सुप्रीम कोर्ट में बिहार सरकार ने सोमवार को जातिगत सर्वे को लेकर दाखिल हलफनामा, कुछ घंटों के बाद ही बिहार सरकार द्वारा वापस लिया। पहले हलफनामे के पैरा 5 में लिखा था कि सेंसस एक्ट 1948 के तहत जनगणना या इससे मिलती-जुलती प्रक्रिया को केंद्र के अलावा किसी और सरकार को अंजाम देने का अधिकार नहीं है। बाद में इसको बदलकर कोर्ट के समक्ष रखा गया।
हलफ़नामे में परिवर्तन:
इसके बाद हलफ़नामे के इस हिस्से को हटाते हुए सरकार ने नया हलफ़नामा दाखिल किया। नए हलफ़नामे में कहा गया कि ‘पैरा 5 अनजाने में शामिल हो गया था। सरकार भारतीय संविधान के प्रावधानों के अनुसार SC/ST/SEBC और OBC के स्तर को उठाने के लिए सभी जरूरी कदम उठा रही है।’ नए हलफ़नामे से स्पष्ट हो गया कि राज्य जातिगत सर्वे के आंकड़ों को जुटा सकता है।
पिछली सुनवाई का विवरण:
पिछली सुनवाई 21 अगस्त को हुई थी, जिसमें केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलीलें प्रस्तुत की थी। याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट को यह बताया कि बिहार सरकार ने गणना कार्य पूरा कर लिया है और सभी डेटा ऑनलाइन अपलोड कर दिए गए हैं।
उन्होंने डेटा की सार्वजनिकता की मांग की थी।
हालाँकि इससे स्पष्ट होता है कि बिहार में जातिगत सर्वे को लेकर केंद्र और राज्य सरकार के बीच विवाद जारी है। सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई का परिणाम इस मुद्दे को आगे बढ़ा सकता है।