इंदौर। पहले के जमाने में गायनेकोलॉजी में महिलाओं को प्रेगनेंसी के दौरान न्यूट्रिशन, प्रोटीन और अन्य मिनरल्स पर्याप्त मात्रा में नहीं मिल पाते थे।लेकिन अब पेटर्न बदल गया है अब बदलती लाइफस्टाइल में खानपान में ऑइली फूड, बैठे-बैठे कार्य करने और व्यायाम कम होने की वजह से मोटापे जैसी समस्या देखने को सामने आ रही है जो कि लड़कियों में पीरियड्स के अनियमितता, प्रेगनेंसी नहीं ठहरना, अंडे नहीं बनना जैसी समस्या को बढ़ावा देती है।
वही जागरूकता की कमी के चलते मल्टीपल सेक्सुअल पार्टनर और मल्टीपल चाइल्डबर्थ की वजह से सर्वाइकल कैंसर जैसे पेशेंट देखने को सामने आते हैं जो कि पहले के मुकाबले ज्यादा है। इसमें सकारात्मक पहलू यह है कि इसमें मृत्यु दर कम हो गई है पहले के जमाने में सबसे ज्यादा कॉमन सर्वाइकल कैंसर हुआ करता था लेकिन आज के समय में ब्रेस्ट कैंसर कॉमन रूप से सामने आता है।यह बात डॉ मोनिका वर्मा ने अपने साक्षात्कार के दौरान कही वह शहर के प्रतिष्ठित एमजीएम मेडिकल कॉलेज और एमटीएच हॉस्पिटल में एसोसिएट प्रोफेसर और गायनी डिपार्टमेंट में कंसलटेंट के रूप में अपनी सेवाएं दे रही हूं।
सवाल. हाई रिस्क प्रेगनेंसी क्या है यह किन कारणों से सामने आती है
जवाब. हाई रिस्क प्रेगनेंसी में भी मै डील करती हूं। हमारी बदलती जीवन शैली, खानपान, व्यायाम की कमी और केमिकल एक्सपोजर और अन्य कारणों की वजह से आजकल हाई रिस्क प्रेग्नेंसी जैसी समस्याएं देखी जा रही है। आज के समय में भागदौड़ भरी जिंदगी में शहरों में लड़कियों की शादी बहुत देर से हो रही है वही प्रेगनेंसी प्लान करने में देरी होने के चलते एक यंग प्रेग्नेंट महिला के जो बॉडी पार्ट्स रिएक्ट करते हैं इस तरह से एक उम्र के बाद यह रिएक्ट नहीं कर पाते हैं।
कई बार स्ट्रेस और मोटापे और अन्य कारणों के चलते ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, थाइरॉएड और अन्य प्रकार की समस्याएं प्रेगनेंसी के दौरान देखी जाती है इसी के साथ बच्चों में जन्मजात विकृति की भी समस्या सामने आती है। वहीं ग्रामीण क्षेत्र में जल्दी शादी होने की वजह से वहां भी इससे संबंधित समस्या देखी जाती है। 26 साल की उम्र तक प्रेगनेंसी प्लान करना सही रहता है यह जच्चा और बच्चा दोनों के लिए बेहतर है। हाई रिस्क प्रेगनेंसी डायबिटीज, ब्लड प्रेशर,एनीमिया, मिसकैरेज हिस्ट्री, सिजेरियन हिस्ट्री और अन्य समस्याओं से देखी जाती है। और महिलाओं में मिसकैरेज जैसी समस्याएं देखी जाती है। सही समय पर जांच और ट्रीटमेंट कर मिसकैरेज की समस्या को कम किया जा सकता है।
सवाल. सर्वाइकल कैंसर क्या है यह किस वजह से होता है
जवाब. सर्वाइकल कैंसर को बच्चेदानी के मुंह का कैंसर भी कहा जाता है।इसके प्रति लोगों में जागरूकता की कमी के चलते इसमें बढ़ोतरी देखी जा रही है है। वहीं इस बीमारी का पैटर्न भी बिल्कुल अलग है यह बहुत स्लो प्रोग्रेस करती है लगभग 10 से 12 साल में इसका ट्यूमर की तरह दिखना शुरू होता है। वहीं इसके कोई शुरुआती लक्षण भी नहीं दिखाई देते तब तक बहुत ज्यादा देर हो चुकी होती है। इससे समस्या से बचने के लिए इंडियन गाइडलाइंस के अनुसार 25 साल की उम्र के बाद हर महिला को 3 साल में एक बार पैप टेस्ट करवाना चाहिए जिसकी मदद से से इसे प्री स्टेज में पकड़ कर डायग्नोस किया जा सकता है।
इसके हाई रिस्क फैक्टर की अगर बात की जाए तो जल्दी पीरियड आना, लेट मीनोपॉज होना, मल्टीपल चाइल्डबर्थ, मल्टीपल सेक्सुअल पार्टनर और अन्य कारणों की वजह से सामने आता है। इसके शुरुआती लक्षण साफ तौर पर नहीं दिखाई देते हैं इसलिए इसका बीच बीच में टेस्ट करवाना जरूरी है। इस बीमारी में बढ़ोतरी तो हुई है लेकिन एक सकारात्मक पहलू यह है कि पहले जो केस काफी लेट हमारे पास आते थे आजकल उन्हें टेस्ट के माध्यम से जल्दी पकड़ कर डायग्नोज करना संभव हो गया है। वही इसे वैक्सीन लगवा कर 98% तक प्रीवेंट किया जा सकता है।
सवाल. आपने अपनी मेडिकल फील्ड की पढ़ाई किस क्षेत्र में और कहां से पूरी की है
जवाब. मैंने अपनी एमबीबीएस की पढ़ाई गुरु तेग बहादुर हॉस्पिटल से की है वही एमएस ओब्स एंड गायनी की पढ़ाई शहर के प्रतिष्ठित एमजीएम मेडिकल कॉलेज से पूरी की है। इसी के साथ मैंने लेप्रोस्कोपिक सर्जरी में फैलोशिप प्रोग्राम में भी हिस्सा लिया है। वहीं मैंने गाइनेकोलॉजी से संबंधित अन्य प्राइवेट और गवर्नमेंट ट्रेनिंग प्रोग्राम में भी हिस्सा लेकर इस फील्ड में दक्षता हासिल की। वर्तमान में मैं एमजीएम मेडिकल कॉलेज और एमटीएच हॉस्पिटल में एसोसिएट प्रोफेसर और गायनी डिपार्टमेंट में कंसलटेंट के रूप में अपनी सेवाएं दे रही हूं।
सवाल. क्या लेप्रोस्कॉपी सर्जरी की मदद से गाइनेकोलॉजी से संबंधित समस्या का ट्रीटमेंट किया जाता है
जवाब. वर्तमान समय में लेप्रोस्कोपी सर्जरी का प्रचलन बहुत ज्यादा बढ़ गया है। यह ओवरी और यूटरस से संबंधित समस्या में ज्यादा यूज़फुल होती है। इसमें बहुत छोटे और बहुत कम मात्रा में होल किए जाते हैं और लेप्रोस्कोप डालकर बीमारी के बारे में पता लगाकर उसका ट्रीटमेंट किया जाता है। गाइनेकोलॉजी में इस मेथड का इस्तेमाल ओवेरियन टयूमर, प्रेग्नेसी नहीं ठहरने की प्रक्रिया, कैंसर से संबंधित समस्या और अन्य बीमारियों का पता लगाने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है जोकि बहुत यूज़फुल होता है।