कैसे पाई है आजादी, यह बात हमेशा याद रहे, सुखदेव, भगतसिंह, राजगुरु की कुर्बानी हमेशा याद रहे

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नमस्कार इंदौर,

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में आजादी के दीवाने, देश प्रेम की अद्भुत मिसाल पेश करने वाले कई महानायक मिल जाते हैं, किंतु जब भी युवाओं के जोश, जुनून एवं उत्साह की बात होती है या युवाओं के अदम्य साहस की बात होती है, तो निश्चित रूप से हम सभी के सामने सरदार भगत सिंह, सुखदेव एवं राजगुरु के चेहरे स्वत: ही प्रकट हो जाते हैं। भारत की आजादी का जुनून इन क्रांतिकारियों के सिर पर इस तरह सवार था, कि उन्होंने अपने जीवन का एकमात्र उद्देश्य भारत की आजादी को ही बना रखा था।

साथियों! भगत सिंह तो यहाँ तक कहते थे कि “मेरी दुल्हन तो आजादी है” यानी कि इन क्रांतिकारियों ने आजादी को ही एकमात्र साध्य बना लिया था, जिसकी प्राप्ति हेतु हर संभव प्रयास करने को ये तत्पर रहते थे। बाल्यावस्था से ही कई आंदोलनों से जुड़कर इन्होंने अंग्रेजों को खुली चुनौती देते हुए अंग्रेजी सत्ता का विरोध किया तथा भारत की आजादी के लिए होने वाले आंदोलनों से जुड़ गए।

1919 में अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों, रॉलेक्ट एक्ट तथा सत्यपाल व सैफुद्दीन की गिरफ्तारी के खिलाफ संपूर्ण भारत में विरोध प्रदर्शन हो रहे थे और जलियांवाला बाग में भी एक सभा का आयोजन किया गया था। सभा में शामिल नेता जब भाषण दे रहे थे, तब जनरल डायर वहां पहुंचकर अपने 90 ब्रिटिश सैनिकों के साथ जलियांवाला बाग को घेर लिया तथा वहाँ उपस्थित लोगों को चेतावनी दिए बिना ही गोलियां चलानी शुरू कर दी। इस हत्याकांड का समाचार सुनकर भगतसिंह लाहौर से अमृतसर पहुँचे। यहाँ उन्होंने देश पर मर-मिटने वाले बलिदानियों को सच्ची श्रद्धांजलि दी तथा जलियांवाला बाग़ की रक्त से भीगी मिट्टी को उन्होंने एक बोतल में रख लिया, ताकि उन्हें सदैव यह स्मरण रहे कि उन्हें अपने देश और देशवासियों के अपमान का बदला लेना है।

जलियांवाला बाग हत्याकांड के विरोधस्वरुप सम्पूर्ण देश आक्रोशित था। इसी आक्रोश के रूप में जब असहयोग आंदोलन प्रारम्भ हुआ, तो इस आन्दोलन से प्रभावित होकर भगतसिंह ने स्कूल त्याग दिया। असहयोग आंदोलन से प्रभावित युवाओं के लिए लाला लाजपत राय जी ने लाहौर में ‘नेशनल कॉलेज’ की स्थापना की थी। इसी कॉलेज में भगतसिंह ने भी प्रवेश लिया। ‘पंजाब नेशनल कॉलेज’ में उनकी देशभक्ति की भावना का व्यापक प्रसार हुआ। इसी कॉलेज में यशपाल, भगवतीचरण, सुखदेव, तीर्थराम, झण्डासिंह आदि क्रांतिकारियों से भगतसिंह का संपर्क हुआ। चंद्रशेखर आजाद जी के संपर्क में आने के बाद इनकी क्रांतिकारियों गतिविधियों का और अधिक विस्तार होता गया।

मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार की जाँच करने हेतु सात सदस्यीय दल भारत आया, कमीशन के सभी सदस्य अंग्रेज थे जो कि भारतीयों का बहुत बड़ा अपमान था, फलस्वरूप सम्पूर्ण देश में “साइमन गो बेक” के नारे के साथ साइमन कमीशन का विरोध किया जाने लगा। साइमन कमीशन के विरोध करते हुए पुलिस की लाठी से घायल होकर लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई। इन युवा क्रांतिकारियों ने आदरणीय लाला जी की शोक सभा में इस बात की शपथ ली कि इनकी मृत्यु के जिम्मेदार अधिकारी जेम्स ए स्कॉट का वध करके लाला जी की हत्या के प्रतिशोध को पूरा करेंगे। इसी प्रतिशोध के रूप में उन्होंने गलत पहचान के चलते स्कॉट की जगह अंग्रेज अधिकारी सांडर्स का वध किया तथा अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों, अपने हक की आवाज को बुलंद करने के लिए केंद्रीय असेंबली में बम फेंका।

बम फेंकने का एकमात्र उद्देश्य अंग्रेजी सत्ता को उनके द्वारा किए जा रहे जुल्मों/अत्याचारों के बारे में बताना तथा भारत पर हो रहे अत्याचार को मीडिया के माध्यम से आम जनता तक प्रेषित करना था। अपने इस मकसद में यह युवा क्रांतिकारी कामयाब रहे, इसी कारण लाखों लोगों का जन समर्थन इन्हें प्राप्त हुआ। 23 मार्च 1931 को इन क्रांतिकारियों को अंग्रेजी सत्ता ने फांसी के फंदे पर चढ़ा दिया, किंतु सरदार भगत सिंह, सुखदेव एवं राजगुरु यह कोई व्यक्ति नहीं है बल्कि यह व्यक्तित्व है, जो अजर-अमर है। इनके विचार कहीं ना कहीं हम सभी के मन में क्रांति का भाव तथा देश के लिए सम्मान का भाव पैदा करते रहते हैं।

साथियों! इन्हीं राष्ट्र नायकों के सम्मान हेतु विगत 20 वर्षों से संस्था संघमित्र द्वारा 23 मार्च को मशाल यात्रा का आयोजन किया जा रहा है। इस वर्ष भी दिनांक 23 मार्च को शाम 6:00 बजे फूटी कोठी चौराहा से लेकर महाराणा प्रताप चौराहे तक भव्य यात्रा का आयोजन कर इन राष्ट्र नायकों के योगदानों को याद किया जाएगा। मैं आप सभी को इस मशाल यात्रा हेतु सादर आमंत्रित करता हूँ। हमारे महान क्रांतिकारियों को सम्मान देने के लिए आप भी इस मशाल यात्रा का हिस्सा बने तथा देश को समृद्ध बनाने का इस मशाल यात्रा से जुड़कर संकल्प लें।

इन्हीं शुभकामनाओं के साथ।

जयहिंद!

आपका मित्र

पुष्यमित्र भार्गव
महापौर, इंदौर