प्रदेश के लाखों सरकारी कर्मचारी और उनके परिवार पिछले छह साल से कैशलेस इलाज की सुविधा का इंतजार कर रहे हैं। साल 2019 में तत्कालीन सरकार ने इस योजना की घोषणा की थी, लेकिन इसे अब तक लागू नहीं किया जा सका है। वर्तमान समय में कर्मचारियों को इलाज के खर्च पहले अपनी जेब से करना पड़ता है और बाद में विभाग से इसकी भरपाई मिलती है। इस प्रक्रिया में उन्हें समय और आर्थिक दोनों तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। यदि कैशलेस स्वास्थ्य बीमा योजना लागू हो जाए तो कर्मचारियों को बड़ी राहत मिल सकती है, लेकिन फिलहाल सिर्फ फाइलों में ही काम चल रहा है।
कर्मचारियों में नाराज़गी
तृतीय वर्ग कर्मचारी संघ के महामंत्री उमाशंकर तिवारी ने कहा कि केंद्र सरकार देश के 55 करोड़ लोगों को कैशलेस इलाज की सुविधा प्रदान कर रही है, और इसके लिए उनसे कोई शुल्क नहीं लिया जा रहा है। उसी तरह, प्रदेश के कर्मचारियों को भी इस योजना का लाभ मिलना चाहिए। विशेषज्ञों के अनुसार, राज्य सरकार पर पहले से ही लगभग 756 करोड़ रुपये का अतिरिक्त वित्तीय बोझ है, जिसकी वजह से योजना को लागू करने में देरी हो रही है। इसके अलावा, वित्तीय प्रबंधन और बीमा कंपनियों के साथ अनुबंध की प्रक्रिया पूरी होने तक कर्मचारियों को कैशलेस इलाज का लाभ नहीं मिल पाएगा।
कमलनाथ, शिवराज और मोहन यादव तक कर चुके हैं वादा
पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कर्मचारियों के लिए कैशलेस इलाज की सुविधा देने का वादा किया था, लेकिन उनकी सरकार सत्ता में रहते हुए इसे लागू नहीं कर सकी। इसके बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में कैबिनेट बैठक में यह प्रस्ताव रखा गया, पर कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया। हाल ही में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की सरकार ने फरवरी 2024 में इस मामले के लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में 9 सदस्यीय समिति का गठन किया। सीएम ने एक कार्यक्रम में कर्मचारियों को गंभीर बीमारियों के लिए 10 लाख रुपये तक और सामान्य उपचार के लिए 5 लाख रुपये तक का कैशलेस इलाज देने की घोषणा की थी।