सतीश जोशी
सरकार लाख दावा करे कि पिछले दो वर्षो में वन क्षेत्र बढा है, खुश हो लो, पर वन (Forest) को सुरक्षित करने, वन संपदा के संरक्षण की चिन्ता उतनी नहीं है, जितनी होनी चाहिए। आज प्राकृतिक जंगलों को उजाड़ कर वहां कंक्रीट के जंगल तैयार किये जा रहे हैं। प्रकृति के प्रति मानव की संवेदनशीलता मृतप्राय होती जा रही है, जिससे मानवजाति विभिन्न जलवायविक समस्याओं का सामना कर रही है। वास्तव में पर्यावरण संबंधी अधिकांश समस्याओं की जड़ वनोन्मूलन ही है। वैश्विक ऊष्मण, बाढ़, सूखे जैसी समस्याएं वनों के ह्रास के कारण ही उत्पन्न हुई हैं। इसका समाधान भी पौधारोपण में ही छिपा है।
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पौधे लगाते हैं तो संरक्षण भी कीजिए
भारत में जन्मदिन के मौके पर लोगों से पौधे लगाने का आह्वान किया जाता रहा है, लेकिन शायद ही एक बड़ी आबादी इस पर जोर देती है! जो पौधे लगाते हैं वो संरक्षण की चिन्ता बहुत कम लोग करते हैं। यह फैशन बनता जा रहा है, ठीक वैसे ही जैसे मौसमी पौधारोपण अभियान। वास्तव में एक खुशहाल विश्व बनाना है, तो प्रकृति को सहेजने के लिए हम सभी को आने आना होगा। जो जंगल शेष हैं, उनकी रक्षा करनी होगी। साथ ही पौधरोपण के लिए हरेक स्तर से प्रयास करने होंगे। आपदा प्रबंधन को लेकर भी आम नागरिकों को जागरूक करना होगा। प्राकृतिक संतुलन के लिए जंगलों को बचाना बेहद जरूरी है।
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जंगल माफिया
देश के किसी भी राज्य में कम जंगल हो या ज्यादा घना जंगल, सबके दुश्मन जंगल माफिया हैं। वन कटाई, सरकारी और माफिया दोनो की ओर से जारी है। मोटी कमाई, वैध अवैध दोनो हक जंगल की दुश्मन है। सरकार का बढता राजस्व का लक्ष्य, येन केन प्रकारेण पूरा किया ही जा रहा है। देश की जरूरत बढती जा रही है। फर्नीचर से लेकर अन्य उत्पाद कागज आदि के लिए कट रहे जंगल उस तुलना में रोपे नहीं जा रहे। बढती हरियाली का प्रतिशत सैटेलाइट इमेज के जरिये कितना सही और कितना तय पैमाने से आंका जा रहा है, इस पर सवाल खड़े होते ही रहते हैं। इन सवालो के जवाब किसी रिपोर्ट में न मिलते हैं, न किसी शासकीय बही खाते का हिस्सा होते हैं। अन्य वन संपदा के भी यही हाल है। धरपकड के आंकडे तो मिल जाते हैं पर जंगल माफिया को क्या सजा हुई, यह बहुत कम सामने आता है। इस पर भी चिन्तन जरूरी है।
वन का दायरा बढने का दावा
केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु मंत्रालय द्वारा 17वीं भारत वन स्थिति रिपोर्ट-2021 के मुताबिक देश में वन और पेड़ आच्छादित भू-भाग का दायरा पिछले दो वर्षों में 2,261 वर्ग किलोमीटर बढ़ा है। देश में वन अच्छादित भू-भाग 8,09,537 वर्ग किलोमीटर तक विस्तृत हो गया है। इससे पहले 2017 की तुलना में 2019 में जंगल एवं वृक्षों के आवरण में 5,188 वर्ग किलोमीटर की बढ़ोतरी दर्ज की गयी थी। तीव्र आर्थिक विकास के साथ-साथ देश में हरियाली का बढ़ता ग्राफ जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से निपटने तथा सतत पोषणीय विकास की अवधारणा को अपनाने की दिशा में भारत सरकार की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करता है।
ताजा रिपोर्ट के अनुसार, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा, कर्नाटक और झारखंड क्रमश: पांच ऐसे राज्य हैं, जो बीते दो वर्षों में हरियाली बढ़ाने में सबसे आगे रहे हैं। मध्यप्रदेश आगे है वहीं क्षेत्रफल के हिसाब से देश का सबसे बड़ा वन क्षेत्र मध्य प्रदेश में है। प्रतिशतता के हिसाब से सबसे आगे मिजोरम है, जहां के 84.53 फीसदी भूभाग पर वन है। जंगल सृष्टि के खूबसूरत सृजनों में से एक है। ये धरती के फेफड़े की तरह कार्य करते हैं और पर्यावरण से प्रदूषक गैसों जैसे नाइट्रोजन आक्साइड, अमोनिया, सल्फर डाइ आकइड तथा ओजोन को अपने अंदर समाहित कर वातावरण में प्राणवायु छोड़ते हैं।
जंगल इसलिए जरूरी साथ ही जंगल वर्षा कराने, तापमान को नियंत्रित रखने, मृदा के कटाव को रोकने तथा जैव-विविधता को संरक्षित करने में भी सहायक हैं। जंगलों से उपलब्ध होने वाले दर्जनों उपदानों का उपभोग हम सब किसी न किसी रूप में करते ही हैं। प्रकृति के निकट रहनेवाले कई समुदायों के लिए जंगल जीवन-रेखा की तरह है। हालांकि औद्योगीकरण और नगरीकरण की प्रकिया के साथ जंगलों के प्रति मानव दृष्टिकोण भी बड़ी तेजी से बदला है।
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