सुनने में स्वाभिमान और अभिमान दोनों शब्द लगभग समान प्रतीत होते हैं, और उनके अर्थ भी लगभग समानार्थी जैसे लगते हैं। लेकिन यह जानना और समझना अदभूत है कि इन समानताओं के बावजूद ये दोनों शब्द परस्पर एक दूसरे से भिन्न ही नहीं बल्कि विलोम या विपरीतार्थी हैं।
अभिमान इंसान को तामसी बनाकर तमस की ओर धकेलता है तो स्वभिमान इंसान को जागृत कर प्रकाश की ओर ले जाता है। अभिमान पतन का कारण बनता है तो स्वाभिमान उत्थान का कारण है। अभिमान एक नकारात्मक विचार है वहीं स्वाभिमान पूर्णतः सकारात्मक भाव है।
अभिमानी व्यक्ति डरता है कि कोई उससे आगे ना निकल जाय, और असुरक्षा की भावना से ग्रसित होकर दूसरों की टांग खिंचाई में लग जाता है। जबकि स्वाभिमानी व्यक्ति आत्मगौरव और आत्मसम्मान से सराबोर होकर जागृत अवस्था में अपने कर्तव्य पथ पर मजबूती से अडिग कदम रखते हुए दूसरों को साथ लेकर आगे बढ़ता है।
स्वाभिमान अजेय होता है। स्वाभिमान हमारे अपने विश्वास को जागृत करता है। हमें जीवन मूल्यों के प्रति, अपनी संस्कृति, अपने समाज, अपने कुल और अपने देश के प्रति राष्ट्राभिमान रखने की प्रेरणा देता है।
स्वाभिमान का मतलब अपनी बात पर अड़े रहना नहीं अपितु सत्य का साथ ना छोड़ना है। दूसरों को नीचा दिखाते हुए अपनी बात को सही सिद्ध करने का प्रयास करना यह स्वाभिमानी का लक्षण नहीं अपितु दूसरों की बात का यथायोग्य सम्मान देते हुए किसी भी दबाब में ना आकर सत्य पर अडिग रहना यह स्वाभिमान है।
अभिमानी वह है जो अपने अहंकार के पोषण के लिए दूसरों को कष्ट देना पसंद करता है। स्वाभिमानी वह है जो सत्य के रक्षण के लिए स्वयं कष्टों का वरण कर ले।
तीर्थंकर भगवान महावीर कहते हैं कि मै जो कह रहा हूँ वही सत्य है, यह अभिमानी का लक्षण है और जो सत्य होगा मै उसे स्वीकार कर लूँगा यह स्वाभिमानी का लक्षण है।
अपने आत्म गौरव की प्रतिष्ठा जरुर बनी रहनी चाहिए मगर किसी को अकारण, अनावश्यक रूप से मजबूर कर, अपनी प्रभाव के तले दबाकर, अपने बाहुबल से झुकाकर, छल से गिराकर या कुचलकर नहीं।
जय जय।