क्यों है श्रीमद्‍भगवद्‍गीता के अठारहवें अध्याय का इतना महत्त्व ?

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कहने के लिए श्रीमद् भगवद् गीता का हर अध्याय महत्वपूर्ण है, और यह हर व्यक्ति के जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझाने और मार्गदर्शन करने में महत्वपूर्ण है। अध्याय 18 भी इसी तरह महत्वपूर्ण है। भगवद्गीता के अठारहवें अध्याय, जिसे “दैवासुर संपद्विभागयोग” भी कहा जाता है, महत्वपूर्ण धार्मिक और जीवनीय संदेशों का स्रोत है। इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को जीवन के महत्वपूर्ण मुद्दों पर उपदेश देते हैं। निम्नलिखित हैं इस अध्याय के महत्वपूर्ण संदेश:

1. भाग्य और प्रयास:
यह अध्याय भाग्य और प्रयास के मध्य संतुलन की महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाता है। यह बताता है कि हमें प्रयास करना चाहिए, लेकिन किसी भी परिस्थिति में भाग्य को स्वीकार करना भी आवश्यक है।

2. भक्ति का मार्ग:
अध्याय 18 में भगवान कहते हैं कि सबसे उत्तम भक्ति का मार्ग व्यक्ति की प्राकृतिक प्रवृत्ति के आधार पर होता है। व्यक्ति को अपनी प्राकृतिक प्रवृत्ति के अनुसार कर्म करना चाहिए।

3. यज्ञ और दान:
इस अध्याय में, यज्ञ और दान की महत्वपूर्ण भूमिका को बताया गया है। यज्ञ और दान करके हम समाज में सामाजिक समरसता और न्याय को स्थापित कर सकते हैं।

4. आत्मसमर्पण:
इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से आत्मसमर्पण का महत्व बताते हैं। वे कहते हैं कि हमें अपने कर्मों को भगवान के लिए समर्पित करना चाहिए और आत्मसमर्पण करना चाहिए।

5. धर्म की पालना:
इस अध्याय में धर्म की पालना का महत्व बताया गया है। व्यक्ति को अपने कर्मों में धर्म का पालन करना चाहिए, जिससे वह आत्मा के पूर्णता की ओर बढ़ सकता है।

इस अध्याय में जीवन के महत्वपूर्ण मुद्दों पर विचार किए गए हैं और यह धार्मिक और मानवी जीवन के लिए महत्वपूर्ण संदेश प्रदान करता है।