आदिवासी नायक ‘टंट्या’ को लेकर ‘दिव्य दृष्टि’.

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दिनेश निगम ‘त्यागी’

भाजपा नेतृत्व खासकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के मन में अचानक आदिवासी नायकों को लेकर प्रेम व सम्मान हिलोरे मार रहा है। पहले भगवान बिरसा मुंडा की स्मृति में बड़ा कार्यक्रम हुआ, इसके बाद टंट्या मामा की शहादत बताई गई। मुख्यमंत्री चौहान किसी मसले पर दिलचस्पी लें और उनके मंत्री होड़ में शामिल न हों, यह कैसे हो सकता है? कुछ मंत्री तो दिव्य दृष्टि होने का परिचय देते दिखे। जैसे इंदौर की एक महिला मंत्री ने कह दिया कि टंट्या मामा के नाम की ताबीज पहन लीजिए, कोरोना सहित हर असाध्य बीमारी रफूचक्कर हो जाएगी।

एक अन्य मंत्री ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को टंट्या मामा का अवतार ही बता दिया। वे यहीं नहीं रुके, बात-बात में टंट्या मामा को लुटेरा बोल गए। बस क्या था, विपक्ष ने इन मंत्रियों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। भाजपा के अंदर आदिवासी नायकों के प्रति उमड़ते प्रेम की वजह है वोटों की राजनीति। विधानसभा के पिछले चुनाव में कांग्रेस ने आदिवासी बाहुल्य सीटों में भाजपा को शिकस्त दे दी थी और भाजपा सत्ता से बाहर हो गई थी, तभी भाजपा सरकार को जिन आदिवासी नायकों की 15 साल तक याद नहीं आई, अब इन्हें अपना माई – बाप मानने को मजबूर है।लिहाजा, भाजपा में आदिवासी प्रेम दर्शाने की होड़ है और बिरसा मुंडा-टंट्या मामा जैसे नायक सभी के आराध्य बन रहे हैं।

कांग्रेस विधायकों को भी सता रहा यह डर

भाजपा और उसकी सरकार द्वारा आदिवासियों एवं उनके नायकों को लेकर की जा रही राजनीति के कारण कांग्रेस नेताओं की पेशानी पर बल पड़ने लगे हैं। हाल ये है कि एक आदिवासी विधायक ओमकार सिंह मरकाम द्वारा कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखकर चिंता करना पड़ गई। दरअसल, कांग्रेस जनजातीय विभाग के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद लगभग तीन साल से खाली है। कांग्रेस आलाकमान इस पर किसी की नियुक्ति नहीं कर सका है।

ओमकार सिंह ने लिखा है कि एक तरफ आदिवासी वर्ग को अपने पाले में लाने के लिए भाजपा पूरी ताकत झोंक रही है, दूसरी तरफ कांग्रेस में जनजातीय विभाग का अध्यक्ष पद ही तीन साल से खाली है। हाल में हुए उप चुनाव के नतीजों से स्पष्ट हुआ है कि विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा से रूठा आदिवासी मतदाता उसकी तरफ वापस आ रहा है। कांग्रेस की परंपरागत आदिवासी बाहुल्य जोबट विधानसभा सीट में भाजपा की जीत इसका प्रमाण है। यही वजह है कि प्रदेश कांग्रेस अपने स्तर पर आदिवासी मतदाताओं को साधने की कोशिश ही नहीं कर रही, बल्कि भाजपा के जवाब में कार्यक्रम भी आयोजित कर रही है। पार्टी के आदिवासी विधायक का सोनिया गांधी को लिखा पत्र ऐसी ही चिंता की अभिव्यक्ति और डर है।

कांग्रेस में कमलनाथ के लिए चुनौती कम नहीं-

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष एवं विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष कमलनाथ किसी पद से हटें या न हटें, लेकिन पार्टी के अंदर उनके लिए चुनौती कम नहीं है। प्रदेश की जनजागरण यात्रा पर निकले वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह को छोड़ दें तब भी प्रदेश में वे नेता सक्रिय हो रहे हैं, जिन्हें कमलनाथ ने किनारे कर रखा है। इनमें एक हैं खंडवा के टिकट से वंचित पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव। अरुण ने हाल ही में अपने भाई पूर्व कृषि मंत्री सचिन यादव के साथ खलघाट में बड़ी किसान रैली कर ताकत दिखाई है।

खलघाट इनके पिता पूर्व उप मुख्यमंत्री स्वर्गीय सुभाष यादव का शक्ति केंद्र रहा है। दूसरे हैं पूर्व नेता प्रतिपक्ष स्वर्गीय जमुना देवी के राजनीतिक उत्तराधिकारी उनके भतीजे उमंग सिंगार। इस समय जब राजनीति के चौंसर में आदिवासी हैं तब उमंग गौरव कलश यात्रा निकाल रहे हैं। यह यात्रा धार से प्रारंभ हुई है और पूरे मालवा-निमाड़ अचंल का भ्रमण करेगी। तीसरे पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय अर्जुन सिंह के बेटे पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह राहुल हैं। अजय सिंह भी विंध्य और बुंदेलखंड अंचल में एक यात्रा निकालने वाले हैं। इसकी तैयारी लगभग पूरी हो चुकी है। स्पष्ट है कि कमलनाथ को हाईकमान से ही खुद को नहीं बचाना, कांग्रेस के अंदर से मिलने वाली संभावित चुनौती से भी निबटना है।

राजनीति में ऐसे आते हैं ‘अर्श से फर्श’ पर

राजनीति में कौन कब ‘अर्श से फर्श’ पर पहुंच जाए और ‘फर्श से अर्श’ पर, कोई नहीं जानता। विंध्य अंचल में ऐसे दो कद्दावर नेताओं राजेन्द्र शुक्ला और गिरीश गौतम के चर्चे इन दिनों हर जुबान पर हैं। पहले लगभग पूरे पंद्रह साल शुक्ला मंत्री रहे और ताकतवर भी। वे जो चाहते, होता था जबकि दूसरे नेता गौतम विधायक होने के बावजूद फर्श पर थे। हालांकि गौतम ने अंचल में कांग्रेस के सबसे कद्दावर नेता श्रीनिवास तिवारी को हराकर जीत हासिल की थी। फिर भी हालात ये थे कि एक जिले का होने के बावजूद राजेन्द्र शुक्ल इन्हें न कार्यक्रमों में बुलाते थे, न सम्मान देते थे और न ही कोई महत्व।

किस्मत का करिश्मा देखिए, समय बदला और पांसा पलटा गया। अब पंद्रह साल तक ताकतवर रहे शुक्ला विधायक तो हैं लेकिन ताकतवर नहीं। अब दूसरे नेता गौतम का भाग्य साथ दे रहा है। वे विधानसभा अध्यक्ष हैं। मजेदार बात यह है कि गौतम पहले के नेता शुक्ला की तरह बदले की भावना से कोई बर्ताव नहीं करते। एक दल में रहकर गिले-शिकवे भुला कर वे लूप लाइन में चल रहे शुक्ला को कार्यक्रमों में बुलाते ही नहीं, सम्मान भी देते हैं। यही है समय का खेल। इसलिए ताकत आने पर कभी किसी को घमंड नहीं करना चाहिए और एक दूसरे का सम्मान करते रहना चाहिए। न जाने कब पांसा पलट जाए जैसा, विंध्य अंचल के इन दो नेताओं के मामले में हुआ।

‘हॉट सीट’ बन गई राजधानी की ‘हुजूर सीट’-

राजधानी की हुजूर विधानसभा सीट इस समय सबसे चर्चित और हॉट सीट बनकर उभर रही है। इसकी एक वजह हैं यहां से विधायक रामेश्वर शर्मा। शर्मा ने अपनी छवि कट्टर हिंदूवादी और धाकड़ नेता की बना रखी है। हालात ऐसे बने कि कांग्रेस के दिग्विजय सिंह जैसे नेता को इनके खिलाफ मोर्चा संभालना पड़ा। खास बात यह है कि रामेश्वर इस राजनीतिक जंग में दिग्विजय से उन्नीस साबित नहीं हुए। दोनों की रामधुन, ट्वीट और बयान चर्चा के केंद्र में रहे। हुजूर सीट इसलिए भी चर्चित है क्योंकि इसे भाजपा का गढ़ माना जाता है।

इस नाते भाजपा के हर नेता की नजर इस सीट पर है। भगवानदास सबनानी टिकट न मिलने पर यहां से निर्दलीय चुनाव लड़ चुके है। भाजपा में इस समय वे ताकतवर हैं। प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा के सामने यदि विधानसभा चुनाव लड़ने की नौबत आई तो वे भी हुजूर विधानसभा सीट को ही पसंद करते हैं। रामेश्वर से पहले यहां से भाजपा के टिकट पर विधायक रहे जितेंद्र डागा अब कांग्रेस में हैं। लिहाजा, आने वाले समय में इस सीट पर कब्जे को लेकर बड़ा राजनीतिक घमासान देखने को मिल सकता है। मौजूदा विधायक रामेश्वर इस लड़ाई को जीत पाते हैं या नहीं, यह देखने लायक होगा।