मध्य प्रदेश में उच्च शिक्षा की गुणवत्ता लगातार गिरती जा रही है, और इसका प्रमुख कारण केवल ढांचे या संसाधनों की कमी नहीं है, बल्कि शिक्षकों की भारी कमी भी है। प्रदेश सरकार कॉलेज खोलने में तो सक्रिय दिखाई देती है, लेकिन इन कॉलेजों में पढ़ाने के लिए योग्य प्राध्यापकों की भर्ती करने में नाकाम साबित हो रही है। वर्तमान में प्रदेश भर में 7,000 से अधिक सहायक प्राध्यापकों के पद खाली पड़े हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि पिछले तीन वर्षों में कुल 16,289 पद रिक्त रहे, लेकिन सरकार और एमपीपीएससी मिलकर भी इनमें से केवल 22% यानी 3,599 पदों पर ही भर्ती प्रक्रिया पूरी कर पाए।
भर्ती के आंकड़े बताते हैं गंभीर स्थिति
2022 में सहायक प्राध्यापकों के 3,715 पद खाली थे, लेकिन सरकार ने केवल 1,669 पदों का विज्ञापन जारी किया, जो कुल का 44% था। हालात 2024 में और बिगड़ गए—उस साल 7,284 पद खाली थे, पर भर्ती मात्र 1,930 पदों के लिए ही निकली, जो केवल 26% है। ऐसे में सवाल उठने लगे हैं कि अगर कॉलेजों में शिक्षक ही नहीं होंगे, तो नए कॉलेज खोलने से किसे लाभ होगा और विद्यार्थियों की शिक्षा का स्तर कैसे सुधरेगा। आंकड़ों के मुताबिक, प्रदेश के शासकीय कॉलेजों में करीब 75% प्राध्यापक पद खाली हैं।
स्वीकृत पद घटे, भरे हुए पद भी घटे
2020 में प्रदेश में प्राध्यापकों के 860 पद स्वीकृत थे, लेकिन पांच साल बाद यह संख्या 12 घटकर 848 रह गई। कार्यरत प्राध्यापक इस अवधि में 26 बढ़े, जबकि रिक्त पदों की संख्या केवल 28 कम हुई। उल्लेखनीय है कि एमपीपीएससी ने प्राध्यापकों की सीधी भर्ती 2011-12 के बाद से अब तक नहीं की है। इसका मतलब है कि एक दशक से अधिक समय से इस स्तर पर नई नियुक्तियों की गति लगभग ठप है।
एमपीपीएससी की धीमी रफ्तार से और बिगड़े हालात
मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग (एमपीपीएससी) की सुस्त कार्यशैली ने इस समस्या को और गहरा कर दिया है। 2022 में निकाली गई भर्ती परीक्षाओं के इंटरव्यू वर्षों तक खिंचते रहे, और कई विषयों के लिए तो आज तक इंटरव्यू शेड्यूल भी जारी नहीं हुआ। नतीजतन, प्रदेश के 569 शासकीय कॉलेजों में पढ़ाई का बोझ गेस्ट फैकल्टी और प्रभारी प्राचार्यों पर आ गया है। इंदौर जैसे बड़े शिक्षा केंद्र में ही 300 से अधिक पद खाली हैं, और कई विभागों में एक भी नियमित शिक्षक मौजूद नहीं है।
सरकार ने भी माना शिक्षकों की कमी
उच्च शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार ने हाल ही में विधानसभा में एक सवाल के जवाब में स्वीकार किया कि प्रदेश की 17 शासकीय यूनिवर्सिटीज में 93 पाठ्यक्रम संचालित होते हैं। इनमें सहायक प्राध्यापकों के स्वीकृत 1,069 पद हैं, लेकिन इनमें से 74% पद खाली हैं—सिर्फ 236 पद ही भरे हुए हैं। इसका सीधा असर इन विश्वविद्यालयों में शिक्षा की गुणवत्ता पर पड़ रहा है।
पांच विश्वविद्यालयों में एक भी सहायक प्राध्यापक नहीं
चौंकाने वाली बात यह है कि प्रदेश के पांच विश्वविद्यालयों—राजा शंकर शाह विश्वविद्यालय (छिंदवाड़ा), क्रांतिवीर तात्याटोपे विश्वविद्यालय (गुना), क्रांति सूर्या टंट्या भील विश्वविद्यालय (खरगोन), महाराजा छत्रसाल बुंदेलखंड विश्वविद्यालय (छतरपुर) और रानी अवंतिबाई लोधी विश्वविद्यालय (सागर)—में एक भी सहायक प्राध्यापक नहीं है। यहां शिक्षा का संचालन केवल अस्थायी स्टाफ और गेस्ट फैकल्टी के भरोसे किया जा रहा है।
रिक्त पदों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी
वर्तमान में प्रदेश के 569 शासकीय महाविद्यालयों में सहायक प्राध्यापकों के 12,895 पद स्वीकृत हैं, लेकिन इनमें से केवल 5,611 पद भरे हुए हैं। यानी लगभग 56% पद खाली हैं। पिछले पांच वर्षों के आंकड़े बताते हैं कि इस अवधि में स्वीकृत पदों की संख्या 29% बढ़ी है, लेकिन कार्यरत प्राध्यापक 13% घटे हैं और रिक्त पदों की संख्या में 64% की बढ़ोतरी हुई है। यह स्थिति साफ दर्शाती है कि नियुक्तियों की कमी ने उच्च शिक्षा व्यवस्था को गहरे संकट में डाल दिया है।