हिंदू धर्म में संकष्टी चतुर्थी का विशेष स्थान है। इस दिन भक्त गणेश जी की पूजा करके जीवन की सभी बाधाओं से मुक्ति और सुख-समृद्धि की प्राप्ति का आशीर्वाद पाते हैं। हर माह आने वाली चतुर्थी तिथियों में आश्विन मास की संकष्टी चतुर्थी को “विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी” कहा जाता है। इसे गणेश जी की आराधना के लिए बेहद शुभ दिन माना जाता है।
व्रत की तिथि और समय
पंचांग के अनुसार, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 10 सितंबर 2025 को दोपहर 3 बजकर 37 मिनट से आरंभ होगी और अगले दिन 11 सितंबर 2025 को दोपहर 12 बजकर 45 मिनट तक रहेगी। उदया तिथि को आधार मानकर यह व्रत 10 सितंबर (बुधवार) को रखा जाएगा।
चंद्रोदय का समय
संकष्टी चतुर्थी पर चंद्र दर्शन का विशेष महत्व है। इस दिन व्रत कथा और पूजा संपन्न करने के बाद रात में चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है। वर्ष 2025 में यह संकष्टी 10 सितंबर को पड़ रही है और उस दिन चंद्रोदय रात 8 बजकर 06 मिनट पर होगा। चंद्रमा के दर्शन के बाद ही व्रत का पारण करने का विधान है।
संकष्टी चतुर्थी की पूजा विधि
- व्रत के दिन सुबह सबसे पहले घर और पूजा स्थल को शुद्ध करें।
- भगवान गणेश की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें और संकल्प लें।
- कलश स्थापित कर उसमें गंगाजल भरें।
- गणेश जी के सामने दीपक, धूप और अगरबत्ती जलाएं।
- गणपति को चंदन, अक्षत, दूर्वा, लाल फूल अर्पित करें।
- मोदक, लड्डू, गुड़ और फल का भोग लगाएं।
- गणेश जी को लाल वस्त्र और श्रृंगार अर्पित करें।
- “ॐ गं गणपतये नमः” मंत्र का 108 बार जप करें।
- संकष्टी चतुर्थी की कथा का श्रवण या पाठ करें।
- अंत में चंद्रोदय के समय चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत का समापन करें।
विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी का महत्व
गणेश जी को विघ्नहर्ता कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से जीवन के सभी विघ्न-बाधाएं दूर होती हैं। इसके साथ ही शिव परिवार की पूजा करने से और भी अधिक शुभ फल प्राप्त होता है। इस व्रत को करने वाले साधक के कार्य निर्विघ्न पूरे होते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि तथा शांति का वास होता है।
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