इंदौर : तम्बाकू सेवन का प्रचलन सदियों से चला आ रहा है। लेकिन कहते हैं कि, परिवर्तन ही प्रकृति का नियम है। युवाओं के साथ कंधा से कंधा मिलाकर चलने वाली युवतियों में भी परिवर्तन इस कदर आया कि, बड़े शहरों के साथ अब छोटे शहरों में भी युवतियाँ चाय के साथ सिगरेट का सुट्टा लेती दिखती हैं जो आगामी पीढ़ी के स्वास्थ्य व सर्वांगीण विकास के लिये अच्छा सकेत नहीं है। हलाँकि महिलाओं में तम्बाकू सेवन की लत कोई आष्चर्य की बात नहीं, ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में महिलायें तम्बाकू व पान मसाला खाती हैं। इसका दुष्परिणाम वर्तमान पीढ़ी में नित नई जटिल बीमारियों के रूप में देखने को मिल रही हैं।
विष्व तम्बाकू निषेध दिवस पर म.प्र. राज्य होम्योपैथी परिषद् द्वारा आयोजित वेबिनार को सम्बोधित करते हुये डाॅ. वैभव चतुर्वेदी ने कहा कि, तम्बाकू के सेवन से कई गम्भीर और जानलेवा बीमारियों के होने का खतरा रहता है। इसमें फेफड़े का कैंसर, लिवर कैंसर, मुँह का कैंसर, कोलन कैंसर, गर्भाशय का कैंसर, इरेक्टाइल डिस्फंक्शन और हृदय रोग जैसी बीमारियाँ शामिल हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने यह चेतावनी दी है कि धूम्रपान करके और अपने फेफड़ों को नुकसान पहुँचाने वाले लोगों को कोरोना से मौत का खतरा 50 फीसदी अधिक होता है। इसलिए कोरोना संक्रमण के जोखिम को कम करने के लिए धूम्रपान जैसे तम्बाकू उत्पादों का सेवन न करने में ही भलाई है।
तम्बाकू का सेवन जानलेवा होता है, ये जानते हुए भी दुनियाभर में बड़ी संख्या में लोग किसी न किसी रूप में तम्बाकू (बीड़ी, सिगरेट, गुटखा आदि) का सेवन कर रहे हैं और ऐसे में उन पर कई जानलेवा बीमारियों का खतरा मंडराने लगता है। लोगों को तंबाकू के सेवन से रोकने और उससे होने वाले नुकसान के प्रति जागरूक करने के लिए हर साल 31 मई को दुनिया भर में विश्व तम्बाकू निषेध दिवस यानी वर्ल्ड नो टोबैको-डे मनाया जाता है।
मनोरोग विषेषज्ञ डाॅ. चतुर्वेदी जी के अनुसार डिप्रेषन के दौरान उसे नषा करने की आदत पड़ जाती है ऐसे में व्यक्ति का मूड उसके नियंत्रण में नहीं रहता। मन हमेषा उदास रहता है। कोई भी कार्य करने में व्यक्ति का मन नहीं लगता, आवष्यकता से अधिक या बहुत कम नींद आना। डिप्रेषन के दौरान व्यक्ति को भूख कम लगती है, थकान व कमजोरी महसूस होने के साथ-साथ व्याकुलता व बेचैनी की षिकायत हमेषा बनी रहती है। इस अवधि में व्यक्ति का वजन या तो बढ़ता है या घट जाता है। चलने या बोलने की गति में कमी आ जाती है या व्यक्ति में सोचने की क्षमता कम हो जाती है। निर्णय न ले पाना या किसी बात के लिये खुद को दोषी ठहराना, मरने का या आत्महत्या करने का ख्याल आदि डिप्रेषन के प्रमुख लक्षण हो सकते हैं। इस तरह के आंषिक लक्षणों में भी व्यक्ति को सतर्क हो जाना चाहिये।
कार्यक्रम आयोजक डाॅ. आयषा अली ने बताया कि, प्रदेष के कई शहरों से वरिष्ठ चिकित्सकों के साथ-साथ जागरुकता फैलाने के लिये वेबिनार में आम नागरिक भी शामिल हुये।