दिनेश निगम ‘त्यागी’
मालवा अंचल में सांवेर के बाद बदनावर ऐसी विधानसभा सीट हैं, जिसके नतीजे पर सबकी नजर है। यहां भाजपा के युवा एवं सरकार के उद्योग मंत्री राजवर्धन सिंह का मुकाबला कांग्रेस के अनुभवी बुजुर्ग कमल सिंह पटेल से है। दोनों प्रत्याशियों का क्षेत्र में खासा असर है। इसीलिए विधानसभा का पहली बार चुनाव लड़ रहे कमल सिंह तीन बार विधायक रह चुके राजवर्धन सिंह को कड़ी टक्कर दे रहे हैं। राजवर्धन ज्योतिरादित्य सिंधिया के कट्टर समर्थक हैं। उनके इस्तीफे की वजह से ही उप चुनाव हो रहा है। बदनावर पाटीदार और राजपूत किसानों के बाहुल्य वाला संपन्न इलाका है। पश्चिमी मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य धार जिले में कुल 7 विधानसभा सीट हैं। 2018 में हुए चुनाव में 6 सीटो पर कांग्रेस ने कब्जा जमाया था जबकि भाजपा को एक सीट से ही संतोष करना पड़ा था। सीट का मिजाज राजवर्धन के लिए ठीक नहीं है क्योंकि यहां का मतदाता सत्ता विरोधी लहर पर सवार होता आया है।
सत्ता के खिलाफ आता रहा है नतीजा
बदनावर विधानसभा सीट का मिजाज प्रदेश की आम सीटों से मेल नहीं खाता क्योंकि अपवाद छोड़कर यहां का नतीजा हमेशा सत्ता पक्ष के खिलाफ आता रहा है। इस बार यह मिथक टूटता है या नहीं, नतीजा बताएगा। सन 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उपजी सहानुभूति लहर जैसे माहौल में जब कांग्रेस ने पूरे प्रदेश में जर्बदस्त बहुमत प्राप्त हासिल किया था तब बदनावर में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा था। तब यहां भाजपा के रमेशचंद्र सिंह राठौर ने जीत दर्ज की थी। इसी प्रकार 1989 मे पूरे देश में राम लहर चली थी। प्रदेश में भाजपा ने जर्बदस्त सीटें जीतकर सरकार बनाई थी, तब भी यहां के मतदाताओं ने भाजपा की बजाए कांग्रेस के प्रेमसिंह दत्तीगांव को जिताया था। 1993 में जब प्रदेश में कांग्रेस के दिग्विजय सिंह का जादू चला था, तब भी बदनावर के मतदाताओं ने भाजपा पर विश्वास जताया था।
राजपूत, पाटीदार, आदिवासी निर्णायक
बदनावर क्षेत्र में राजपूत मतदाता करीब 35 से 40 हजार हैं। पाटीदार 40 से 45 हजार के आसपास हैं। क्षेत्र में 50 हजार आदिवासी मतदाता भी हैं। मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 15 से 18 हजार है। इसके अलावा जाट , सिरवी, यादव, माली, राठौर समाज के लोग यहां रहते हैं। बदनावर की पूरी राजनीति राजपूत और पाटीदार मतदाताओं के इर्द-गिर्द ही घूमती है। यही निर्णायक मतदाता हैं। यही कारण है कि दोनों प्रमुख पार्टियां भाजपा-कांग्रेस राजपूत और पाटीदार समाज से ही प्रत्याशी मैदान में उतारती हैं। पिछले विधान सभा चुनाव में कांग्रेस से राजवर्धनसिंह दत्तीगांव और भाजपा से भंवरसिंह शेखावत दोनों राजपूत उम्मीदवार थे।
भाजपा की ताकत और कमजोरी
राजवर्धन सिंह धार के दत्तीगांव के रहने वाले हैं। इनके पिता प्रेमसिंह दत्तीगांव और माता कुसुम सिंह दत्तीगांव भी राजनीति में थे। प्रेमसिंह दत्तीगांव बदनावर से विधायक रहे हैं जबकि इनकी माता कुसुम सिंह दत्तीगांव जिला पंचायत उपाध्यक्ष रहीं। राजवर्धन सिंह ज्योतिरादित्य सिंधिया के बेहद करीबी हैं। यही इस बार भाजपा की ताकत है। दूसरी तरफ पाटीदार समाज को भाजपा का परंपरागत वोटर माना जाता है लेकिन इस समाज की राजवर्धन से पुरानी अदावत है। राजवर्धन के छोटे भाई हर्षवर्धन ने कुछ साल पहले पाटीदार समाज के प्रभावशाली नेता कैलाश पाटीदार को सार्वजनिक रूप से अपमानित किया था। इसके बाद से ही पाटीदार मतदाता कभी भी राजवर्धन के साथ खड़ा दिखाई नहीं दिया। यह भाजपा के लिए सबसे बड़ी कमजोरी साबित हो सकता है।
कांग्रेस की ताकत और कमजोरी
कमल सिंह पटेल कांग्रेस के अनुभवी नेता हैं। उन्होंने अपने राजनीतिक सफर में मंडी से लेकर जनपद जिला पंचायत तक के चुनाव लड़े। 15 साल से कानवन में कांग्रेस पंचायत पर काबिज हैं। राजपूत समाज में कमल पटेल अच्छी पेठ रखते हैं। चामला पट्टी में व्यक्ति गत संबंध का फायदा इन्हें मिल सकता है। इसके अलावा दत्तीगांव के विरोध के चलते भाजपा का पाटीदार मतदाता इस बार कांग्रेस के साथ जा सकता है। मुस्लिम वोट कांग्रेस का परंपरागत है, वह भी कांग्रेस के साथ रहेगा। आदिवासी और हरिजन वोटों में समान रूप से विभाजन हो सकता है। यही कांग्रेस की असल ताकत है। कांग्रेस की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि क्षेत्र में कांग्रेस दत्तीगांव परिवार से जानी जाती रही है। इस बार वह भाजपा में है। उनके साथ बड़ी तादाद में कांग्रेसी भी भाजपा में चले गए हैं।
असंतुष्ट न माने तो भाजपा को नुकसान
भाजपा उम्मीदवार के रूप में राजवर्धन की राह इस बार आसान नहीं है। एक, उन्हें भाजपा का परंपरागत पाटीदार वोट नहीं मिलेगा। दूसरा भंवर सिंह शेखावत, खेमराज पाटीदार, कैलाश विजयवर्गीय के कट्टर समर्थक मनोज पाटनी और महेंद्र सिंह पीपली पाड़ा जैसे कद्दावर भाजपा नेताओं से भितरघात का खतरा है। इन्हें इस बात का भय है कि यदि एक बार राजवर्धन भाजपा उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीत गए तो आगे इनके लिए फिर कोई संभावना नहीं। राजवर्धन का मिजाज भी कुछ ऐसा है कि एक बार चुनाव जीतने के बाद उनके सामने क्षेत्र के सारे नेता गौण हो जाते हैं। इसकी वजह से भाजपा को सबसे ज्यादा भितरघात से निबटना होगा। दूसरा जब राजवर्धन सिंह कांग्रेस में थे तब कमल पटेल के खास हुआ करते थे। अब दोनों आमने-सामने हैं। इसकी वजह से भी भितरघात के आसार हैं।
भितरघात के आसार, डैमेज कंट्रोल भी
बदनावर में कांग्रेस का चेहरा रहे राजवर्धन सिंह पार्टी छोड़ गए हैं और भाजपा से चुनाव लड़ रहे हैं। इसकी वजह से कांग्रेस में भितरघात के पूरे आसार हैं। यहां से कांग्रेस के दो प्रतिद्वंद्वी कद्दावर नेता जिला कांग्रेस अध्यक्ष बालमुकुंद सिंह गौतम और जिला सहकारी बैंक के पूर्व अध्यक्ष कुलदीप सिंह बुंदेला टिकट चाह रहे थे। किसी एक को टिकट मिलने से पार्टी को ज्यादा नुकसान हो सकता था। इसकी वजह से कांग्रेस को नुकसान न हो इसीलिए स्थानीय प्रत्याशी कमल सिंह को मैदान में उतारा गया है। कमल सिंह के कारण डैमेज कंट्रोल हुआ है। कमल हमेशा राजवर्धन के साथ रहे हैं, इसलिए भी वे कांग्रेसियों को अपने साथ रखने में सफल हो रहे हैं। कमल क्षेत्रीय, राजनीतिक व सामाजिक समीकरण भी समझते हैं। ऐसे में कांग्रेस डैमेज कंट्रोल कर सकती है।
बगावत व सरकारों के काम ही मुख्य मुद्दे
प्रदेश की दूसरी सीटों के उप चुनाव की तरह कांग्रेस से बगावत, कमलनाथ सरकार एवं शिवराज सरकार के कामकाज के मुद्दों को कांग्रेस एवं भाजपा प्रचार अभियान के दौरान उठा रहे हैं। कांग्रेस दत्तीगांव की पार्टी से गद्दारी के साथ कमलनाथ सरकार द्वारा 15 माह में किए गए कार्यों के आधार पर वोट मांग रही है। फिर किसान कर्जमाफी का वादा कर रही है। दूसरी तरफ भाजपा कमलनाथ सरकार के कामकाज पर हमला कर रही है। कुछ न करने और भ्रष्टाचार के आरोप लगाए जा रहे हैं। दत्तीगांव कहते हैं कि मैंने क्षेत्र के विकास और जनता के लिए कांग्रेस छोड़ी क्योंकि न तो कांग्रेस ने मंत्री बनाने का वादा पूरा किया था और न ही क्षेत्र में कोई काम हो रहे थे। नेताओं के बिगड़े बोल भी जनता के बीच मुद्दा बन रहे हैं।