Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को बाल अधिकार संस्था राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) की सिफारिशों पर रोक लगा दी है। इसके परिणामस्वरूप, शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE) का पालन न करने वाले मदरसों को राज्य से मिलने वाली फंडिंग पर कोई असर नहीं पड़ेगा। इसके साथ ही, एनसीपीसीआर की यह सिफारिश भी खारिज कर दी गई कि गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों के छात्रों को सरकारी स्कूलों में भेजा जाए।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट की पीठ में मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला, और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा शामिल थे। कोर्ट ने जमीयत उलेमा-ए-हिंद के वरिष्ठ अधिवक्ता की दलीलों को भी सुना, जिसमें इस बात का तर्क दिया गया कि एनसीपीसीआर के आदेश और राज्यों के परिणामी निर्देशों पर रोक लगानी चाहिए।
मुस्लिम संगठन की याचिका पर कोर्ट का आदेश
जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने उत्तर प्रदेश और त्रिपुरा सरकारों के निर्देशों को चुनौती दी थी, जिसमें गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों के छात्रों को सरकारी स्कूलों में स्थानांतरित करने की बात कही गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि एनसीपीसीआर द्वारा जारी संचार (7 और 25 जून 2023 को) पर कोई कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि इन आदेशों से उत्पन्न होने वाले परिणाम भी स्थगित रहेंगे। इसके साथ ही, कोर्ट ने मुस्लिम संगठन को उत्तर प्रदेश और त्रिपुरा के अलावा अन्य राज्यों को भी पक्ष बनाने की अनुमति दी।
NCPCR की तर्कसंगतता
एनसीपीसीआर के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो ने पहले कहा था कि आयोग ने मदरसों को बंद करने की सिफारिश नहीं की थी। उनका मुख्य तर्क यह था कि मदरसों को सरकारी फंडिंग से वंचित किया जाए क्योंकि ये संस्थान गरीब मुस्लिम बच्चों को शिक्षा के समान अवसर प्रदान करने में विफल हो रहे हैं। उनका कहना था कि कई बार गरीब बच्चों पर धार्मिक शिक्षा के बजाय धर्मनिरपेक्ष शिक्षा की जगह धार्मिक शिक्षा देने का दबाव डाला जाता है।
NCPCR की रिपोर्ट पर विवाद
हाल ही में एनसीपीसीआर ने एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें मदरसों की कार्यप्रणाली पर चिंता व्यक्त की गई थी और एक्शन लेने की मांग की गई थी। इस पर समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव समेत कई नेताओं ने तीखी प्रतिक्रिया दी थी। आलोचकों का कहना था कि सरकार अल्पसंख्यक संस्थानों को चुनिंदा रूप से निशाना बना रही है।
इस फैसले के साथ, मदरसों को मिलने वाली सरकारी फंडिंग पर फिलहाल कोई रोक नहीं लगेगी, और उन्हें शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत मिलने वाले लाभ जारी रहेंगे।