AIMIM: बिहार विधानसभा चुनाव 2020 के नतीजों की तस्वीर जैसे-जैसे साफ हो रही है, राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई हैं। रुझानों में सबसे बड़ा और चौंकाने वाला उलटफेर असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) ने किया है। खास तौर पर मुस्लिम बहुल सीमांचल इलाके में AIMIM ने अपनी मजबूत पकड़ दिखाते हुए कई दिग्गजों को हैरान कर दिया है।
अब तक के आंकड़ों के अनुसार, AIMIM के उम्मीदवार बिहार की करीब 6 विधानसभा सीटों पर निर्णायक बढ़त बनाए हुए हैं। यह प्रदर्शन इसलिए भी अहम है क्योंकि इससे सीधे तौर पर राष्ट्रीय जनता दल (RJD) और कांग्रेस के नेतृत्व वाले महागठबंधन के चुनावी गणित को बड़ा झटका लगा है। सीमांचल को पारंपरिक रूप से RJD-कांग्रेस का गढ़ माना जाता रहा है, लेकिन ओवैसी की पार्टी ने यहां मुस्लिम वोटों में बड़ी सेंधमारी की है।
सीमांचल में AIMIM का दमदार प्रदर्शन
AIMIM ने इस चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा की RLSP और मायावती की BSP के साथ मिलकर ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेक्युलर फ्रंट (GDSF) बनाया था। पार्टी ने मुख्य रूप से सीमांचल की दो दर्जन सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। रुझानों के मुताबिक, पार्टी का यह दांव सफल होता दिख रहा है।
जिन सीटों पर AIMIM के उम्मीदवार बढ़त बनाए हुए हैं, उनमें अमौर, कोचाधामन, जोकीहाट, बायसी, बहादुरगंज और किशनगंज जैसी सीटें शामिल हैं। इन सभी सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं की संख्या निर्णायक भूमिका में है।
महागठबंधन का खेल बिगाड़ रहे ओवैसी?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ओवैसी की पार्टी का यह प्रदर्शन सीधे तौर पर तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाले महागठबंधन को नुकसान पहुंचा रहा है। कई ऐसी सीटें हैं जहां RJD या कांग्रेस के उम्मीदवार मामूली अंतर से पीछे चल रहे हैं, और वहां AIMIM को मिले वोट निर्णायक साबित हो रहे हैं।
चुनाव प्रचार के दौरान भी तेजस्वी यादव और कांग्रेस के नेताओं ने ओवैसी पर ‘वोट कटवा’ होने और परोक्ष रूप से बीजेपी को फायदा पहुंचाने का आरोप लगाया था। अब शुरुआती रुझान इन आरोपों को बल देते दिख रहे हैं। AIMIM ने उन मुद्दों को उठाया जिन्हें RJD और कांग्रेस नजरअंदाज करते रहे, जैसे- सीमांचल का पिछड़ापन, शिक्षा और स्वास्थ्य की कमी, और नागरिकता संशोधन कानून (CAA) का डर। इस रणनीति ने पार्टी को मुस्लिम युवाओं के बीच लोकप्रिय बनाया।
क्या कहते हैं सियासी मायने?
बिहार में AIMIM की यह बढ़त सिर्फ चुनावी नतीजों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके दूरगामी राजनीतिक मायने हैं। यह इस बात का संकेत है कि बिहार का मुस्लिम मतदाता अब किसी एक गठबंधन का बंधुआ वोटर नहीं रहा है और अपने लिए एक नए राजनीतिक विकल्प की तलाश में है। ओवैसी ने इसी खाली जगह को भरने की कोशिश की और वह इसमें काफी हद तक सफल होते दिख रहे हैं।
हालांकि अभी अंतिम नतीजे आने बाकी हैं, लेकिन यह साफ है कि AIMIM ने बिहार की राजनीति में, खासकर सीमांचल में, एक मजबूत ताकत के रूप में दस्तक दे दी है।











