हर सीता की लाज बचाते ,
राम कर रहे कितना रण है ।
पापी दिखते गली – गली में ,
घट – घट बसे यहां रावण है ।
आबरु लुट गई बालाओं की ,
जिन्दा अंधेरे में हर क्षण है ।
राजनीति में नीति गुमशुदा ,
बेटी बचाओ ये कैसा प्रण है ।
पापी दिखते गली – गली में ,
घट – घट बसे यहां रावण है ।
कत्लेआम हो रहे हर जगह ,
इसके पीछे क्या कारण है ।
सीता जैसी नहीं पवित्रता ,
राम जैसा नहीं आचरण है ।
पापी दिखते गली – गली में ,
घट – घट बसे यहां रावण है ।
अधर्म बढ़ रहा इस जगत में ,
वंचित हो रहा धर्म धारण है ।
पारदर्शी अब नहीं है जीवन ,
भीतर – बाहर सब आवरण है ।
पापी दिखते गली – गली में ,
घट – घट बसे यहां रावण है ।
विजयादशमी पर्व की हार्दिक बधाइयों के साथ……
● कवि प्रोफेसर श्याम सुन्दर पलोड़ , इंदौर