दिनेश निगम ‘त्यागी’
– कोरोना से माता-पिता की मृत्यु पर अनाथ हुए बच्चों के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जिस योजना की घोषणा की है, उसकी पूरे देश में प्रशंसा हो रही है। योजना में अनाथ बच्चों की परिवरिश के लिए पांच हजार रुपए प्रति माह पेंशन, पढ़ाई-लिखाई का खर्च आदि की व्यवस्था शामिल है। ऐसी व्यवस्था किसी अन्य राज्य ने नहीं की है। मुख्यमंत्री ने कोविड को लेकर मंत्रियों से भी वन टू वन चर्चा में सुझाव मांगे थे। परिवहन एवं राजस्व मंत्री गोविंद सिंह राजपूत द्वारा दिया गया एक सुझाव शिवराज को पसंद आ गया। गोविंद का सुझाव था कि योजना में अनाथ बच्चों के साथ मां को भी शामिल किया जाए। गोविंद का कहना था कि पिता की मृत्यु के बाद यदि बच्चे और उनकी मां बचे हैं और मां कोई व्यवसाय अथवा नौकरी नहीं करती तो भी परिवार अनाथ जैसा ही है। ऐसे में सरकार को बच्चों को दी जाने वाली पेंशन उनकी मां को दी जाना चाहिए और बच्चों की परिवरिश में विधवा महिला की मदद करना चाहिए। सरकारी सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री चौहान ने तत्काल इस पर विचार करने का आश्वासन दिया। खबर है कि सरकार ने इस पर काम शुरू कर दिया है और योजना में इस सुझाव को शामिल करने पर विचार कर रही है। कभी भी इस बारे में निर्णय हो सकता है।
0 कमलनाथ के बाद दिग्विजय का ‘सेल्फ गोल’….
– अपने कुछ बयानों एवं निर्णयों के कारण पहले कमलनाथ कांग्रेस के अंदर और बाहर घिर गए थे। समूची कांग्रेस बचाव की मुद्रा में थी। अब दिग्विजय सिंह ने कश्मीर से जुड़ी धारा 370 पर बयान देकर ‘सेल्फ गोल’ दाग दिया। कमलनाथ एवं दिग्विजय नए नेता नहीं हैं। वे जानते हैं कि किसी भी मुद्दे को पकड़ने, उसे हवा देने में भाजपा कितनी माहिर है। बावजूद इसके ये ऐसा कुछ कह देते हैं कि मुद्दा बन जाता है। बाद में इनकी किसी सफाई से कोई फर्क नहीं पड़ता। धारा 370 से देश का हर नागरिक भावनात्मक तौर पर जुड़ चुका है। दिग्विजय को पहले से मुस्लिम परस्त माना जाता है। ऐसे मसलों पर जब वे कुछ बोलते हैं तो भाजपा हाथोंहाथ लेती है। इस बार भी यही हुआ। इधर भाजपा ने दिग्विजय को घेरा, उधर कश्मीर से फारुख अब्दुल्ला सहित कई मुस्लिम नेताओं ने उनके बयान का समर्थन कर दिया। भाजपा को मानो मुंह मांगी मुराद मिल गई क्योंकि वह यही तो चाहती थी। लिहाजा, कांग्रेस को बैकफुट पर आना पड़ा। हमेशा की तरह दिग्विजय एक बार फिर कांग्रेस के लिए खलनायक साबित हो गए। क्या इन वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं को सोच समझ कर नहीं बोलना चाहिए, खास कर कश्मीर, हिंदू-मुस्लिम, मंदिर-मस्जिद एवं भारत-पाक से जुड़े मसलों पर?
0 कांग्रेस में अजय-अरुण की नई जुगलबंदी….
– विधानसभा का चुनाव भले कमलनाथ के प्रदेश अध्यक्ष रहते लड़ा गया हो और उसके बाद प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी हो, लेकिन इसमें अजय सिंह एवं अरुण यादव के योगदान को नकारा नहीं जा सकता। कमलनाथ को चुनावों से ठीक पहले प्रदेश अध्यक्ष बनाकर भेजा गया था लेकिन इससे पहले नेता प्रतिपक्ष एवं प्रदेश अध्यक्ष पद पर रहते हुए अजय और अरुण की जोड़ी ने ही चार साल तक कांग्रेस को खड़ा रखा था। भाजपा और उसकी सरकार से दो-दो हाथ किए थे। चुनाव के बाद ये दोनों नेता हाशिए पर चले गए। बदले हालात में ये दोनों नेता कमलनाथ की गलतियों पर मुखर होकर बोलने लगे हैं। दोनों के बीच फिर जुगलबंदी बनती दिख रही है। कांग्रेस के अंदर ये दोनों एक नया ताकतवर गुट खड़ा करने की योजना में हैं। इनकी ताकत का अहसास पार्टी नेतृत्व को है, इसीलिए संजय कपूर ने इनसे अलग-अलग और संयुक्त बैठक कर लंबी चर्चा की। अजय का पूरे प्रदेश में नेटवर्क पहले से है, अरुण ने प्रदेश अध्यक्ष रहते प्रदेश भर में पकड़ बनाई है। हालांकि अजय विंध्य और अरुण निमाड़ अंचल के नेता हैं। दोनों को अपने पिता स्वर्गीय अर्जुन सिंह एवं सुभाष यादव की राजनीतिक विरासत का लाभ भी मिला है। भविष्य में यह जोड़ी कोई करिश्मा कर पाती है या नहीं, देखने लायक होगा।
0 अब महारानी लक्ष्मीबाई के नाम पर राजनीति….
– स्वतंत्रता सेनानी महारानी लक्ष्मीबाई को लेकर राजनीति पहले भी होती थी लेकिन अब इसमें तेजी आती दिख रही है। हमेशा की तरह वजह है ग्वालियर का सिंधिया घराना। यह पहले भाजपा और कांग्रेस दोनों में था। वसुंधराराजे और यशोधरा राजे भाजपा में थीं और ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस में। लिहाजा, सिंधिया परिवार द्वारा लक्ष्मीबाई के साथ की गई गद्दारी को न भाजपा दम से उठाती थी और न ही कांग्रेस। ज्योतिरादित्य के भाजपा में जाने के बाद इस घराने का कोई सदस्य अब कांग्रेस में नहीं बचा। इसलिए कांग्रेस आक्रामक है और भाजपा बचाव की मुद्रा में। लक्ष्मीबाई की पुण्यतिथि पर सिंधिया परिवार को कांग्रेस ने घेरा और सिंधिया के भाजपा में मौजूद विरोधियों ने भी। गुना-शिवपुरी सांसद केपी यादव ने तो कांग्रेस की तर्ज पर ग्वालियर का नाम बदलकर लक्ष्मीबाई नगर करने की मांग कर डाली लेकिन बाद में उन्हें यह बयान वापस लेना पड़ा। साफ है कि आने वाले समय में कांग्रेस इस मसले को लेकर भाजपा को घेरने वाली है। सिंधिया रियासत द्वारा लक्ष्मीबाई के साथ जो किया गया, इसे लेकर राष्ट्रभक्ति और गद्दारी पर सवाल उठाए जाएंगे। लक्ष्मीबाई की पुण्यतिथि पर पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव ने यह सवाल उछाल भी दिया है।
0 ‘हिंदुत्व का बड़ा चेहरा कौन’, छिड़ी बहस….
– भोपाल और प्रदेश का सबसे बड़ा हिंदू चेहरा कौन, राजधानी की हुजूर सीट से विधायक रामेश्वर शर्मा के तेवरों से इसे लेकर नई बहस छिड़ गई है। उन्होंने हिंदुत्व के कई झंडावरदारों की नींद उड़ा रखी है। पद, वरिष्ठता के लिहाज से वे अपेक्षाकृत नए हैं फिर भी हिंदुत्व के चेहरे के तौर पर वे साध्वी उमा भारती एवं प्रज्ञा ठाकुर को पीछे छोड़ते दिख रहे हैं। भारत-पाकिस्तान, हिंदू-मुस्लिम और मंदिर-मस्जिद जैसे मुद्दों पर बिना विलंब किए विरोधियों पर जितना तीखा हमला रामेश्वर करते हैं, उतना अन्य कोई हिंदू नेता नहीं। यही कारण है कि ऐसे मसलों पर प्रतिक्रिया के लिए मीडिया द्वारा जैसे सबसे पहले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह को ढूंढ़ा जाता है, वैसी ही जगह रामेश्वर ने बना ली है। प्रज्ञा ठाकुर सहित हिंदुत्व के पैरोकार अन्य नेताओं के स्थान पर मीडिया की पंसद रामेश्वर बन रहे हैं। खास बात यह है कि उनकी सक्रियता सिर्फ हिंदुत्व तक सीमित नहीं है। वे विधानसभा के प्रोटेम स्पीकर बने तो किसी भी फुलटाइम स्पीकर से कम काम करते दिखाई नहीं पड़े। अभी वे महज विधायक हैं, लेकिन शायद ही ऐसा कोई दिन हो जिस दिन वे अपने क्षेत्र में कुछ करते न दिखाई पड़ते हों। नतीजा यह है कि वे अपने समकक्ष नेताओं को भी पीछे छोड़ रहे हैं और संघ की पसंद भीं बन रहे हैं।