आखिर क्यों कहा जाता है मां नर्मदा को मध्य प्रदेश की जीवन रेखा, पढ़ें इसके पीछे का इतिहास

krisnameena
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वो जीवनदायिनी हैं। लाखों करोड़ों की आस्था का केंद्र हैं। जिसका कंकर कंकर शंकर हैं। जो शिवपुत्री हैं। जो सभ्यता की जननी हैं। जो आशुतोष भगवान ओंकारनाथ के चरण पखारती हैं। जो शंकराचार्य की तपोस्थली हैं। जिसका निर्मल शीतल नीर अनादिकाल से सतत प्रवाहमान हैं। जो सदा जल से परिपूरण हैं। जो अपनी कृपा से खेत खलिहानों को पुष्पित पल्लवित कर रही हैं। जिसका जल करोड़ो लोगो के लिए प्राणदान समान हैं। जिसके किनारे किनारे गांव , नगर, कस्बों और शहरों का विस्तार हैं। जो मध्यप्रदेश की आर्थिक ताकत हैं। जिसके जल के विद्युत कणों से लाखों लाख मेगावॉट बिजली पैदा हो रही हैं। उस प्राण दायिनी, जीवनदायिनी नर्मदा मईया का आज प्राकट्योत्सव हैं। ख़ुलासा फर्स्ट भगवती माँ नर्मदा के श्रीचरणों में दंडवत प्रणाम करता है।

त्वदीयं पाद पंकजम, नमामि देवी नर्मदे का शंखनाद आज चहुओर गूँजेगा। न केवल निमाड़ में बल्कि अमरकंटक से लेकर खम्बात की खाड़ी तक के 1300 किमी के फासले तक नर्मदे हर का जयघोष गूँजेगा।

जिस पुण्य सलिला का कंकर कंकर शंकर है। जो शिव की मानस पुत्री हैं। जो चीर कुंवारी है। जो धारा के विपरीत बहती हैं। जिसके तट पर अनेकानेक ऋषि मुनियों ने तप तपस्या की। जो शंकराचार्य की कर्मस्थली रही। जो कपिल मुनि को सर्वज्ञ ज्ञान देने वाली हैं। जिसके किनारे ज्योतिर्लिंग भगवान ओंकारनाथ विराज रहे हैं।जो मगर वाहिनी हैं। जिसका निर्मल शीतल जल 12 माह हिलोर मारता हैं। जो निरंतर प्रवाहमान हैं। जो करोड़ो लोगो की प्यास बुझा रही हैं। जिसके किनारे की धरती निर्मल जल से सिंचित हो पुष्पित पल्लवित हैं। जो वसुंधरा को फसलों से परिपूरन कर रही हैं। करोड़ो नर नारियों की आस्था का केंद्र हैं। ऐसी पुण्य सलिला “माई नरबदा” का शुभाशीष प्रदेश-अंचल पर सदा बना र

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जिसके तट पर आज उत्सव मनेगा। लाखो लाख दीपकों का उजास आज जिसके किनारे पर पसरेगा। जिसके जल में आज प्रज्वलित दीपकों का संसार सजेगा। हलवा प्रसादी का भोग लगेगा। चुनरी ओढाई जाएगी। दूध से अभिषेक होगा। ओंकारेश्वर उत्सव का मुख्य स्थान होगा लेकिन अमरकंटक से लेकर गुजरात तक उत्सव मनेगा। नर्मदापुरम ( होशंगाबाद ) का सेठानी घाट हो या नेमावर का सिद्धेश्वर क्षेत्र या महिष्मति ( महेश्वर ) के चित्ताकर्षक घाट सब जगह एक समान उत्सव मनेगा।

नर्मदा मध्यप्रदेश की प्राण शक्ति है। जिसके जल से लाखो मेगावॉट बिजली पैदा हो रही है और प्रदेश बिजली के मामले में आत्मनिर्भर है। अनेकानेक बांध और उससे निकली नहरों से लाखों करोड़ों हेक्टियर भूमि सिंचित हो रही है। आज वो नर्मदा अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रही है। जिसका प्रत्येक कंकर साक्षात शंकर है। उस नर्मदा का कंकर कंकर मशीनों से निकाला जा रहा है।
रेत खनन के नाम पर माँ नर्मदा को निर्वसन करने का ये पाप बदस्तूर जारी हैं। जिस बालू ओर काली रेत के लिए माँ का सीना छलनि किया जा रहा है, वे ही तो माँ नर्मदा का वस्त्र है जिसका रोज हरण हो रहा हैं। पुण्य सलिला नदी को “वाटर बॉडी” मानने वालों के लिए रेत एक बड़ा धंधा हो गई हैं। स्वयम को नर्मदा का मानस पुत्र कहने वालों के राज में ही मा रेवा सबसे ज्यादा दुर्दिनों के दिन देख रही है। नर्मदा जयंती पर ये संकल्प आमजन को नही, सरकार को करना होगा कि नर्मदा वस्त्रविहीन न हो। तभी ऐसे उत्सवों की सार्थकता हैं।
माँ नर्मदा ऐसे सभी जिम्मेदारो को सद्बुद्धि भी दे जो जुबां पर तो नर्मदा नर्मदा रटते है लेकिन रेत खनन के धंधे में अब भी लगे हैं।