अयोध्या में लगे पारिजात पौधे का महत्व

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आइए जानते हैं… दिव्य (पौधे) वृक्ष पारिजात के बारे में जिसे प्रधानमंत्री ने अयोध्या में रामलला मंदिर भूमि-पूजन से पहले अयोध्या की पावन भूमि पर लगाया.. भगवान रामजी से इस वृक्ष का क्या संबंध है। बता दें पारिजात के फूल को भगवान हरि के श्रृंगार और पूजन में प्रयोग किया जाता है, इसलिए इस मनमोहक और सुगंधित पुष्प का हिन्दू धर्म में बहुत महत्व माना जाता है।

ऐसी भी मान्यता है कि पारिजात को छूने मात्र से ही व्यक्ति की थकान मिट जाती है। पारिजात वृक्ष की एक खास बात ये भी है कि इसमें बहुत बड़ी मात्रा में फूल लगते हैं।एक दिन में इसके कितने भी फूल तोड़े जाएं, अगले दिन इस फिर बड़ी मात्रा में फूल खिलते हैं, ये फूल रात में ही खिलता है और सुबह होते ही इसके सारे फूल झड़ जाते हैं।इसलिए इसे रात की रानी भी कहा जाता है।

पूजा के लिए इस वृक्ष से फूल तोड़ना पूरी तरह से निषिद्धहै, कहा जाता है कि धन की देवी लक्ष्मी को पारिजात के फूल अत्यंत प्रिय हैं। पूजा-पाठ के दौरान मां लक्ष्मी को ये फूल चढ़ाने से वो प्रसन्न होती हैं।खास बात ये है कि पूजा-पाठ में पारिजात के वे ही फूल इस्तेमाल किए जाते हैं जो वृक्ष से टूटकर गिर जाते हैं।ऐसा कहा या माना जाता है क‍ि 14 साल के वनवास के दौरान सीता माता इन फूलों से ही अपना श्रृंगार करती थीं।

बाराबंकी जिले के पारिजात वृक्ष को महाभारतकालीन माना जाता है, मान्यता है कि परिजात वृक्ष की उत्पत्ति समुद्र मंथन से हुई थी, जिसे इन्द्र ने अपनी वाटिका में लगाया था। कहा जाता है कि अज्ञातवास के दौरान माता कुंती ने पारिजात पुष्प से शिव पूजन करने की इच्छा जाहिर की थी।माता की इच्छा पूरी करने के लिए अर्जुन ने स्वर्ग से इस वृक्ष को लाकर यहां स्थापित कर दिया था।

हरिवंश पुराण में पारिजात वृक्ष को कल्पवृक्ष भी कहा गया है। मान्यता है कि स्वर्गलोक में इसको स्पर्श करने का अधिकार सिर्फ उर्वशी नाम की अप्सरा को था। इस वृक्ष के स्पर्श मात्र से ही उर्वशी की सारी थकान मिट जाती थी, पारिजात अपने औषधीय गुणों के लिए भी जाना जाता है।हर दिन इसके एक बीज के सेवन से बवासीर रोग एवं हृदय रोग से बचा जा सकता है। इतना ही नहीं पारिजात की पत्तियों को पीस कर शहद में मिलाकर खाने से सूखी खांसी भी ठीक हो जाती है।