तुलसी सिलावट इंदौर के मुख्यमंत्री, कैलाश विजयवर्गीय प्रमुख सचिव, कृष्णमुरारी मोघे संभागायुक्त, शंकर लालवानी-गौरव रणदीवे कलेक्टर, विधायक महेन्द्र हार्डिया निगमायुक्त, तो आकाश विजयवर्गीय एडीएम की भूमिका में…
संजय शुक्ला
इंदौर एक के कांग्रेस विधायक
(व्यंग्य : बैठे-बैठे मन में कुछ यूं विचार उपजे कि…)
कहते हैं जिसका काम उसी को साजे और करे तो बुद्धु बाजे… लेकिन इस कोरोना काल में इंदौर में उल्टी ही गंगा बह रही है… जनता द्वारा जिताई गई कांग्रेस की कमलनाथ सरकार को धन और छल के बल पर झपटने वाली वर्तमान शिवराज सरकार ने एक तरह से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के कहे अनुसार ‘आपदा को अवसर’ मान लिया है… वर्तमान सरकार के नेता अपनी नेतागिरी करने का एक भी अवसर नहीं छोडऩा चाहते… भाजपाई इतने उतावले हो गए कि क्राइसिस मैनेजमेंट में सर्वसम्मति से होने वाले निर्णयों की घोषणा भी वे अधिकारियों की तरह करने लगे…
पहलवान यानी तुलसीराम सिलावट जी ने बहती गंगा में अपनी बनेठी ऐसी धोई कि उन्हें भाजपा ने जल संसाधन मंत्री का पद ही सौंप दिया… लेकिन पहलवान तो पहलवान ठहरे… वे इंदौर में दाव-पेंच ऐसे लड़ा रहे हैं कि मानों इंदौर के मुखिया यानी मुख्यमंत्री पद का अलग से दायित्व उन्हीं के पास हो… वे सांवेर में घर-घर इस तरह से तुलसी लगा रहे थे कि अब उन्हें खुद ही कोरोना के चलते अपने घर में कैद होना पड़ा… खैर ईश्वर से प्रार्थना है कि पहलवान जल्द अखाड़े में उतरेें और अपनी करतबबाजी इसी तरह जारी रखें…
अब बात करें कटे हाथ के ठाकुर की… आप समझ ही गए होंगे इंदौर में कैलाश विजयवर्गीय जी ही ऐसे भाजपा के कद्दावर नेता हैं जिन्हें अपना गृह क्षेत्र छोड़ बार-बार दिल्ली दरबार में हाजरी लगाने के साथ-साथ इधर-उधर के राज्यों में ‘विजय की सेटिंग’ करने के लिए भेज दिया जाता है… कैलाश जी भी शाम, दाम, दंड, भेद की नीति विजयश्री पाने के लिए अपनाते हैं… अगर तब भी बात नहीं बने तो उनके पास एक और नीति है, जिसके बारे में सिर्फ वे ही जानते हैं… फिलहाल वे इस कोरोना काल में इंदौर में प्रमुख सचिव की भूमिका निभा रहे हैं और फोन के जरिए ‘अपनी पार्टी’ के संभागायुक्त, कलेक्टर से लेकर निगमायुक्त और ‘एडीएम पुत्र’ को ‘इशारे’ करते रहते हैं…
अब बात करें पार्टी के संभागायुक्त यानी कृष्णमुरारी मोघे जी की… वे तो बीच में ‘फुफाजी’ की भूमिका निभा रहे थे… उन्हें जैसे-तेसे ‘भतीजों’ ने मनाया, तब कहीं जाकर मोघे जी का चेहरा थोड़ा खिला… चूंकि उनके पास संभाग का जिम्मा है तो वे घोषणा भी एक अधिकारी की भूमिका के रूप में ही कर रहे हैं और मीडिया में बाइट देते नजर आते हैं कि इंदौर फलां से फलां तारीख तक खुलेगा… हमने इस विषय पर ये निर्णय लिया… हमने उस विषय पर वो निर्णय लिया… आदि।
इधर, सांसद शंकर लालवानी जी और नगर अध्यक्ष गौरव रणदीवे जी भी कलेक्टर द्वय की भूमिका में हैं… हालांकि क्राइसिस मैनेजमेंट ग्रुप की बैठक में शहर हित में निर्णय सर्वसम्मति से लिया जाता है… इन निर्णयों की घोषणा-आदेश-निर्देश कलेक्टर को करना होती है… किन्तु ये भाजपा सांसद और नगर अध्यक्ष का उतावलापन ही है जो उन्हें कलेक्टरी करने पर मजबूर कर देता है और वे सीधे अपनी फेसबुक पर लाइव आते हैं या मीडिया साथियों के पास झट से जाकर शहर को सूचित करते हैं कि हमने शहर हित में निर्णय लिया है कि शहर में एक दिन लेफ्ट तरफ की दुकानें खुलेंगी, तो दूसरी राइट तरफ की… क्योंकि हमें कोरोना से जुड़े सूत्रों से पता चला है कि कोरोना लेफ्ट-राइट की भूमिका में वार करेगा… इसलिए जिस दिन लेफ्ट में कोरोना आएगा उस दिन राइट की दुकानें खुलेंगी और जिस दिन कोरोना अपना कहर राइट में ढहाएगा उस दिन हम लेफ्ट की दुकानें खोलेंगे… इससे कारोबार भी चलता रहेगा और कोरोना से भी बच जाएंगे…
अब आते हैं हमारे बाबा यानी विधायक महेन्द्र हार्डिया जी… वे शहर खुल जाने के बावजूद कई दिनों तक लॉकडाउन का पालन करते रहे… लेकिन जैसे ही अंडे का ठेला पलटा, जैसे ही निगम ने ज्यादती की, वैसे ही विधायक जी ने अवतार लिया और निगमायुक्त के रूप में प्रकट हो गए… बाबा ने भी ऐसा वरदह चलाया कि अगले ही दिन निगम ने कह दिया… तुम जानो, तुम्हारा काम जाने… उस दिन से आज का दिन है ना चालान कटाई की खबरें सुर्खियों में हैं ना कोई ठेला पलटा… वो बात अलग है कि भाजपाई से अधिकारी बने नेता बयानबाजी से बार-बार पलटते रहे… निगमायुक्त हो तो ऐसा होना चाहिए जो अपनी ही प्रशासनिक मशीनरी यानी पार्टी के खिलाफ ही आंदोलन की चेतावनी दे दे…
अब बात करें इंदौर के सबसे युवा विधायक आकाश विजयवर्गीय जी की तो वे कोरोना काल में लॉकडाउन के दौरान ऐसे पिच पर जमे रहे कि एडीएम की तरह अनुमतियों के चौके-छक्के लगाते रहे… पुत्र जो तो ठहरे कद्दावर नेता के… वे विधायक भले ही तीन नम्बर के हों, लेकिन अपने क्षेत्र में नीति पूरी दो नम्बर वाली ही चलाते हैं… अभी जब अंडे का ठेला पलटा था तो यह पोस्ट भी जमकर वायरल की गई कि इन निगम वालों के लिए तो हमारे आकाश भैया ही ठीक हैं, जो बल्लेबाजी कर अच्छे-अच्छों के डंडे उखाड़ देते हैं…
अपने चक्र से सबको चकरघिन्नी करने वाले टोपीधारी पूर्व विधायक सुदर्शन गुप्ता जी भी अपने पुराने रौब से अभी तक उबर नहीं पाए और जनहित के छोटे-मोटे कार्यों में भी एक भ्रष्ट बाबू की तरह अडंगेबाजी करते रहते हैं, जब तक उन्हें भेंट-पूजा ना चढ़ा दी जाए… मामा जी की वापसी के बाद से बाबू जी का चक्र और तीव्र गति से चकरा रहा है… वो इतना तीव्र घूमता है कि क्षेत्र में होने वाले विकास की गर्दन तक काटने को उतारू है…
इन सबका कुल मिलाकर नतीजा यह निकल रहा है कि प्रशासनिक कामकाज संभाल रहे अधिकारियों ने एक गुप्त बैठक बुलाई और अज्ञात संसद में प्रस्ताव पारित करने वाले हैं कि इन सारे नेताओं का अधिकारियों का दायित्व सौंपा जाए और अधिकारियों को चुनाव लड़वाया जाए… 27 सीटें तो अभी खाली है, तो 27 अधिकारी पहली खेप में फिलहाल ही एडजस्ट हो जाएंगे… देश के इतिहास में ऐसा पहली बार ही नहीं हुआ है कि कोई अधिकारी नेता ना बना हो… पूर्व केन्द्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा आईएएस से त्याग-पत्र देकर नेता बने… इसी तरह आईएएस इंदौर कलेक्टर रहे अजीत जोगी भी नेता बने और राज्यसभा से लेकर छत्तीसगढ़ के सीएम तक रहे… पूर्व आईपीएस रुस्तम सिंह भाजपा की पिछली सरकार में कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं… और भी कई अधिकारी जब नेताओं की टांग अड़ाई देखते हैं तो उनके मन में भी यह ख्याल आता है कि क्यों ना अफसरी छोड़ खादी पहन लूं…