राज्य में फर्जी जाति प्रमाण पत्र बनवाकर सरकारी नौकरी हासिल करने वालों पर बड़ा शिकंजा कसा गया है। स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) ने 25 सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ मामला दर्ज किया है। इन आरोपियों में सरकारी डॉक्टर, इंजीनियर, शिक्षक और विभिन्न विभागों में कार्यरत कर्मचारी शामिल हैं। जांच एजेंसी का अनुमान है कि यह संख्या 50 से भी अधिक हो सकती है।
ग्वालियर से जुड़ा फर्जी प्रमाण पत्र नेटवर्क
एसटीएफ की शुरुआती जांच में सामने आया है कि ज्यादातर फर्जी जाति प्रमाण पत्र ग्वालियर जिले से जारी हुए थे। इन्हें जारी करने में सरकारी दफ्तरों के कुछ कर्मचारी भी शामिल पाए गए हैं, जिन्होंने घोटाले को अंजाम देने में सक्रिय भूमिका निभाई। एसटीएफ ने संकेत दिए हैं कि इन कर्मचारियों के नाम भी केस में जोड़े जाएंगे। यह नेटवर्क केवल ग्वालियर तक सीमित नहीं है, बल्कि इंदौर, शाजापुर, विदिशा, होशंगाबाद और बैतूल जिलों तक फैला हुआ है।
जयारोग्य अस्पताल से शुरू हुई जांच
यह पूरा मामला तब सामने आया जब ग्वालियर के जयारोग्य अस्पताल में तीन डॉक्टर फर्जी अनुसूचित जाति-जनजाति प्रमाण पत्र के आधार पर कार्यरत पाए गए। इनमें डॉ. दिनेश मांझी, डॉ. विनोद मांझी और सुमन उर्फ सीमा मांझी के नाम शामिल हैं। इसके साथ ही, एक एग्जीक्यूटिव इंजीनियर रजनीश कुमार का नाम भी आरोपियों की सूची में जोड़ा गया है।
आरोपियों के नाम और शिकायतकर्ता की भूमिका
एसटीएफ ने जिन लोगों पर एफआईआर दर्ज की है, उनमें जवाहर सिंह, सीताराम, सरला देवी, राजेश कुमार, कुसुमा देवी, सुनीता रावत, नाहर सिंह, बाबूलाल रावत, महेश, मनीष गौतम और कई अन्य शामिल हैं। यह कार्रवाई गौरीशंकर राजपूत की शिकायत के आधार पर शुरू की गई थी, जिसने इस पूरे मामले को उजागर करने में अहम भूमिका निभाई।