नितिनमोहन शर्मा
मध्यप्रदेश में पतंगबाजी को लेकर क्या अलग अलग कानून है? क्या एक राज्य में दो विधान काम करते है? एक शहर के लिए अलग। दूसरे शहर के लिए अलग? ये सवाल मकर सक्रांति के त्योहार पर होने वाली पतंगबाजी को लेकर सामने आया है। एक तरफ जानलेवा मांजे से पतंगबाजी करने पर कार्रवाई हो रही है। अभिभावको तक को नही छोड़ा जा रहा है। मौत का मांजा बेचने वालों की दुकान ही नही, मकान तक तोड़ा जा रहा है। छतों तक की ड्रोन से निगरानी हो रही है।
बच्चो को समझाइश के साथ साथ अभिभावकों को हिदायतें दी जा रही है कि चाइना के मांजे से अगर आपका नोनिहाल पतंगबाजी करता पाया गया तो कार्रवाई आप पर होगी। दूसरी तरफ सन्नाटा है। न कोई कार्रवाई। न दिशा निर्देश। न जन जागरूकता का कोई अभियान। न जानलेवा डोर के कारोबारियों को कोई ताक़ीद-हिदायत। शुरुआती दो दिन की छुटपुट कारवाई के बाकी सब शून्य है। वह भी तब जबकि इसी शहर के एक होनहार युवा कुणाल टांक की जान जाते हुए बाल बाल बचा।
कुणाल के ललाट यानी कपाल पर आकर प्लास्टिक नायलोन की डोर आकर उलझी ओर इतनी ठोस जगह पर भी इतना गहरे अंदर तक उतर गई कि पूरे ललाट पर 13- 14 टांके आएं। कुणाल पर दैवीय कृपा रही। अगर ये डोर गले मे उलझती तो?? वही होता जो महाराष्ट्र के बीड़ में हुआ और गुजरात के बड़ोदरा में घटा। इन दोनों जगह के युवा, कुणाल जैसे खुशकिस्मत नही रहे। मांजा गले को काट गया और जान ले उड़ा।
इन्दौर के बगल उज्जैन में कलेक्टर आशीष सिंह समय रहते धारा 188 लगाकर इस जानलेवा मांजे के खिलाफ सख्त रुख अख्तियार करें हुए है और पुलिस प्रशासन का पूरा अमला नियमित इस मामले में मैदान पकड़े हुए है। दूसरी तरफ इन्दौर है। जहां प्रवासी भारतीय सम्मेलन के जरिये देश दुनिया के लोग जुटने वाले है। पूरी दुनिया की नजर जिस शहर पर है, वहां का तंत्र मौत के मांजे को लेकर निरपेक्ष बना हुआ है। वह भी तब, जब इस शहर के महज चार पांच थाना क्षेत्रों में ही ये कारोबार सिमटा हुआ है
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अब तीन दिन इन्दौर में ही डेरा डालने वाले हैं। पीएम नरेंद्र मोदी भी आने वाले है। गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा के तो प्रभार वाला यह जिला है। शहर पुलिस कमिश्नरी के तमगे को टांगे हुए भी है। बावजूद इसके इंदौर में जानलेवा मांजे का कारोबार बदस्तूर जारी हैं।