उज्जैन 25 फरवरी: कलाएं हमारे जीवन का अंग हैं। विश्व में भारत की पहचान यहाँ की विविध कलाओं से हैं, यहाँ के साहित्य से है। इन्हें संवर्धित करना हम सभी का कर्त्तव्य है। अनेक प्रतिभावान कलाकार हमारे देश में हैं। उनकी प्रतिभा और कला को मंच पर लाना चाहिए। पारम्परिक कलाओं के संरक्षण के लिए देश में अनेक संस्थाएँ कार्यरत हैं, उनमें अकादमी का विशिष्ट स्थान है। अमरीश कुमार (वाराणसी) ने कालिदास संस्कृत अकादमी द्वारा आयोजित समरस कलाशिविर एवं कार्यशाला के शुभारम्भ पर ये विचार व्यक्त किए।
अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ मूर्तिकार राधाकिशन वाडिया ने कहा कि सीखने की कोई उम्र या सीमा नहीं होती है। आप में संस्कार हैं तब तक आप सीख सकते हैं। अकादमी कलाओं के संवर्धन का श्रेष्ठ मंच है। विशिष्ट अतिथि बलदेव वाघमारे (बैतूल) ने कहा कि अनेक वर्षों से इस विधा में मूर्ति शिल्पांकन कर रहे हैं। कालिदास साहित्य पर शिल्पांकन हमारा पहला अवसर है। हम कालिदास के अभिज्ञानशाकुन्तलम् का मूर्ति शिल्पांकन करते हुए अभिभूत हैं।
अतिथियों का स्वागत करते हुए अकादमी की उपनिदेशक डॉ.योगेश्वरी फिरोजिया ने कहा कि पारम्परिक कला एवं संरक्षण के क्षेत्र में अकादमी की विशिष्ट भूमिका है। हमने प्रथम बार धातु शिल्पांकन का संकल्प लिया, जो सिद्ध होने जा रहा है। यह शिविर 17 मार्च तक प्रतिदिन प्रातः 10.30 से दोपहर 1.30 तक एवं दोपहर 2.30 से सायं 5.30 तक अवलोकनार्थ रहेगा। इस कार्यशाला में भाग लेने के लिए प्रदेश के 30 से अधिक प्रशिक्षुओं ने पंजीयन करवाया है। कार्यक्रम का संचालन एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ.सन्तोष पण्ड्या ने किया। अतिथियों ने शिविर के कलाकारों का स्वागत किया। इस अवसर पर डॉ.श्री कृष्ण जोशी, डॉ.शैलेन्द्र पाराशर, डॉ.आर.पी.शर्मा, डॉ.खरे सहित अनेक कलारसिक उपस्थित थे।