कीर्ति राणा
हरदा में अवैध तरीके से चल रही पटाखा फैक्ट्री में लगी आग से हुई तबाही में यह प्रश्न गौण हो गया है कि कितने लोग असमय मौत का शिकार हुए? हरदा ही नहीं, देश के लोगों को यह पूछने का हक है कि सालों से यह फैक्ट्री वो भी बीच रहवासी क्षेत्र में चल कैसे रही थी? जांच समिति बना ही दी है, जब किसी मामले में सरकार ऐसी समिति गठन में तत्परता दिखाए तो आमजन याद करने लगता है कि जनहानि वाले मामलों को लेकर पहले जो जांच समितियां गठित की गईं, उनकी फाइलों ने फैसले उगले भी या नहीं! गुना बस हादसे में कलेक्टर, एसपी पर गाज गिरी थी। आज मुख्यमंत्री हरदा जा ही रहे हैं… ऐसा ही कुछ निर्णय लेकर अपनी सरकार पर लगे दाग धोने की तत्परता दिखा सकते हैं!
हरदा की आग में जिन निर्दोषों की बलि चढ़ गई, उनके परिवारों को न तो फैक्ट्री मालिक राजेश अग्रवाल और दिनेश की गिरफ्तारी से संतोष मिलेगा और न ही मुआवजे की राशि उनके आंसू पोंछ पाएगी। इसी फैक्ट्री में पहले भी हुए विस्फोट में दो लोगों की जान जा चुकी है। तत्कालीन (अब इंदौर) संभागायुक्त माल सिंह भायड़िया के आदेश का शत-प्रतिशत पालन हुआ होता तो फैक्ट्री बंद रहती, ऐसा नहीं हुआ तो दोषी प्रशासनिक अधिकारी भी हैं, क्योंकि राजनीतिक संरक्षण बिना इतनी ढील देना संभव ही नहीं!
मप्र में पटाखों, बारुद से विस्फोट की यह पहली घटना नहीं है। मुरैना, राऊ में पटाखा फैक्ट्री में विस्फोट में हुई मौतें, पेटलावद में 7 दर्जन से अधिक निर्दोषों के चीथड़ों की पोटलियों वाले लोमहर्षक दृश्य और जांच समिति की घोषणा लोग भूले नहीं हैं। इससे पहले बालाघाट में 29 और दमोह 7 लोगों की मौत भी ऐसे ही विस्फोट में हो चुकी है। इन सारे विस्फोट के बाद अब यदि लोगों को यह लगने लगे कि 18 वर्ष के बाद बस सीएम बदले हैं… लापरवाही का ढर्रा वैसा ही चल रहा है तो ताज्जुब नहीं होना चाहिए! अब जो होगा, वह भी लोगों को पता है…
गुना बस हादसे के बाद जिस तरह बसों की चैकिंग का अभियान चला था, वैसे ही इंदौर, भोपाल, दमोह, बालाघाट, हरदा आदि शहरों में पटाखा निर्माताओं, दुकानदारों के खिलाफ ‘सख्ती पखवाड़ा’ चलाकर लापरवाही की आग पर फोम डाल दिया जाएगा। कलेक्टर, एसपी और अन्य प्रशासनिक अधिकारियों पर कार्रवाई तो होनी ही चाहिए, लेकिन दंडित किए जाने से पहले इन अधिकारियों से बंद कमरे में ही सही… सरकार पुचकार के यह भी तो पूछ ले कि हरदा के पूर्व विधायक कमल पटेल हों या बैतूल के सांसद दुर्गादास उईके…
इन जनप्रतिनिधियों या इनके पट्ठों ने वर्षों से संचालित हो रही अवैध पटाखा फैक्ट्री के सरगनाओं को संरक्षण क्यों दे रखा था? ढाई एकड़ में फैली फैक्ट्री के अलावा आसपास के पचास घरों में कुटीर उद्योग के रूप में हो रहे पटाखों के निर्माण से जिला प्रशासन क्यों मुंह फेरे रहा? पटाखा फैक्ट्री मालिकों के घरों पर बुलडोजर चलाए जाने की सख्ती तो सरकार दिखाएगी ही, लेकिन इन्हें संरक्षण पूर्व सीएम के प्रिय जनप्रतिनिधियों के साथ ही इस सरकार में ठसक दिखाने वाले हरदा-बैतूल के जनप्रतिनिधियों से भी मिलता रहा है। सख्त फैसले लेकर खुद को पिछली सरकार से बेहतर दिखाने की कोशिश में लगे डॉ. मोहन यादव को पटाखा फैक्ट्री के संचालकों को संरक्षण देने वाले नेताओं-अधिकारियों के घरों पर भी बुलडोजर चलाने का साहस दिखाना चाहिए।
हरदा पटाखा फैक्ट्री को 2022 में कलेक्टर ऋषि गर्ग ने सील करने के आदेश जारी किए थे। सरकार को तत्कालीन संभागायुक्त मालसिंह भायड़िया से भी पूछना चाहिए कि ऐसी क्या मजबूरी रही कि इस आदेश के विरुद्ध स्टे क्यों दिया? विस्फोट पीड़ित लोगों के आंसू बयां कर रहे हैं कि शिकायत करते रहने के बाद भी अधिकारियों ने कार्रवाई नहीं की! ऐसी क्या मजबूरी थी कि ट्रकों से बारुद आता रहा और पुलिस प्रशासन मुस्तैदी दिखाने की अपेक्षा मैत्री-भाव दर्शाता रहा और जिला प्रशासन की आंखों पर भी पोलिटिकल प्रेशर की पट्टी बंधी रही। हरदा हादसे का कारण बने प्रशासनिक अधिकारियों पर भी सरकार ऐसी कार्रवाई करे कि बाकी जिलों के अधिकारियों को भी समझ आ जाए कि बदले हुए निजाम में अब ढील-पोल नहीं चलेगी।