नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा का विशेष महत्व है। इन्हीं में एक प्राचीन और अद्वितीय विधान है नवपत्रिका पूजन, जिसे पूर्वी भारत के राज्यों – पश्चिम बंगाल, असम, बिहार और ओडिशा में अत्यधिक श्रद्धा से किया जाता है। हालांकि समय के साथ अब यह परंपरा देशभर में लोकप्रिय हो चुकी है। बंगाल में इसे खासतौर पर कलाबौ पूजा कहा जाता है और इसे कुलकायिनी माता की आराधना भी माना जाता है।
नवपत्रिका का अर्थ और महत्व
“नवपत्रिका” शब्द का अर्थ है – नौ पत्तियों का समूह। धार्मिक मान्यता के अनुसार ये नौ पत्तियां मां दुर्गा के नौ स्वरूपों का प्रतीक मानी जाती हैं। इन्हें एक साथ इकट्ठा कर केले के पौधे के साथ पीले वस्त्र में लपेटा जाता है। फिर इसे देवी का जीवंत रूप मानकर पूजा स्थल या पंडाल में स्थापित किया जाता है। यह अनुष्ठान देवी की शक्ति और प्रकृति की आराधना का अनोखा प्रतीक है।
कौन-सी नौ पत्तियां होती हैं शामिल?
नवपत्रिका पूजन में जिन पौधों की पत्तियां ली जाती हैं, वे जीवन, स्वास्थ्य और कृषि सम्पन्नता से जुड़े माने जाते हैं। इनमें शामिल हैं –
- केला
- हल्दी
- बेल पत्र (बिल्व पत्र)
- कदंब
- जयंती
- अशोक
- अरंडी
- धान की बालियां
- अनार
ये सभी पौधे मिलकर समृद्धि, शक्ति, औषधीय गुण और धरती की उर्वरता का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसीलिए इस पूजन को प्रकृति और शक्ति की संयुक्त साधना कहा जाता है।
नवपत्रिका पूजन का समय
पश्चिम बंगाल और असम में नवपत्रिका पूजन मुख्यतः सप्तमी तिथि को किया जाता है। वर्ष 2025 में सप्तमी का दिन 29 सितंबर, सोमवार को पड़ेगा। अन्य राज्यों में कई स्थानों पर इसे महाअष्टमी या महानवमी को भी किया जाता है। इस दिन देवी दुर्गा की पूजा के साथ नवपत्रिका को भी देव रूप मानकर अर्चना की जाती है।
पूजन की विधि
- प्रातःकाल स्नान करके भक्त शुद्ध भाव से नौ पत्तियों को लाते हैं।
- इन पत्तियों को केले के पौधे के साथ पीले वस्त्र में बांधा जाता है।
- पूजन स्थल या पंडाल में इसे देवी दुर्गा का स्वरूप मानकर स्थापित किया जाता है।
- धूप, दीप, मंत्रोच्चार और नैवेद्य अर्पित कर पूरी श्रद्धा से आराधना की जाती है।
- पूजा के बाद भक्त इसे प्रणाम कर देवी से शक्ति, स्वास्थ्य और समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व
नवपत्रिका पूजन का सबसे बड़ा संदेश यह है कि देवी केवल मंदिरों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि प्रकृति के हर अंश में उनका वास है। नौ पौधों की यह पूजा हमें यह याद दिलाती है कि जल, वायु, अन्न, वृक्ष और धरती स्वयं देवी का स्वरूप हैं। पश्चिम बंगाल में इसे कलाबौ पूजा कहा जाता है और किसानों के लिए इसका महत्व सबसे अधिक है। ऐसा विश्वास है कि इस अनुष्ठान से खेतों में अच्छी फसल होती है और सालभर कृषि में समृद्धि बनी रहती है।
नवरात्रि के इस विशेष पूजन से न केवल आध्यात्मिक शांति प्राप्त होती है, बल्कि जीवन में स्वास्थ्य, सुख और सम्पन्नता भी बढ़ती है। यही कारण है कि पूर्वी भारत में दुर्गा पूजा के दौरान नवपत्रिका पूजन को सर्वोपरि स्थान दिया जाता है और इसे प्रकृति व शक्ति की संयुक्त आराधना का दिव्य प्रतीक माना जाता है।
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