राजकुमार जैन
बर्फीली सर्दीयों मे जब कभी तापमान 5 या 10 डिग्री सेल्सियस के आसपास आने लगता है तो हम ठिठुर कर रज़ाई में दुबक जाते हैं। जरा कल्पना किजिये उस भयावह मंजर की जहां मायनस -40 डिग्री सेंटीग्रेट से भी नीचे तक तापमान पहुंच जाता हो, ऑक्सीजन बेहद कम हो, हाथ में राइफल हो और दुश्मनों की नापाक हरकतों पर नजर गड़ाए रखनी हो। जी हां लेह, लद्दाख, सियाचिन जैसे अनेक ऐसे इलाके हैं जहां हमारे जांबाज बेहद विषम परिस्थितियों में देश की रक्षा के लिए तैनात रहते हैं।
यूं तो सरहद पर तैनाती हमेशा ही चुनौतीपूर्ण होती है, लेकिन लद्दाख जैसी भौगोलिक परिस्थितियो वाले इलाके मे यह बहुत गंभीर होती है हालिया घटना इस कठिन चुनौती झेल रहे जवानो के जीवन संघर्ष की एक अद्भुत मिसाल है, मध्य्प्र्देश के मुरैना जिले के पोरसा के ग्राम “नंद का पुरा” के मूल निवासी सीमा सुरक्षा बल मे 1999 से कार्यरत जवान श्री अजय सिंह तोमर उम्र 41 वर्ष, रविवार 5 जून को दोपहर करीब 11:30 बजे ह्रदयघात के चलते शहीद हो गए। सिपाही के पद पर भर्ती हुए अजय वर्तमान मे सीसूब की आर्टिलरी विंग में मुख्य आरक्षक के पद पर लद्दाख मे पदस्थ थे।
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शहीद जवान का पार्थिव शरीर जम्मू से दिल्ली लाया गया है जो मंगलवार सुबह दिल्ली से सड़क मार्ग से शहीद जवान के गृह गांव पोरसा तहसील के “नंद का पुरा” में देर शाम तक पहुंचेगा। इसके बाद जवान का सैन्य सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया जाएगा।शहीद जवान अजय सिंह तोमर के परिवार में पत्नी कल्पना तोमर एवं उनके दो बच्चे सनी (18 वर्ष) तथा मनी (16 वर्ष) है। अजय सिंह तोमर सहित वो कुल पांच भाई थे। जिसमें एक कमल सिंह तोमर बीएसएफ में देशसेवा कर रहे हैं। दूसरे भाई अमर सिंह तोमर जो प्राइवेट स्कूल में प्राचार्य है। तीसरे भाई भंमर सिंह तोमर पूर्व सरपंच है और चौथे भाई हीरा सिंह तोमर पैतृक खेती सम्हालते है।
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पड़ोसी देशों के साथ रिश्तों में अगर खिंचाव के चकते सर्द से सर्द मौसम में भी सरहदें गर्म रहा करती हैं। यह गर्मी सीमा पर फौजी हलचल से पैदा होती है। लेकिन जब मामला लद्दाख जैसे समुद्र सतह से 18000 फीट ऊंचे भीषण ठंड वाले इलाकों का हो तो वहां सेनाओं को बनाए रखने में सबसे बड़ी मुश्किल अत्यधिक ऊंचाई के कारण पैदा हुई आक्सीजन की कमी के कार्न होती है, साधारण व्यक्ति की तो दो कदम चलते ही सांस फूलने लगती है । बर्फ ऐसी गिरती है कि ऊंचाई वाले इलाकों में जब-तब 30 से 40 फीट तक बर्फबारी हो जाए और ठंड इतनी कि तापमान माइनस 40, माइनस 50 डिग्री सेल्सियस या इससे भी नीचे गिर जाए।
वहां से लौटने वाले फौजी अक्सर ऐसे जिक्र छेड़ते रहे हैं कि अगर वहां संतरे या मुर्गी के अंडे को कुछ मिनट के लिए खुले में रख दिया जाए, तो वह जमने के साथ इतना सख्त हो जाता है कि फिर उसे हथौड़े से भी नहीं तोड़ा जा सकता। वहां मशीनें तक अपनी क्षमता का एक चौथाई प्रदर्शन कर पाती हैं, चलते-फिरते इंसानों की क्या बिसात है। इस तरह की खतरनाक परिस्थितीयों मे देश सेवा करते हुए हमारे कई जवान अपने प्राणों की आहुती दे चुके है आज इसमें मध्यप्रदेश के लाल अजय सिंह तोमर का भी नाम जुड़ गया है।
जय हिन्द।