हिंदी पत्रकारिता का संकट – 4
अर्जुन राठौर
इसमें कोई दो मत नहीं है कि कोरोना कॉल पत्रकारों के लिए बेहद दुखद रहा हजारों पत्रकारों की नौकरियां चली गई उनके वेतन काट लिए गए । मीडिया विशेषज्ञ बताते हैं कि पत्रकारिता और पत्रकारों को सबसे ज्यादा नुकसान कोरोना काल में पहुंचा लॉकडाउन के 2 महीनों में तो हिंदी के अखबारों और पत्रिकाओं के वितरण की ही सबसे बड़ी समस्या खड़ी हो गई पूरे देश के आवागमन के साधन बंद हो गए थे और लॉक डाउन के बाद भी अखबारों की हालत में कोई सुधार नहीं आया ।
व्यापार धंधे ठप होने के कारण विज्ञापन की रेवेन्यू पर भी असर पड़ा और देखते ही देखते अखबारों का घाटा लगातार बढ़ता चला गया अखबार मालिकों ने भी अपना घाटा कम करने के लिए निहायत बेरहमी के साथ पत्रकारों को नौकरी से निकाला कुछ अखबारों ने वेतन आधे कर दिए कुल मिलाकर अखबार मालिकों को अपना घाटा कम करने के लिए यही मुनासिब लगा कि स्टाफ को कम कर दिया जाए इसका नतीजा यह निकला कि देश के बड़े प्रतिष्ठानों सहित अनेक छोटे संस्थानों ने भी पत्रकारों की बड़े पैमाने पर छंटनी शुरू कर दी जो पत्रकार 40,000 से लेकर ₹60000 तक का वेतन पाते थे जब उनकी नौकरी गई तो उनके पास 5000 की नौकरी देने वाला भी कोई नहीं बचा ।
ऐसे कई उदाहरण सामने आए जब पत्रकारों के लिए जीवन यापन करना ही कठिन हो गया अब सवाल इस बात का है कि अखबार मालिकों ने ऐसा क्यों किया ? अखबार मालिकों के लिए ऐसा करना बेहद आसान इसलिए था ताकि हर महीने होने वाले रनिंग खर्चों को कम किया जाए इसी नीति पर चलते हुए पत्रकारों की नौकरी ले ली गई प्रेस काउंसिल से लेकर सरकार तक की तरफ से बेरोजगार हुए पत्रकारों को कोई मदद नहीं मिली मीडिया संस्थानों में वैसे भी पत्रकारों की नौकरियां बेहद असुरक्षित होती है और ऐसे में कोरोना काल ने तो कहर बरपा दिया ।
अब सवाल इस बात का है कि आने वाले समय में जो युवा पत्रकार पत्रकारिता को अपना पेशा बनाना चाहते हैं वे इन हालातों को देखते हुए क्या अपने करियर को दांव पर लगाएंगे ? देश के कई वरिष्ठ पत्रकार जो लंबा अनुभव रखते हैं आज हालत यह है कि उन्हें नौकरी देने के लिए कोई तैयार नहीं है ऐसे पत्रकार जो कि 50 साल की उम्र के आसपास पहुंच चुके हैं वे भी बेरोजगार कर दिए गए अब सवाल यह है कि वे क्या करें अपनी रोजी रोटी कैसे चलाएं ?
निश्चित रूप से कोरोना कॉल ने पूरे मीडिया जगत को हिला कर रख दिया ।अखबार मालिकों की बात समझे तो पता चलता है कि वे भी पत्रकारों की नौकरी बनाए रखने के लिए अतिरिक्त पैसा कहां से लाते और दूसरी बात यह है कि उन्हें तो कोरोना के बहाने तमाम ऐसे सीनियर पत्रकारों को नौकरी से बाहर निकालने का मौका मिल गया जिन्हें वे निकाल नहीं पा रहे थे उनके लिए एक सबसे अच्छा विकल्प यह खड़ा हो गया कि जिस वरिष्ठ पत्रकार को वे 50,000 दे रहे थे अब ट्रेनी पत्रकार उन्हें मात्र 5 से 10 हजार में ही मिल जाएगा जाहिर है कि कोरोना काल का मीडिया संस्थानों ने जमकर फायदा उठाया ।