फैटी लीवर और लीवर सिरोसिस पर जागरूकता बढ़ाने की जरूरत : डॉ. संजीव सहगल

Author Picture
By Ayushi JainPublished On: December 23, 2021

इंदौर : लीवर रोगों के बढ़ते मामलों और फैटी लीवर के दुष्प्रभाव के बारे में जागरूकता बढ़ाने की ज़रूरत। मैक्स हॉस्पिटल साकेत में हीपैटोलॉजी और लीवर ट्रांसप्लांट मेडिसिन के मुख्य निदेशक और प्रमुख डॉ. संजीव सैगल ने कहा कि लोगों की बदलती जीवनशैली से कैसे लीवर संबंधी डिसआॅर्डर होते हैं।

डॉ. संजीव सहगल ने कहा, ‘पिछले दो दशकों के दौरान जीवन की गुणवत्ता में बड़ा बदलाव आया है लेकिन आर्थिक तरक्की के कारण लाइफस्टाइल संबंधी कुछ स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां भी बढ़ने लगी हैं। लाइफस्टाइल में बदलाव, मोटापा और डायबिटीज के बढ़ते मामलों के कारण ‘लाइफस्टाइल स्वास्थ्य संकट’ बढ़ा है। इसमें निष्क्रिय लाइफस्टाइल और अल्कोहल का अधिक सेवन भी लीवर संबंधी बीमारियों पर सीधा असर डालते हैं।

वैसे तो कोशिकाओं में कुछ मात्रा में फैट का जमना सामान्य बात है लेकिन यदि यह 5 फीसदी से ज्यादा हो जाता है तो लीवर फैटी माना जाता है। अल्कोहल के अधिक सेवन से फैटी लीवर बढ़ता है जबकि कुछ ऐसे लोगों में भी यह विकसित होता है जो अल्कोहल सेवन नहीं करते। कोई लक्षण सामने नहीं आने के कारण फैटी लीवर का दशकों तक पता ही नहीं चल पाता है। लेकिन जब लीवर में सूजन आने लगती है तो तकलीफ होने लगती है जिसे स्टेटोहेपेटाइटिस कहा जाता है।

फैटी लीवर के शुरुआती चरणों में कोई लक्षण नहीं दिखता। लेकिन जब बीमारी बढ़ने लगती है तो मरीज को थकान, कमजोरी, भूख की कमी, मितली, पेट के ऊपरी हिस्से में हल्का दर्द या भारीपन महसूस होने लगता है। जांच कराने पर लीवर एंजाइम, डिसलिपिडेमिया, इंसुलिन का स्तर आदि बढ़ने का पता चलता है। फैटी लीवर की पहचान के लिए अल्ट्रासाउंड और फाइब्रोस्कैन भी कराया जाता है।