जीवन में कुछ भी हो जाए थको मत…

Akanksha
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जन्म से लेकर मृत्यु के बीच तक के सफर में कई सुख दुख आते हैं। कई लोग टूट जाते हैं, कई लोग आगे बढ़ जाते हैं, और कुछ लोग ऐसे होते हैं जो संभल कर फिर नया जीवन शुरू करते हैं। समाज को प्रेरणा भी देते हैं। प्रैक्टिकल फंडा में आज पहले दिन हम ऐसी शख्सियत के बारे में आपको बता रहे हैं। जिन्होंने इस बात को सिरे से खारिज कर दिया की जीते जी कभी कोई रिटायर्ड नहीं हो सकता। सरकारी तौर पर या यूं कहें उम्र के साठ दशक होने पर अधिकांश लोग सोचते हैं कि बस बहुत काम कर लिया अब नहीं करेंगे। लेकिन ऐसा नहीं है कुछ लोग ऐसे होते हैं। जो इस बात को झुठला देते हैं कि साठ साल के बाद भी कुछ नहीं किया जा सकता है।

इस कॉलम के जरिए हम आपको जीवन के वह पहलू बताएंगे। जो हमारे पाठकों के जीवन में भी बदलाव के साथ ही सकारात्मकता लाएंगे। वाकई सुख-दुख के इस मेले से आगे बढ़कर हर व्यक्ति को जीवन के आखिरी दिन तक काम करते रहना चाहिए इंदौर के जाने-माने प्रोफेसर डॉ शंकर लाल गर्ग के बारे में हम आपको बताते हैं कि उन्होंने किस तरह से रिटायर्ड होने के बाद ना केवल अपने आप को सक्रिय रखा, बल्कि देश और समाज के सामने नायाब उदाहरण भी पेश किया। प्रकृति व पर्यावरण प्रेमी गर्ग की कहानी आप पढ़िए और सोचिए कि आपके जीवन में आप क्या बदलाव ला सकते हैं।

गर्ग ने जामली गाँव के पास पुरानी महू मानपुर रोड पर एक बंजर पथरीली पहाड़ी थी जिस पर अनेक वर्षों से कोई पेड़ नहीं उगा । पंद्रह वर्ष पूर्व इस पहाड़ी का पच्चीस एकड़ हिस्सा ख़रीदा। वर्ष 2016 से यहाँ पौधे लगाने प्रारम्भ किए । पिछले चार वर्षों में पत्थरों पर 26000 पेड़ लगा दिए । बरगद, पीपल, नीम, सागवान, शीशम, बांस, खमार, आम, अमरूद, मीठा नीम, फ़ालसा, ओलिव, शहतूत, पपीता, ड्रैगन, आवंला, सेवफल, चीकू, नीबू, कटहल, बिल्व, दहिमन, पुत्रजीवा, विढ़ारा, केला आदि प्रमुख हैं ।

नक्षत्र वाटिका भी है जिसमें रुद्राक्ष, शमी, अर्जुन, नागकेशर आदि भी हैं । 24000 पौधे और लगाने हैं । कार्य मुश्किल है किंतु असम्भव नहीं । पानी भी रोज़ ख़रीदते हैं । भगवान व प्रकृति की इच्छा थी कि यह बंजर पथरीली पहाड़ी सघन जंगल हो जावे और ऐसा सचमुच हो रहा है । अब तो स्वयं भगवान सिद्धिविनायक और भगवान बुद्ध वहाँ विराजमान हो गये हैं । हम सब वहाँ मिल सके, अतः पाँच bedroom, एक कॉन्फ़्रेन्स हॉल, एक रसोईघर भी बनाया है । यदि कोई चाहे तो 1000/-रू प्रति पौधे के अनुसार चाहे जितने पेड़ स्वयं या स्वजनों की मधुर स्मृति में लगा सकते हैं । दान पर आयकर की 80- जी धारा की भी छूट है ।

होलकर साइंस कॉलेज के सेवानिवृत्त प्राचार्य डॉक्टर एस एल गर्ग का कहना है की उन्होंने साल 2007 में इस पहाड़ी को इसलिए खरीदा था ताकि रिटायर्ड होने के बाद यहां स्कूल कॉलेज खोल सके 2015 में रिटायर्ड हुए लेकिन बात नहीं बनी इसलिए 2016 से यहां पर पेड़ पौधे लगाना शुरू कर दिया। 4000 फीट ऊंची और 25 एकड़ में फैली निजी बंजर पहाड़ी को साढ़े 4 साल में हरा-भरा बनाया गया।

एक तो बंजर जमीन ऊपर से आसपास पानी का कोई सोर्स नहीं होने की वजह से यहां लगे सभी पौधों और पेड़ों को खरीद कर पानी दिया जाता है और आश्चर्य की बात तो यह है कि पानी खरीदकर स्टोर करके केवल 10-10 बूंदे पौधों को देकर उन्हें पेड़ बनाया गया है। पानी इकट्ठा करने के लिए तालाब खोद दिया गया है और उम्मीद है कि आने वाला मानसून इस तालाब को भर देगा। अब तक 30,000 से ज्यादा पौधे लगाए जा चुके हैं और आगे भी पौधे लगाकर इस जगह को जंगल का रूप देने की तैयारी की जा रही है डॉक्टर गर्ग का कहना है कि कई लोग मुझसे कांटेक्ट करते हैं कि उन्हें जंगल के बीच में टेंट लगाकर रहना है प्रकृति का आनंद लेना है ऐसे सभी प्रकृति प्रेमियों का मैं तहे दिल से स्वागत करता हूं।

आजादी के 75 वे दिवस पर समाज में जागरूकता लाने और और अपने पत्रकारिता के अनुभव के आधार पर यह कालम शुरू किया है। जो नियमित रूप से आपको पढ़ने को मिलेगा। मुझे उम्मीद है कि आपको पसंद आएगा। आपके सुझाव भी मोबाइल नंबर 9425055566 पर व्हाट्सएप परआमंत्रित हैं।

राजेश राठौर