Supreme Court on AMU: अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) को अल्पसंख्यक दर्जा मिलने से जुड़ी याचिकाओं पर Supreme Court ने सात जजों की संविधान पीठ द्वारा ऐतिहासिक फैसला सुनाया। यह निर्णय AMU के अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में दर्जे को बरकरार रखने की ओर इशारा करता है। Supreme Court ने इस मुद्दे पर विचार करते हुए कहा कि AMU को अल्पसंख्यक दर्जा जारी रहेगा, जिससे विश्वविद्यालय के शैक्षिक और प्रशासनिक अधिकारों पर महत्वपूर्ण असर पड़ेगा।
Supreme Court का ऐतिहासिक निर्णय
Supreme Court की संविधान पीठ ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे को बरकरार रखने के पक्ष में फैसला सुनाया। यह फैसला एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हो सकता है, क्योंकि इससे यह तय हुआ कि AMU एक अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थान के रूप में माना जाएगा। अदालत ने इस पर विचार करते हुए कहा कि AMU की स्थापना और संचालन धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यक समुदाय के व्यक्तियों द्वारा किया गया है, और यही कारण है कि इसे अल्पसंख्यक दर्जा प्राप्त है।
संविधान के अनुच्छेद 30 का महत्व
मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी.वाई. चंद्रचूड़ ने फैसले में कहा कि धार्मिक समुदायों को शैक्षिक संस्थान बनाने का अधिकार है, लेकिन उन्हें उसे चलाने का अनियंत्रित अधिकार नहीं दिया जा सकता। यह स्पष्ट किया गया कि संविधान के अनुच्छेद 30(1) के तहत अल्पसंख्यक संस्थाओं को संस्थान चलाने का अधिकार तो है, लेकिन इसे असीमित रूप से नहीं बढ़ाया जा सकता। इस अनुच्छेद के तहत धार्मिक अल्पसंख्यकों को संस्थान स्थापित करने का अधिकार है, लेकिन इसका संचालन कड़े नियमों के तहत ही किया जा सकता है।
फैसले पर असहमतियां
मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने इस फैसले को बहुमत से लिखा, लेकिन इस पर तीन जजों ने असहमतियां जताई। जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने अपनी असहमतियों का उल्लेख किया। इस तरह से सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला 4-3 के अनुपात में आया है। इस असहमति को ध्यान में रखते हुए यह निर्णय एक जटिल और संवेदनशील मुद्दे पर आधारित था, जिसमें विभिन्न दृष्टिकोणों पर विचार किया गया।
क्या है अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा?
Supreme Court ने इस फैसले में यह स्पष्ट किया कि किसी भी संस्थान को अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थान तभी माना जाएगा जब उसकी स्थापना धार्मिक या भाषाई अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा की गई हो, और उसका संचालन भी उसी समुदाय के लोगों द्वारा किया जाए। इस तरह का दर्जा देने का उद्देश्य है कि धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों को अपनी शैक्षिक और सांस्कृतिक पहचान बनाए रखने के लिए आवश्यक स्वतंत्रता प्राप्त हो।