बाल मुकुंद जोशी
■ राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार से राजीव गांधी का नाम हटाकर एक बार फिर मोदी सरकार ने साबित कर दिया कि उसका विश्वास बड़ी लकीर खींचने में नहीं बल्कि दूसरों की खींची लकीर को रबड़ से मिटा कर छोटा करने में ही है। अच्छा होता अगर नरेंद्र मोदी अपने नाम से बने स्टेडियम को भी मिल्खा सिंह को समर्पित करने की घोषणा साथ ही करते लेकिन ऐसा संभव नहीं है। अमर होने की चाहत इतनी बड़ी होती है कि उसके आगे लोकलाज और सिद्धांत, नियम कुछ मायने नहीं रखते। ध्यानचंद भारत के गौरव हैं उनके नाम से पुरस्कार पाकर कोई भी खिलाड़ी खुद को धन्य समझेगा। देश के करोड़ों लोगों लोग इस फैसले से खुश भी हैं।
खेल पुरस्कारों,स्टेडियम आदि के नाम खिलाड़ियों के नाम पर ही होने चाहिए मगर अच्छा होता अगर मेजर ध्यानचंद के नाम पर और बड़ा स्टेडियम बनता। उनको भारत रत्न से नवाज ने की पुरानी मांग पूरी की जाती।इस फैसले से ध्यानचंद का सम्मान करने की भावना की जगह राजीव गांधी का अपमान करने की नीयत ज्यादा झलक रही है। योजनाओं ,शहरों और इमारतों के नाम बदलना मोदी सरकार का प्रिय शगल रहा है। इससे भी ज्यादा नेहरू, इंदिरा और राजीव के नाम पर बनी योजनाओं के नाम बदलना,मुगल सम्राटों के नाम पर बनी सड़कों के नाम बदलना और इसे देश प्रेम से जोड़ने में भी इस सरकार को बड़ा आनंद आता है। इसमें अपने पल्ले से कुछ खर्च नहीं होता और लोगों का ध्यान महंगाई, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों से भटक जाता है। लोग इसी देश में लग जाते हैं और सरकार को सांस लेने की फुर्सत मिल जाती है।
मोदी जी के मन में और अगर खेलों और खिलाड़ियों के लिए इतना ही सम्मान होता तो खेलों की सुविधाएं विकसित करते,खिलाड़ियों को रोजगार के मौके देते। आज ओलंपिक में भारत छोटे-छोटे देशों से भी पीछे हैं। ज्यादातर मेडल व्यक्तिगत स्पर्धाओं में मिल रहे हैं और जिस हॉकी टीम को मोदी जी बार-बार फोन करते हैं उसे केंद्र नहीं उड़ीसा सरकार ने स्पॉन्सर किया है। मोदी जी को टोक्यो में बैठी हाकी टीम के खिलाड़ियों की आंसू द्रवित कर देते हैं लेकिन दिल्ली के बगल में टिकरी बॉर्डर पर बैठे किसानों की नम आंखें नजर नहीं आती। यह एजेंडा है। वे गैर मुद्दों को मुद्दा बनाकर लोगों का ध्यान असली समस्याओं से हठाना जानते हैं। इसीलिए पुरस्कारों के नाम बदलने जाते हैं। उन्हें क्या लेना ध्यानचंद के सम्मान और खेलों के विकास से,उन्हें तो राजीव गांधी का नाम हटाना है, नेहरू के योगदान को झूठ लाना है।
काश मोदी जी दुनिया के ताकतवर देशों के आगे तन कर खड़े रहने वाले नेहरू की विदेश नीति को पढ़ लेते। काश वे भारत में कंप्यूटर क्रांति के जनक राजीव गांधी के विजन को समझने की कोशिश करते। अगर वैसा करते तो उन्हें पता होता कि इतिहास में किसी का नाम व्हाट्सएप पर दुष्प्रचार करने से नहीं मिलता। उसके लिए बड़े काम करने पड़ते हैं।