बाल रूप से लेकर योग मुद्रा तक, यहां जानें बप्पा के हर स्वरूप का महत्व

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By Swati BisenPublished On: August 27, 2025
Ganesh ji mudra

भारत में गणेश चतुर्थी का पर्व हर साल बेहद श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस वर्ष आज 27 अगस्त 2025, बुधवार से गणेश उत्सव की शुरुआत हो रही हैं, जो 10 दिनों तक धूमधाम से मनाया जाएगा। इन दिनों भक्त अपने घरों और पंडालों में गणपति बप्पा की प्रतिमा स्थापित कर पूजा-अर्चना करते हैं और अंत में विसर्जन के साथ उन्हें विदाई देते हैं।


गणपति बप्पा को विघ्नहर्ता और मंगलकर्ता कहा जाता है। उनकी मूर्तियों में दिखाई देने वाली हर मुद्रा केवल सुंदरता का प्रतीक नहीं होती, बल्कि जीवन के गहरे संदेश भी देती है।

आइए जानते हैं गणेश जी की प्रमुख मुद्राओं का महत्व…

बैठे हुए गणेश

गणेश जी की बैठे हुए मुद्रा को “लक्ष्मी गणेश” भी कहा जाता है। यह रूप घर में सुख-समृद्धि और स्थिरता का प्रतीक माना जाता है। माना जाता है कि जो व्यक्ति अपने घर में इस स्वरूप की स्थापना करता है, उसके जीवन में शांति और आर्थिक उन्नति बनी रहती है।

खड़े हुए गणेश

खड़े हुए गणेश जी का स्वरूप जोश और प्रगति का संदेश देता है। यह मुद्रा नए काम की शुरुआत, व्यापार में सफलता और उन्नति का प्रतीक है। ऑफिस या कार्यस्थल पर इस रूप की तस्वीर या मूर्ति रखने से कार्यों में सफलता और सकारात्मकता आती है।

लेटे हुए गणेश

गणेश जी की लेटी हुई मुद्रा हमें यह सिखाती है कि मेहनत के बाद विश्राम भी उतना ही आवश्यक है। यह स्वरूप जीवन में संतोष, मानसिक शांति और आराम का प्रतीक है। ड्रॉइंग रूम या बेडरूम में इसे स्थापित करना शुभ माना जाता है।

नृत्य करते हुए गणेश

नटराज स्वरूप की तरह नाचते हुए गणेश जी उत्साह, उल्लास और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक हैं। यह मुद्रा बताती है कि जीवन केवल जिम्मेदारियों का नाम नहीं है, बल्कि खुशियों और उत्सव का भी उतना ही महत्व है। घर या ऑफिस में इस तस्वीर को लगाने से सकारात्मकता बढ़ती है।

बाल गणेश

गणेश जी के बाल स्वरूप में मासूमियत और निष्कलंक भक्ति झलकती है। यह मुद्रा विशेषकर बच्चों के लिए प्रेरणादायक है। घर में बच्चों के कमरे में बाल गणेश की तस्वीर या प्रतिमा रखने से उनमें भक्ति, सरलता और सकारात्मक सोच का विकास होता है।

मूषक पर सवार गणेश

गणपति का वाहन मूषक है, और इस स्वरूप में बैठकर गणेश जी हमें सिखाते हैं कि छोटा हो या बड़ा, हर जीव का महत्व होता है। यह मुद्रा इच्छाओं पर नियंत्रण और विनम्रता का संदेश देती है।

दाईं सूंड वाले गणेश

दाईं ओर सूंड वाले गणेश जी को “सिद्धिविनायक” कहा जाता है। यह रूप अत्यंत जाग्रत और शक्तिशाली माना जाता है। इस स्वरूप की पूजा सख्त नियमों के साथ करनी चाहिए। यह सफलता, कार्यसिद्धि और विजय का प्रतीक है।

बाईं सूंड वाले गणेश

गणेश जी की बाईं सूंड वाली मूर्ति सबसे सामान्य और घर में रखने योग्य मानी गई है। यह रूप सौम्यता, सुख-शांति और समृद्धि का प्रतीक है। घर में इस स्वरूप की स्थापना से सकारात्मक वातावरण और शांति बनी रहती है।

अभय मुद्रा

गणेश जी का आशीर्वाद देती हुई मुद्रा भक्तों को यह विश्वास दिलाती है कि जीवन में किसी भी संकट से घबराने की आवश्यकता नहीं है। यह रूप निर्भयता और आत्मविश्वास का प्रतीक है।

वरद मुद्रा

गणेश जी की हथेली नीचे की ओर खुली हुई स्थिति में होती है, जिसे वरद मुद्रा कहा जाता है। यह दर्शाता है कि बप्पा अपने भक्तों की इच्छाएं पूरी करते हैं और उन पर कृपा बरसाते हैं।

ज्ञान मुद्रा

गणेश जी की अंगुलियों से बनी ज्ञान मुद्रा बुद्धि, विवेक और संतुलन का प्रतीक है। यह स्वरूप हमें जीवन में ज्ञान और सही निर्णय लेने की शक्ति प्रदान करता है।

आवाहन मुद्रा

गणेश जी के हाथों को जोड़कर बनाई गई आवाहन मुद्रा बप्पा को अपने घर और दिल में आमंत्रित करने का प्रतीक है। यह रूप भक्तों और भगवान के बीच अटूट संबंध को दर्शाता है।


Disclaimer : यहां दी गई सारी जानकारी केवल सामान्य सूचना पर आधारित है। किसी भी सूचना के सत्य और सटीक होने का दावा Ghamasan.com नहीं करता।