इस साल चातुर्मास 20 जुलाई से शुरू हो रहा है। जो कि 14 नवंबर तक रहेगा। चातुर्मास का मतलब ये होता है कि जब 4 महीने शुभ काम नहीं किए जाते है। ये त्योहारों का सीजन होता है। दरअसल, देवशयनी एकादशी से देवप्रबोधिनी एकादशी के बीच के समय को चातुर्मास कहते हैं। चातुर्मास में समस्त प्रकार के मांगलिक कार्यों पर रोक लग जाती है। चातुर्मास में भगवान विष्णु पाताल लोक में चार महीने के लिए निद्रासन में चले जाते हैं। ऐसे में सृष्टि के संचालन का कार्यभर भगवान शिवजी संभालते हैं। आज हम आपको इसकी पूरी कहानी बताने जा रहे है तो चलिए जानते हैं –
चातुर्मास की कथा –
मान्यताओं के अनुसार राजा बलि का तीनों लोकों पर अधिकार था। ऐसे में इंद्र ने भगवान विष्णु से सहायता मांगी। तब विष्णुजी ने वामन अवतार लिया और बलि से तीन पग भूमि मांगी। ऐसे में विष्णु ने दो कदम में धरती और आकाश को नाप लिया। वहीं तीसरा पग कहा रखने का सवाल बलि से पूछा। राजा समझ गए कि ये कोई साधारण व्यक्ति नहीं है। तब उन्होंने कहा कि मेरे सिर पर रखें। ऐसे ही भगवान विष्णु ने तीनों लोक मुक्त कर लिए।
बता दे, बलि की भक्ति देखकर भगवान ने उसे वरदान मांगने को कहा। तब राजा बलि ने कहा कि आप मेरे साथ पाताल लोक चलें और वहीं रहें। वही विष्णुजी पाताल लोक चले गए। ऐसे में सभी देवी-देवता और माता लक्ष्मी परेशानी हो गई। लक्ष्मी देवी ने भगवान विष्णु को मुक्त कराने के लिए एक चाल चली।
दरअसल, उन्होंने गरीब स्त्री का रूप धारण किया और राजा बलि को राखी बांधी। साथ ही बदले में विष्णुजी को मांग लिया। लेकिन तब भी भगवान विष्णु ने राजा बलि को निराश नहीं किया। उन्होंने आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी से कार्तिक मास की एकादशी तक पाताल लोक में रहने का वचन दिया। तब से इन चार महीनों के लिए विष्णुजी निद्रासन में चले जाते हैं। इस दौरान भगवान भोलेनाथ सृष्टि का पालन करते हैं।