कोरोना के बाद सामने आई कई चुनौतियां, IIM इंदौर ने बनाई ये योजना

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कोविड महामारी ने वैश्विक स्तर पर हर क्षेत्र को प्रभावित किया है और संचालन, कार्यों और बाहरी हितधारकों के प्रबंधन के मामले में कई व्यावसायिक क्षेत्रों में विभिन्न चुनौतियाँउत्पन्न की हैं।

आईआईएम इंदौर का मिशन है प्रासंगिक बने रहना और हर संभव तरीके से राष्ट्र-निर्माण में योगदान देना, और इसी उद्देश्य के साथ, आईआईएम इंदौर ने द ड्यूश गेसेलशाफ्ट फर इंटरनेशनेल जुसामेनरबीट जीएमबीएच (जीआईजेड), जर्मन संघीय आर्थिक सहयोग और विकास मंत्रालय (बीएमजेड) के साथ सहयोग किया है। इस सहयोग का उद्देश्य यह समझना है, कि विभिन्न क्षेत्रइस महामारी की आगामी स्थितियों और चुनौतयों से निपटने और समस्याओं के समाधान खोजने के लिए किस प्रकार तैयार रह सकते हैं । इसके लिए आईआईएम इंदौर को 85.3 लाख रूपए का शोध अनुदान भी प्राप्त हुआ है ।

कोविड-19 ने न केवल कई देशों के स्वास्थ्य सूचकांक (विश्व स्वास्थ्य संगठन, 2020) को प्रभावित किया है; लेकिन अस्थिरता और अशांति भी उत्पन्न की है,जिसका आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक परिस्थितियों पर भी गंभीर प्रभाव पड़ा है। दोनों संस्थान अब इन व्यावसायिक क्षेत्रों के सामने आने वाली चुनौतियों और समस्याओं से निपटने के उनके तरीकों का दस्तावेजीकरण करेंगे । यह आगामी महामारी की तैयारियों के समाधान पर बेहतरीन प्रथाओं के गहन शोध पर आधारित होगा। शोध गतिविधियों में दो पुस्तक परियोजना, शोध पत्र और विस्तृत केस स्टडी शामिल हैं।

इस सहयोग पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुएआईआईएम इंदौर के निदेशक, प्रोफेसर हिमाँशु राय ने कहा, ‘समग्र शोध परियोजना डेटा संग्रह और विश्लेषण के गुणात्मक और मात्रात्मक तरीकों को एकीकृत करते हुए मिश्रित-विधि दृष्टिकोण पर निर्भर करेगी ।इस शोध के परिणाम महत्वपूर्ण होंगे। विभिन्न क्षेत्रों के लिए यह शोध लाभकारी सिद्ध होंगे और भविष्य में किसी भी महामारी का सामना करने के लिए हमें तैयार करेंगे।’ भारत में महामारी के मद्देनज़रभविष्य की स्वास्थ्य नीतियों को आकार देने में भी इससे मदद मिलेगी,उन्होंने कहा।

भारत-जर्मन सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम के कार्यक्रम निदेशक डॉ. निशांत जैन ने कहा, ‘कोविडसंबंधित साक्ष्य और ज्ञान प्राप्त करने पर आधारित, जर्मन संघीय आर्थिक सहयोग का प्रतिनिधित्व कर रहे जीआईज़ेड और विकास मंत्रालय (बीएमजेड); और आईआईएम इंदौर के इस सहयोग पर मुझे प्रसन्नता है। यह साझेदारी अंतर्दृष्टि विकसित करेगी जो न केवल नीति निर्माताओं के लिए, बल्कि सभी के लिए भी उपयोगी होगी।’

एक ओर जहाँ पुस्तक परियोजनाएं औद्योगिक क्षेत्र के सामने आने वाली चुनौतियों और कार्रवाइयों पर प्रकाश डालेंगी; वहीं शोध पत्रों में औद्योगिक क्षेत्र के कर्मचारी अनुभव का विवरण शामिल होगा। यह शोध प्रबंधन और सरकारी अधिकारियों के साक्षात्कार पर आधारित होगा।