खण्डवा में जिन्दा लोग भले यहाँ कोविड अस्पताल की अव्यवस्थाओ को लेकर अपना रोना -पीटना मचाते हों लेकिन यहाँ मुर्दे जिला प्रशासन की जमकर तारीफ़ करते है… हाँ ठीक सुना आपने, यहाँ जीते जी जो मरीज यहाँ की अव्यवस्थाओ को कोसता रहता है वह मरने के बाद यहाँ की बेहतर व्यस्थाओं के लिए प्रशासन की पीठ थप थपाता है और मुख्यमंत्री कलेक्टर की। यह हम नहीं कह रहे खण्डवा के जिला प्रशासन का दावा है जो उसे प्रदेश में कोरोना से बेहतर लड़ाई में प्रदेश में नबंर वन बनाये हुए है।
आज तक की विशेष पड़ताल में यह खुलासा हुआ कि किस तरह फर्जी आंकड़े प्रस्तुत कर खण्डवा कलेक्टर अपनी वाह वाही कराने में जुटे हुए है। ये वही कलेक्टर है जिनका हाल ही में अभद्र व्यवहार करते हुए ऑडियो वायरल हुआ है। यहाँ मरीज ईलाज के अभाव में दम तोड़ रहे है और कलेक्टर साहब अपने पॉवर पॉइंट प्रेसेंटेशन से मुख्यमंत्री तक को गलत तथ्य प्रस्तुत कर रिझाने में लगे है। उनके आंकड़ों का मायाजाल ऐसा है कि बड़े -बड़े अफ़सर भी उसे क्रॉस चेक करने की ज़ेहमत नहीं उठाते और आँख मूंद कर उनके प्रयोग को पूरे प्रदेश में लागू करने की बात कहते है। ताजा मामला कोविड का शासकीय जिला अस्पताल में ईलाज कराने वाले मरीजों से अस्पताल की व्यस्थाओं पर फीडबैक कराने का है जिसकी आजतक ने पड़ताल की तो चौकाने वाले खुलासे हुए।
जिन दस मरीजों से फीडबैक का पत्रक मुख्यमंत्री को भेजा गया उसमे पांच मरीज तो स्वर्ग सिधार चुके है , उनके परिजनो का कहना है कि वे अंत तक यहाँ की अव्यवस्थाओ से परेशान रहे , वे कैसे उन्हें पांच में से चार नंबर दे सकते थे ? मरीज जब वहां बात कर पाने की स्थिति में नहीं था तब उससे फीडबैक लिया किसने ? दस्तख़त किये किसने ? परिजनों से तो कुछ पूछा ही नहीं गया। इधर जो मरीज किसी तरह जीवित वापस भी आ गए वो भी किसी तरह के फीडबैक दिए जाने की बात से इंकार करते है। जाहिर है सवाल भी खुद बनाये ,जवाब भी खुद ही दे दिए और कॉपी जांचकर नंबर भी खुद दे दिए। अब ऐसे में नंबर वन तो बनेगा ही खण्डवा।
खण्डवा कलेक्टर अनय द्विवेदी ने पहले यहां दावा किया कि ऑक्सीजन ऑडिट का अभिनव प्रयोग कर उन्होंने ऑक्सीजन की समस्या का स्थानीय स्तर पर ही निरकारण कर डाला। इसका उन्होंने ऐसा पॉवर पॉइंट प्रेज़ेंटेशन दिया कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी उनके मुरीद हो गए और खण्डवा के प्रयोग को पूरे प्रदेश में अपनाने के लिए सभी कलेक्टर्स को निर्देशित कर दिया।
अब खण्डवा कलेक्टर ने एक दूसरा प्रयोग किया यहाँ कोविड वार्ड में भर्ती मरीजों से फीडबैक लेने का जिसके माध्यम से यहाँ की व्यवस्थाओ का आकलन किया जा सके। इसके लिए उन्होंने एक पत्रक बनवाया जिसमे उन्होने पांच बिन्दुओ पर मरीजों से पांच में से अंक देने को कहा गया इसमें 1. उपचार सुविधाओं का स्तर 2. भोजन की गुणवत्ता 3. बिस्तर चादर आदि बदलना 4. साफ -सफाई 5. बाथरूम आदि की साफ सफाई। इन पांच बिदुओ पर दस मरीजों से जो अंक प्राप्त हुए उसमे उन्होंने सभी का औसत निकालकर बताया कि सभी मरीजों ने पांच में से 4 अंक दिए है यानि यहाँ की व्यवस्थाओ को अस्सी प्रतिशत अंक मिले। इससे मुख्यमंत्री भी बहुत प्रसन्न हुए और सभी जिलों में इसी तरह का कार्य करने को निर्देशित भी किया गया।
कलेक्टर अनय द्विवेदी कहते है कि “हॉस्पिटल की सेवाओं के सोशल ऑडिट के लिए यह सिस्टम बनाया है जिसमे हम मरीजों से फीडबैक लेते है। इसमें हम बाकायदा मरीजों के मोबाइल नंबर भी देते है जिससे इसे क्रॉस चेक कर सके। मैंने खुद भी कुछ लोगो को फोन लगाया है और यह सूचि हम मुख्य्मंत्री जी को भी भेजते है जिससे वे यदि किसी मरीज से बात करना चाहे तो कर सकते है। कमिश्नर इन्दौर को हमने इस फीड बेक सिस्टम के बारे में बताया था तो उन्होंने भी इसे इंदौर संभाग के सभी जिलों में लागू करने की बात कही है। इसमें हम मरीजों को वाट्सएप कॉल से बातचीत करते है और फीड बेक लेते है ,उनसे फॉर्म पर दस्तख़त इसलिए नहीं कराते की संक्रमण का ख़तरा रहता है।
जब आज तक ने इसी पत्रक को लेकर सभी मरीजों या उनके परिजनों से बात की तो स्थिति इसके ठीक उलट निकली। सभी ने यह साफ कहा कि उनसे कोई फीडबैक लिया ही नहीं गया न उन्होंने कहीं कोई दस्तखत ही किये है। इन दस मरीजों में से दस की तो मृत्यु हो चुकी है। यहाँ भर्ती प्रदीप पहारे की 15 अप्रेल को अस्पताल में ही मृत्यु हो गई जबकि इस दिन बनाये पत्रक में उनके द्वारा व्यवस्थाओ को बेहतर बताते हुए 5 में से 4. 2 अंक दिए गए जिसमे से उपचार के लिये 5 में से 5 अंक दिए गए। जबकि परिजनों का साफ कहना है कि उन्हें भर्ती करने के पांच दिन तक तो उन्हें किसी डॉक्टर ने देखा ही नहीं ,उनका उपचार ही शुरू नहीं हुआ। जब परिजनों ने नाराजगी दिखाई तो तब उपचार शुरू हुआ और दो दिन में ही उनकी मृत्यु हो गई। उनके पुत्र सुदीप पहारे कहते है कि उनके पिता को सही समय पर इलाज मिल जाता जो उनकी मृत्यु नहीं होती।
इसी पत्रक में 4 नंबर पर जिस मरीज सरिता श्रीवास्तव के द्वारा भी 5 में से 4. 2 अंक देना बताया गया उनकी मृत्यु 6 मई को हो गई। उनके पुत्र राहुल श्रीवास्तव जो बताते है वह बहुत ही भयावह है ,उन्होंने बताया कि मम्मी के बेड के पास जिस मरीज की मृत्यु हो गई थी उसकी लाश 3 -4 घंटे तक वही पड़ी रही जिससे वे बुरी तरह घबरा गई और उन्होंने किसी भी सूरत में यहाँ से जाने की बात कही तो ऑक्सीजन लगी हुई हालत में उन्हे घर शिफ्ट कर घर पर ही इलाज किया गया। उन पर अस्पताल के उसी वार्ड में लगातार हो रही मौतों का गहरा सदमा लगा था , जिससे वे उबर नहीं पायी। राहुल कहते है कि इतने बुरे अनुभव के बाद क्या कोई अस्पताल को 5 में से 4. 2 अंक दे सकता है ? वे तो शून्य नंबर भी फीडबैक में नहीं देना चाहेंगे।
बीएसएनल के कर्मचारी मांगीलाल पतालवंशी का नाम पत्रक में 7 वे नंबर पर है जिनके द्वारा प्रशासन को 5 में से 4 अंक देना बताया गया। उनकी बेटी यह पत्रक देखते ही भड़क उठी कि “किसने यह नम्बर दिए ? मैं उसे झापड़ मार् दूंगी ,मायनस मार्किंग ही करुँगी। हमारे मरीज की जान जा रही है और उन्हें अपनी वाहवाही की पड़ी है ?
अब पुरे सिस्टम को आप बेहतर समझ सकते है कि यह चल कैसे रहा है ? फर्जी आंकड़ों को सभी को भेजा जा रहा है लेकिन कोई उसे क्रॉस चेक करने की ज़ेहमत नहीं उठा रहा है। यह फर्जीवाड़ा कलेक्टर के माध्यम से मुख्यमंत्री तक पहुँच रहा है और सब इसकी आँख बंद कर वाहवाही कर रहे है। इससे कोरोना को लेकर जो दूसरे आंकड़े इसके नियंत्रण को लेकर किये जा रहे है उस पर संदेह नहीं गहराएगा ? जिला अस्पताल में कोरोना से हुई मौतों के आंकड़ों को लेकर प्रशासन पहले ही सवालों के घेरे में है। क्या शासन-प्रशासन इतना संवेदनशून्य हो गया है जो आपदा में अवसर तलाश रहा है ? यहाँ दम तोड़ते मरीजों के बचाने के बजाय फर्जी उपलब्धियों के लिए झूठ के वेंटिलेटर पर तथ्य और आंकड़े रखे जा रहे है जो हक़ीक़त के धरातल पर आते ही दम तोड़ देते है।