बिहार चुनाव ने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की व्यस्तता बढ़ा दी है। वे शुक्रवार से अगले 15 दिनों तक लगातार बिहार के दौरे पर रहेंगे। इसका कारण यह है कि भाजपा और एनडीए ने उन्हें 52 से अधिक महत्वपूर्ण सीटों पर चुनावी जिम्मेदारी सौंपी है। ये सीटें मुख्य रूप से यादव और ओबीसी बाहुल्य हैं, जिन्हें हमेशा से बिहार में किसी भी दल की सरकार बनाने या बिगाड़ने में निर्णायक माना जाता रहा है।
मध्य प्रदेश और बिहार भाजपा के कुछ वरिष्ठ नेताओं से प्राप्त जानकारी के अनुसार, डॉ. यादव को इन सीटों पर कम से कम एक से चार बार तक चुनावी सभाओं में उतारा जाएगा। वे इन अवसरों पर बिहारी मतदाताओं से संवाद करेंगे। रैलियों के दौरान वे वाहन पर सवार होने के साथ-साथ उम्मीदवारों के साथ पैदल भी प्रचार करेंगे। इसके अलावा, वे नुक्कड़ सभाओं में हिस्सा लेंगे और सामाजिक समरसता सम्मेलनों के माध्यम से द्विपक्षीय संवाद भी करेंगे। इस शुक्रवार को वे चंपारण की बगाहा, सिगटा और सहरसा सीटों पर जाएंगे। इससे पहले, दिवाली से दो दिन पहले मुख्यमंत्री ने बिहार में चार सीटों पर चुनावी सभाएं कर चुकी थीं।
शिवराज और सिंधिया को मिली बिहार जीत की जिम्मेदारी
केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान और ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी बिहार में भाजपा की जीत सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। पार्टी सूत्रों के अनुसार, चौहान शुक्रवार को बिहार का दौरा करेंगे। देशभर में उन्हें मतदाताओं के बीच घुल-मिलने वाले नेता के रूप में जाना जाता है और मामा के रूप में उनकी खास पहचान है। उन्हें ऐसे क्षेत्रों और सीटों पर भेजा जाएगा, जहां जनता को ऐसे प्रतिनिधि की आवश्यकता है जो सीधे जनता के बीच रहकर उनके मुद्दों को समझ सके।
मध्य प्रदेश में विधानसभा और लोकसभा में सबसे अधिक जीत का रिकॉर्ड बनाने वाले प्रदेश भाजपा के पूर्व अध्यक्ष और खजुराहो सांसद वीडी शर्मा को पटना जोन में बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई है। वे अब बिहार में भी एमपी की तर्ज पर बूथ मैनेजमेंट में सक्रिय हैं। शर्मा को पटना जोन की 8 लोकसभा और 42 विधानसभा सीटों की देखरेख का कार्य दिया गया है, और वे विशेष रूप से बूथ मैनेजमेंट पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।
यादव मतदाता बनते हैं चुनावी जीत की कुंजी
बिहार में जातीय समीकरण का चुनावी परिदृश्य पर बड़ा असर रहा है। इसी कारण एनडीए, इंडिया गठबंधन और अन्य पार्टियों ने सीटों के बंटवारे में जातीय समीकरण को अहम रखा है। पिछड़ा और अति-पिछड़ा वर्ग चुनाव में एक बड़ा वोट बैंक बनाता है, वहीं यादव मतदाता भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री खुद यादव समुदाय से आते हैं, इसलिए भाजपा उन्हें यादव बाहुल्य सीटों पर एक प्रमुख चेहरे के रूप में उतारना चाहती है। चुनावी विशेषज्ञों का कहना है कि पार्टी यह संदेश देना चाहती है कि वे यादव समुदाय को महत्व देती है, और इसका उदाहरण मध्यप्रदेश में यादव मुख्यमंत्री का होना है।









