अर्जुन राठौर
जनवरी और फरवरी के माह में सब कुछ सामान्य होने लगा था इंदौर से लेकर पूरे देश में माहौल ऐसा बन गया था कि अब कोरोना चला गया है l कोरोना मरीजों की संख्या भी लगातार घटती चली जा रही थी लोग भी राहत की सांस ले रहे थे साल भर से घरों में कैद लोग अब बाहर निकलने लगे थे फरवरी माह में गोवा में तो यह आलम था कि एक भी होटल खाली नहीं थी वहां पर हजारों पर्यटक पहुंच गए यही हाल अन्य पर्यटन स्थलों का भी था ।
इधर पांच राज्यों के चुनावी माहौल और हरिद्वार के कुंभ ने भी इस बात को बल दिया है कि देश में सब कुछ सामान्य है इंदौर में भी प्रतिवर्ष होने वाले कार्यक्रम शुरू हो गए थे इनमें लिटरेचर फेस्टिवल से लेकर नाट्य समारोह और अन्य तमाम बड़े कार्यक्रम जिनमें लोग आने लगे थे ।
लेकिन किसी को भी पता नहीं था कि अप्रैल का महीना बेहद डरावना और विनाशकारी साबित होने वाला है हालांकि फरवरी माह में दिल्ली के कुछ डॉक्टर और और वैज्ञानिक इस बात की चेतावनी दे रहे थे कि कोरोना की दूसरी लहर आ सकती है लेकिन एक साल से घरों में कैद लोग अब इन सब बातों की परवाह ही नहीं कर रहे थे जो थोड़ी बहुत सावधानी रख रहे थे वह भी अब हंसी के पात्र बनते जा रहे थे उन्हें दूसरे लोग कह रहे थे कोरोना तो अब चला गया है अब किस बात की सावधानी ।
लेकिन कोरोना गया नहीं था लॉकडाउन जरूर चला गया था कोराना दबे पांव अपनी अगली रणनीति यानी दूसरी लहर में तबाही मचाने के लिए तैयार हो रहा था और मार्च माह में ही लगातार मरीजों की संख्या बढ़ने लगी और अप्रैल आते आते तो इसने जो रौद्र रूप दिखाया वह पूरे देश के लिए बेहद विनाशकारी साबित हुआ । लाखों परिवार कोरोना की चपेट में आ गए और आश्चर्य बात का है कि कई परिवार तो उसमें से ऐसे हैं जो कहते हैं कि हम तो कहीं गए ही नहीं, भीड़ में भी नहीं गए फिर कैसे कोरोना हो गया । देखते ही देखते सब तरफ तबाही नजर आने लगी ।
मरने वालों की संख्या दो लाख को पार कर गई और हालत यह हो गई कि चार लाख से अधिक मरीजों की संख्या प्रतिदिन आने लगी पूरे देश का मेडिकल सिस्टम ध्वस्त हो गया ऑक्सीजन, इंजेक्शन से लेकर अस्पतालों के बेड तक और दवाइयों तक की मारामारी शुरू हो गई लोग सड़कों पर दम तोड़ने लगे कोई ऐसा परिवार नहीं बचा जिसमें कि संक्रमण ना हुआ हो या उनके किसी परिचित या रिश्तेदार के यहां संक्रमण ना हुआ हो जो लोग बहुत सुरक्षित तरीके से घरों में थे वे भी को कोरोना की चपेट में आ गए और देखते ही देखते देश की ग्रामीण आबादी जो कि अभी तक कोरोना से बची हुई थी वहां भी विनाश का नया तांडव शुरू हो गया ।
कुल मिलाकर एक बेहद डरावना और विनाशकारी समय हमारी प्रतीक्षा में थावे जिसने अपना रौद्र रूप दिखा दिया और देखते ही देखते लोग बिछड़ते चले गए अब आगे के लिए सबक यही है कि यदि तीसरी लहर के बारे में वैज्ञानिक चेतावनी दे रहे हैं तो लोगों को अभी से सतर्क हो जाना चाहिए क्योंकि अब देश में संक्रमण की दर घट रही है और ऐसा लग रहा है कि बुरे दिन समाप्त हो सकते हैं लेकिन लोगों को तो अभी भी जागरूक ही रहना होगा ।