इंदौर: पूरी दुनिया में फ्रेंडशिप डे मनाया जा रहा है। दोस्ती के रिश्ते के नाम समर्पित इस ख़ास दिन के मौके पर हम आपको इंदौर के ऐसे दो दोस्तों की कहानी बता रहें हैं जो पिछले 62 सालों से साये की एक दूसरे के साथ है। इनकी दोस्ती से लोग इतने नाराज थे कि दोस्ती तुड़वाने के लिए मुफ्ती ने फतवा जारी कर दिया था।
इन दोस्तों ने जमाने की हर अदावत झेली पर दोस्ती नहीं तोड़ी। एक हिन्दू एक मुसलमान, एक है दोस्ती का ईमान दोस्ती की ये कहानी है भाजपा नेता विष्णुप्रसाद शुक्ला और खुरासान पठान की। इनकी दोस्ती की उम्र और इनकी असाली उम्र में बहुत ज्यादा फासला नहीं है। दोनों की उम्र 80 के आसपास है।दोनों पिछले 62 साल से साये की तरह एक दूसरे के साथ है।इंदौर में बड़े भैया के नाम से मशहूर शुक्ला बताते है कि हमने लगभग पूरी उम्र साथ-साथ बिताई है लेकिन कभी एक दूसरे का मजहब नहीं पूछा।
मैं ठेठ ब्राह्मण हूँ और खुरासान भाई ठेठ पठान। दोनों अपने -अपने धर्म के पक्के है लेकिन दोनों का धर्म और ईमान सिर्फ दोस्ती है। ये पूछने पर कि दोनों की दोस्ती कब और कैसे हुई पठान साहब कहते है कि अब तो ये भी याद नहीं हैं कि हम कब और कहां मिले थे। उस जमाने में ना तो फोन और मोबाइल तो छोडिए ज्यादातर घरों में बिजली भी नहीं होती थी। ज्यादातर लोग अपनी जिन्दगी से संघर्ष कर रहे थे ऐसे ही किसी मोड़ पर दोनों ने एक दूसरे का हाथ पकड़ थाम लिया और जिन्दगी तो हाथ छुडा नहीं पाई दोस्ती के दम पर मौत से भी लड़ लिए।
दोस्ती तोड़ो नहीं तो बंद होगा हुक्का-पानी …..
शुक्ला बताते है कि हमारी दोस्ती लोगों की आंखों में खूब खटकती थी। 1960 में, मै जनसंघ से जुडा था.उस समय तब जनसंघ की पहचान घोर हिन्दू पार्टी के रूप में थी. मैंने खुरासान भाई को कहा कि मै जनसंघ से जुड़ गया हूं तुम भी पार्टी में आओगे क्या ?
मुझे याद है खुरासान भाई ने तत्काल कहा तुम जहां मै वहां।
हम दोनों मिलकर पार्टी का काम करने लगे. एक मुसलमान हिंदूवादी पार्टी का काम कर रहा है हमें देखकर लोग हैरान रह जाते थे।
पठान साहब कहते है कि उस समय समाज के कुछ लोगों ने पहले मुझे बड़े भैया से दोस्ती तोड़ने को कहा, फिर घर वालों को समझाया जब इससे भी बात नहीं बनी तो बाकायदा उस समय के मुफ्ती ने मुझे और मेरे परिवार को समाज से बाहर निकालने के लिए फतवा तक जारी कर किया।
शुक्ला कहते है पता हमारी दोस्ती में ऐसा क्या था कि खुरासान भाई ने समाज से टकराना उचित समझा पर मेरी दोस्ती नहीं तोड़ी। आखिरकार मुफ्ती साहब को फतवा वापस लेना पडा।
साथ करना चाहते है अंतिम सफर……
दोनों दोस्त कहते है जीवन भर साथ में संघर्ष किया, सफलता स्वाद भी चखा और कभी-कभी नाकामी का भी। बदनामी भी झेली और शोहरत भी हासिल की। जेल भी गए और लोगों के ताने भी सहन किए पर दोस्ती नहीं तोड़ी। लोग हमें अपराधी बताते थे. लेकिन कोर्ट में कभी हमें गुनहगार साबित नहीं कर सकें. आपातकाल में दोनों 19 महीने तक साथ में जेल में रहें। अब बस एक ख्वाहिश है कि आखरी सफर भी साथ-साथ करें।