ओलिंपिक में मनु भाकर ने रचा इतिहास, 2 मेडल जीतने वाली बनीं पहली भारतीय

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बीते मंगलवार को सरबजोत सिंह के साथ खेलकर मिश्रित टीम 10 मीटर एयर पिस्टल फाइनल में भारत को कांस्य पदक दिलाकर मनु भारत की पहली ऐसी महिला बन गई है कि जिसने एक ही ओलंपिक में दो मेडल कब्जायें हैं। इससे पहले रविवार को महिलाओं के व्यक्तिगत 10 मीटर एयर पिस्टल फाइनल में कांस्य पदक जीतकर शूटिंग स्पर्धा में ओलंपिक पदक जीतने वाले पहली भारतीय बनी थी। मनु से पहले किसी भी पुरुष या महिला एथलिट ने एक ही ओलंपिक में दो मेडल नहीं जीते हैं।

अपनी सफलता से उत्साहित मनु का कहना है कि यह उनकी ओलंपिक सफलता के सफर की शुरुआत भर है। मुकाबला तनावपूर्ण था, और मुझे पता था कि मुझे खुद को संभालना होगा। बस अपनी लय में चलते रहो और अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करो। मैंने अंतिम क्षण तक हार नहीं मानी और लगातार प्रयास करती रही।

विनम्र स्वभाव की मनु ने पदक हासिल करने के तुरंत बाद सोशल मीडिया पर लिखा कि मैं और सरबजोत सिंह १० मीटर एयर पिस्टल प्रतियोगिता में कांस्य पदक हासिल करते हुए मिश्रित टीम शूटिंग स्पर्धा में ओलंपिक पदक जीतने वाली पहली भारतीय जोड़ी बन गए हैं। यह एक अविस्मरणीय एतिहासिक घटना है। माँ को अपना आदर्श मनाने वाली मनु अपनी माँ से कहती है कि आप मेरे जीवन की आदर्श और प्रेरणादायक महिला हैं जो मुझे हर परिस्थिति में खुश रहने के लिए प्रेरित करती हैं।

भारत का हरियाणा राज्य मुक्केबाजों और पहलवानों के नाम से जाना जाता है, यहां कि मिट्टी से निकले खिलाड़ियों ने पूरी दूनिया में नाम कमाया है। इसी मिट्टी में मनु भाकर का भी जन्म हुआ। 18 फरवरी, 2002 को झज्जर जिले के गोरिया गांव में मरीन इंजीनियर पिता राम किशन भाकर और स्कूल में प्रिंसिपल मां सुमेधा के घर एक बालिका जन्मी जिसका नाम मनु रखा गया। झज्जर में मनु भाकर ने अपनी स्कूली शिक्षा यूनिवर्सल पब्लिक सेकेंडरी स्कूल से पूरी की। बचपन में मनु स्केटिंग, मुक्केबाजी, एथलेटिक्स और जूडो कराटे भी खेलती थीं। लेकिन 14 साल की उम्र में उन्होंने शूटिंग में अपना करियर बनाने का फैसला किया, और अपने पिता से शूटिंग पिस्टल लाने को कहा। बेटी की बात को हमेशा मानने वाले पिता ने उन्हें एक बंदूक खरीदकर दी। उसी फैसले ने आज मनु को ओलंपिक पदक विजेता बना दिया है।

मनु भाकर की इस अद्भुत सफलता ने देश का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया है। आज हर देशवासी खुशी मना रहा है। लेकिन मनु के लिए सफलता के इस पड़ाव तक पहुंचना आसान नहीं था। इसके लिए उन्‍होंने, उनके कोच और परिवार ने वर्षों तक कड़ी तपस्या और कई त्याग किए हैं। मनु भाकर के पिता ने अपनी बेटी के सपनों के लिए अपनी नौकरी का त्याग किया और बेटी के सपनों को उड़ान दी। उन्होंने बेटी के प्रशिक्षण के लिए आधुनिक पिस्टल खरीदी और उन्हें प्रशिक्षण केंद्र तक छोड़ने और लाने की जिम्मेदारी भी संभाली क्योंकि कानूनन किसी नाबालिग के लिए सार्वजनिक परिवहन में यात्रा के दौरान पिस्टल साथ ले जाना अवैध है । राष्ट्रीय राइफल एसोसिएशन और भारतीय खेल प्राधिकरण से मनु को अपने सपने पूरे करने में मदद मिली। मनु को भारत के जानेमाने निशानेबाज जसपाल राणा ने कोचिंग दी। मनु ने पहली बार जब लाइसेंस के लिए आवेदन किया था तब वो फॉर्म भरने मे गलती कर बैठीं थी। उन्होंने लाइसेंस मांगने की वजह खेल की बजाय आत्म रक्षा लिख दिया था। मामला मुख्यमंत्री के हस्तक्षेप के बाद सुलझा था।

प्रारंभ से ही प्रतिभाशाली मनु ने 2017 में केरल में आयोजित राष्ट्रीय प्रतियोगिता में दुनिया को चौंकाते हुए नौ स्वर्ण पदक जीतकर एक नया राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाया था। इसी वर्ष एशियाई जूनियर चैंपियनशिंप में उन्होंने रजत पदक जीता। साल 2018 के अंतरराष्ट्रीय स्पोर्ट्स शूटिंग वर्ल्ड कप में मैक्सिको के गुआदालाजरा में दो बार स्वर्ण पदक हासिल किया और सबसे कम उम्र में स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय बनीं। राष्ट्रमंडल खेलों में उन्होंने 16 साल की उम्र में 10 मीटर एयर पिस्टल में स्वर्ण पदक अपने नाम किया। मई 2019 में म्यूनिख आईएसएसएफ में चौथे स्थान पर रहने के साथ उन्होंने टोक्यो ओलंपिक 2021 के लिए क्वालिफाई किया था। अगस्त 2020 में मनु भाकर को राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने एक वर्चुअल पुरस्कार समारोह में अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया।

2021 के टोक्यो ओलंपिक में निराशा झेलने के बाद मनु भाकर के माता-पिता, ने गीता के श्लोक सुनाकर उनकी हौंसला अफजाई की , उनमें से अध्याय 2 के श्लोक 57 को वह अक्सर दोहराती थी, “यः सर्वत्रानभिस्नेहस्तत्तत्प्राप्य शुभाशुभम्। नाभिनन्दति न द्वेष्टि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता“ अर्थात इस भौतिक जगत में हमेशा कुछ ना कुछ उथल-पुथल होती रहती है, जो व्यक्ति ऐसी भौतिक उथल-पुथल से विचलित नहीं होता, अच्छे भाग्य से प्रसन्न नहीं होता और मुसीबत से निराश नहीं होता, उसका ज्ञान स्थापित होता है। गीता की इसी सीख पर चलकर दृढ़प्रतिज्ञ मनु के हाथ 2022 वर्ल्ड चैंपियनशिप में 25 मीटर पिस्टल दलीय स्पर्धा में रजत पदक लगा तो 2023 की बाकू वर्ल्ड चैंपियनशिप में उसने स्वर्ण पदक गले में पहना।

मनु की ज़िंदगी एक चैंपियन खिलाड़ी की ज़िंदगी मात्र नहीं है, वो 22 साल की इस देश की किसी भी आम युवती की ज़िंदगी भी है. जहां कभी कुछ चिंताए होती हैं तो कभी-कभी उदासी भी, लेकिन ज्‍यादातर वक्‍त प्‍यार, उम्‍मीद, खुशी और सपने होते हैं. कभी जीतने की उमंग है तो कभी नए कपड़ों के साथ अनोखे हेयर स्‍टाइल की तरंग भी. मनु की जिंदगी इस देश की हजारों- लाखों मामूली घरों, साधारण परिवेश और आम जिंदगी जीने वाली लड़कियों के लिए एक संदेश भी है कि “तुम कुछ भी बन सकती हो, बस एक बार ठान तो लो।

ओलंपिक स्वर्ण धारक अचूक निशानेबाज मनु एक सामान्य लड़की की तरह अपने बारे मे बात करते हुए कहती है कि लोग अक्सर मुझसे पूछते रहते हैं कि अपने खाली समय मैं क्या करती हूँ, तो तानकर सोना मेरा सबसे प्रिय शगल है, अपनी पिस्टल के बाद अच्छी पुस्तके मुझे सबसे प्रिय हैं, समय मिलने पर पहेली हल करना मुझे बहुत अच्छा लगता है।