नई दिल्ली : चुनाव (Election) के दौरान मतदाताओं की उंगलियों पर लगाई जाने वाली चुनावी स्याही के बारे में क्या आपको जानकारी है! मसलन इसे कब से उपयोग में लाया जा रहा है, सबसे पहले इस स्याही को किस कंपनी ने बनाया था और इसे उंगलियों पर क्यों लगाया जाता है इत्यादि। तो हम इस बारे में कुछ जानकारी दे रहे है, चुनाव के दौरान मतदान करने वाले की उंगली पर स्याही लगाई जाती है और इसके बाद यह मान लिया जाता है कि उक्त व्यक्ति ने मतदान कर दिया है।
एक ही कंपनी बनाती है इसे
चुनावी स्याही को बनाने का काम भारत में ही महज एक कंपनी द्वारा किया जाता है। इस कंपनी का नाम है मैसूर पेंट्स एंड वार्निश लिमिटेड। इसकी स्थापना वर्ष 1937 में की गई थी। एक जानकारी के अनुसार मैसूर प्रांत के महाराज कृषणराजा वडयार ने इस कंपनी की शुरूआत की थी।
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पहले मुख्य चुनाव आयुक्त के कारण
वैसे तो इस स्याही को बनाने का इतिहास काफी पुराना है लेकिन भारत मंे होने वाले चुनावों में इसका सबसे पहले इस्तेमाल किया गया था 1962 के चुनाव में। भारत के चुनाव में स्याही का उपचोग करने का श्रेय यदि किसी को जाता है तो देश के सबसे पहले मुख्य चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन को। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि इस स्याही का दूसरा विकल्प आज तक नहीं चुना जा सका है और यही कारण है कि चुनावों के दौरान इसी स्याही का उपयोग हो रहा है।
कितनी स्याही और खर्च
एक बोतल में दस एमएल स्याही होती है और कीमत पढ़ती है हर बोतल की करीब 127 रूपए। वैसे एक लीटर की कीमत 12 हजार 700 रूपए मानी जा सकती है।
72 घंटे तक नहीं मिटाया जा सकता
इस स्याही की खासियत यह होती है कि इसे उंगली की त्वचा से लगभग 72 घंटे तक मिटाया नहीं जा सकता है। जानकारी के अनुसार स्याही बनाने में सिल्वर नाइट्रेट रसायन का प्रयोग होता है तथा पानी मिलाने से इसका रंग काला हो जाता है। जैसे ही वोटिंग के लिए व्यक्ति आता है उसकी उंगली पर यह स्याही लगा दी जाती है।
पैर के अंगूठे पर भी लगाते है
यदि किसी वोटर के दोनों हाथ नहीं है तो फिर ऐसी स्थिति में उसके पैर के अंगूठे पर भी स्याही लगाई जाती है। इसके अलावा नियमों के अनुसार मतदाता के बाएं हाथ की उंगली पर स्याही लगाना अनिवार्य होता है। किसी के बाएं हाथ में उंगली नहीं है तो फिर ऐसे व्यक्ति के बाएं हाथ की किसी भी उंगली पर स्याही लगाने की छूट चुनाव आयोग ने दे रखी है।