी मांगों को घोषणा पत्र में शामिल करेंगे। वास्तविकता यह है कि वोट बैंक से ज्यादा कभी कांग्रेस ने उन्हें कुछ नहीं समझा। उन्हें उनकी जमीनों से बेदखल कर नेताओं ने कब्जे किए। उन्होंने कहा कि झाबुआ के १९९४ के वीभत्स कवठू कांड और उसके कांग्रेसी विलेन को प्रदेश के आदिवासी भूले नहीं हैं।

मालू ने कहा कि १९९८ के घोषणा पत्र में कांग्रेस ने लघु वनोपज पर आदिवासियों के अधिकार का वादा (पृष्ठ क्र.१९) किया और पूरा नहीं किया। कांग्रेस ने इस वर्ग की बजाय प्राकृतिक संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का बताया। वोट बैंक के गोरखधंधे में उन्होंने ना मुसलमान भाइयों की सुध ली ना वनवासी बंधुओं की। उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस की सरकारों ने आदिवासियों की सभ्यता संस्कृति को मिटाने के लिए धर्मांतरण को प्रोत्साहन दिया और उन्हें इसके लिए मजबूर किया। उनके वीर पुरुषों को, महान सेनानियों व संतों को कभी याद नहीं किया। अब सत्ता के लिए मि. बंटाढार और करप्शन नाथ दोनों फिर से आदिवासी राग अलाप रहे हैं।