जयराम शुक्ल
नदी में दो धाराएं समानांतर बहती हैं, एक सतह पर जो दिखती और महसूस होती है, दूसरी सतह से इतनी नीचे कि बिना डूबे उसके वेग का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। चुनावी राजनीति में इसे ‘अंडर करेंट’ कहते हैं। आज के मतदान में ऐसा कोई ‘अंडर करेंट’ था इसका सही-सही पता तो कल मतदान के आधिकारिक प्रतिशत आने के बाद पता चलेगा। लेकिन आज पूरे दिन मीडिया के लोग लाड़ली बहना के ‘अंडर करंट’ की थाह लेने में जुटे रहे। यदि पिछले चुनाव के मुकाबले महिला मतदाताओं का प्रतिशत बढ़ता है(प्रथम दृष्टया तो बढ़ने की खबरें हैं) तो यह मानकर चलना ही पड़ेगा कि लाड़ली बहनों ने अपेक्षित रिटर्न गिफ्ट दें दिया है..और पांचवीं बार भी उनके ‘भैय्या’ की सरकार बनने से कोई नहीं रोक सकता!
क्या यह योजना मध्यप्रदेश में वाकई गेमचेंजर बनने जा रही है चलिए इसकी पड़ताल करते हैं। पहले जानें कि यह योजना है क्या..? मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने 20 जून 2023 को इस योजना को प्रदेश में लागू किया। आरंभ 1000 रूपए प्रति महीने से हुए। रक्षाबंधन में 250 रु. और जुड़ गए। कुलमिलाकर पिछले दो महीनों से हर लाड़ली बहना के खाते में 1250 रु आ रहे हैं।
यह विचार कैसे आया इस पर मुख्यमंत्री चौहान अपनी जनसभाओं में बताते हैं- आर्थिक तौर पर निबल बहनों की घर में कोई इज्जत नहीं होती, थोड़ा सा ही रुपया सही यह उनमें आत्मनिर्भरता और स्वाभिमान जागृत करेगा। लाड़ली बहना योजना में अब तक 1करोड़ 25 लाख खातों में सिंगल क्लिक से रुपए डाले जा रहे हैं। अब तक 1209 करोड़ रूपए लाड़ली बहनों के खाते में गए। इस योजना में निम्न आय वर्ग की 21 से 60 वर्ष की बहनों को जोड़ा गया है। इसके साथ ही आवास व अन्य योजनाएं भी लिंक की गई हैं। मुख्यमंत्री का वचन है कि इस राशि को धीरे-धीरे 3000 रूपए महीने तक पहुंचाएंगे।
आप जानना चाहेंगे कि चुनाव की दृष्टि से क्या ऐसी योजनाएं फलदायी होती हैं- प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार राघवेन्द्र सिंह कहते हैं- हां। वे बताते हैं कि 2008 का चुनाव कितना मुश्किल था। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की अगुवाई में जब यह चुनाव लड़ा जाना था तब भाजपा से ही टूटकर निकली पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती की जनशक्ति पार्टी सामने थी। इसी बीच मुख्यमंत्री चौहान लाड़ली लक्ष्मी योजना लेकर आए। वह 1अप्रैल 2007 की तारीख थी और नवरात्र के दिन थे। शिवराजसिंह जी की कन्या पूजन करते, उनके चरण पखारती तस्वीरें मीडिया में छा गईं। बात ह्रदय को छूने वाली थी। शिवराजसिंह चौहान का इन कन्याओं से कब भांजी का रिश्ता गाढ़ा हो गया इसका पता तब चला जब 2008 में निर्णायक बहुमत के साथ भाजपा की सरकार बनी। और इसके बाद तो रिश्ता गहराता ही गया।
सुदूर गांवों की बच्चियां सायकिल से स्कूल जाने लगीं और इनके बीच मामा-मामा स्वर और भी तेज फूटता गया। लाड़ली लक्ष्मी अब सोलह वर्ष की हो गईं। आंकड़ों में बात करें तो 46 लाख बेटियां लखपति बन चुकी हैं और 13 लाख से अधिक को छात्रवृत्तियां मिल रही हैं।
तो क्या बेटी और बहनें शिवराजसिंह सिंह चौहान की चुनावी अमोघ अस्त्र हैं?
मुख्यमंत्री चौहान के परिवार को निकट से जानने वाले भोपाल के युवा एक्टिविस्ट पुरु शर्मा कहते हैं- ऐसा नहीं है। चौहान जब विधायक भी नहीं बने थे तब से वे अपने गृह क्षेत्र बुधनी में कन्या पूजन और गरीब कन्याओं के विवाह के आयोजन किया करते थे। यहां तक कि क्षेत्र की की गरीब कन्याओं को गोद लिया, पढ़ाया और पिता की भूमिका निर्वाह करते हुए कन्यादान भी दिया। विधायक, सांसद बनने के बाद ऐसे समारोह नियमित करने लगे, जब मुख्यमंत्री बने तो इसे सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के साथ जोड़ दिया। बेटियों और बहनों से उनका रिश्ता राजनीति के लिए नहीं अपितु भावनात्मक है।
प्रकारंतर में लाड़ली लक्ष्मी योजना मध्यप्रदेश की फ्लैगशिप योजना बन गई। केन्द्र सरकार ने इसे बेटी बचाओ- बेटी पढ़ाओ के तौर पर अंगीकार किया। अब सभी भाजपा शासित राज्यों व कुछ अन्य राज्यों में भी नाम बदलकर यह योजना चल रही है।
लाड़ली बहना योजना इस चुनाव में भाजपा के लिए कितनी कारगर होगी? मध्यप्रदेश के प्रख्यात संपादक, लेखक महेश श्रीवास्तव कहते हैं कि बहन- बेटियों के बीच शिवराजसिंह चौहान का रिश्ता नि: संदेह और भी विश्वसनीय हुआ है। यह वर्ग पहले से ही जुड़ा था, जो महिलाएं अबतक भाजपा को वोट नहीं दे रहीं थीं अब उनका भी विचार बदल रहा है और ऐसे वोट 10 प्रतिशत भी मिले तो भाजपा निर्णायक बढ़त हासिल कर लेगी।
यह तथ्य संभवतः उतना ज्ञात नहीं है कि मध्यप्रदेश देश का संभवतः ऐसा पहला राज्य है जिसका एक तिहाई बजट महिलाओं के लिए समर्पित है। वर्ष 2023-24 के बजट में महिला सशक्तिकरण हेतु 1लाख 2 हजार 976 करोड़ का प्रावधान रखा गया है जो कि बजट के कुल आकार का 32.7 प्रतिशत है। महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण के लिए संभवतः सबसे अधिक कहीं योजनाएं कहीं हैं तो मध्यप्रदेश में। यह अलग बात है कि नौकरशाही- लालफीताशाही के चलते ये सौ की सौ प्रतिशत उन तक नहीं पहुंच पातीं।
यह भी जानना कम दिलचस्प नहीं कि प्रदेश के औसतन हर तीसरे थाने की कमान महिलाओं के हाथ हैं। स्कूलों में यह संख्या आधे-आध के करीब और नगरीय व पंचायत निकायों में इनके लिए पचास फीसद सीटें आरक्षित ही हैं।
राजधानी के ख्यात पत्रकार पद्मश्री विजयदत्त श्रीधर कहते हैं कि यह सही है कि महिलाओं की योजनाओं को यथार्थ के धरातल तक पहुंचने में जरा मुश्किल तो होती है, पर लाड़ली बहनों की सम्मान निधि सीधे उनके खातों में पहुंचने से उनका भरोसा सरकार और शिवराज जी के प्रति बढ़ा है। लाड़ली बहना योजना चुनावी दृष्टि से निश्चित ही फायदा पहुंचाएगी पर इसका कितना प्रतिशत होगा अभी कह नहीं सकते। दरअसल इस योजना का प्रचार अकेले सरकार ने किया, कार्यकर्ताओं की वैसी रुचि देखने में नहीं आई।
अब मध्यप्रदेश में महिलाओं के वोट की गणित को भी समझते चलें। चुनाव आयोग के अनुसार प्रदेश में कुल 5,61,36,229 वोटर्स हैं, इनमें महिला वोटर्स की संख्या 2,72,33,945 है। प्रदेश सरकार का दावा है कि लगभग 1 करोड़ 31लाख लाड़ली बहनें रजिस्टर्ड हो चुकी हैं और इन्हें लाभ मिलना प्रारंभ भी हो चुका है। यानी कि कुल वोटर्स में 20 से 22 प्रतिशत उन महिलाओं के वोट हैं जो लाड़ली बहनों के तौरपर लाभार्थी हैं। कुल महिला वोटर्स में यह संख्या लगभग 50 प्रतिशत है। यह मानकर चलते हैं सामान्यत: अन्य दलों के मुकाबले महिलाएं भाजपा को ज्यादा वोटिंग करती आई हैं। यदि 10 से 15 प्रतिशत वे महिलाएं भाजपा की ओर आ जाएं तो फिर तो फिर चुनाव परिणाम स्वमेव उछलकर भाजपा के पाले आ जाएगा।
इंदौर के लब्धप्रतिष्ठित पत्रकार डा. प्रकाश हिन्दुस्तानी बताते हैं कि लाड़ली लक्ष्मी एवं लाड़ली बहना दोनों ही योजनाएं काफी सोच समझकर और मनोवैज्ञानिक अध्ययन के बाद बनाई गई हैं। इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि कांग्रेस इससे भयाक्रांत होकर नारी सम्मान योजना लेकर आई। अब कागज पर योजना और खाते में आए लाभ में से किसी एक को चुनना होगा तो कोई भी प्रत्यक्ष लाभ को ही चुनेगा। हिन्दुस्तानी कहते हैं कि बिना शक लाड़ली बहना गेमचेंजर साबित होने जा रही है।
वस्तुत: शिवराजसिंह चौहान ने पिछले अठारह वर्षों में आम नेताओं से अलग हटकर एक बेहद संवेदनशील और रिश्तों में जीने वाले नेता की छवि गढ़ी है। महाकौशल के वरिष्ठ पत्रकार चैतन्य भट्ट कहते हैं कि विपक्ष उन्हें लाख नौटंकियां कहे पर वे संवेदनशील हैं। यद्यपि मैं मुफ्त की रेवड़ी के खिलाफ हूं फिर भी यह कहने में कोई संकोच नहीं कि उन्होंने प्रदेश के वोटरों के एक विशाल वर्ग के तौरपर महिलाओं को अपने पक्ष में खड़ा कर लिया है, यहीं उनकी ताकत भी है।
लाड़ली लक्ष्मी और लाड़ली बहना योजनाओं का असर समग्रता में भी पड़ेगा, वरिष्ठ पत्रकार राघवेन्द्र सिंह कहते हैं- एक अच्छी बात यह कि जाति-पांत और धर्म से परे यह वोटरों का नया वर्ग है जो अब चुनाव की धारा मोड़ने में सक्षम है। शिवराजसिंह चौहान हैं तो दर्शनशास्त्र के स्कालर लेकिन उनकी सोशल इंजीनियरिंग का देशभर में कोई जोड़ नहीं। राघवेन्द्र सिंह चौहान की विधानसभा क्षेत्र के वोटर के साथ ही उनके पड़ोसी गांव डोंबी के है।
निष्कर्ष: क्या यह मान कर चलें कि लाड़ली बहना इस चुनाव में गेम चेंजर साबित होने वाली है? मध्यप्रदेश गान लिखने वाले कवि, लेखक, संपादक महेश श्रीवास्तव की मानें तो निश्चित, नि:संदेह!