धर्म के नाम पर कई हम अपने आप को धोखा तो नहीं दे रहे

Deepak Meena
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MP News(राजेश राठौर): जन्म से लेकर मृत्यु तक धर्म का मनुष्य को क्या जानवरों का भी सीधा संबंध रहता है, लेकिन जानवर अपनी हद में रहते हैं, और मनुष्य अपने आप को स्वतंत्र मानकर सारी हदें पार कर देता है। जिस तरह से धर्म को लेकर पूरे देश में माहौल बना हुआ है। वह वाकई हमारी राष्ट्रीयता व संस्कृति का परिचायक है। हमें अपने अपने धर्म में बिल्कुल विश्वास भी करना चाहिए, लेकिन इसके साथ-साथ लोग यह देखना भूल जाते हैं कि कौन धर्म के नाम पर अंधविश्वास फैला रहा है, पैसे कमा रहा है, या शुद्ध रूप से कहे तो बेवकूफ बना रहा है। जब से धर्म के जरिए धंधा करने का फार्मूला तथाकथित साधु-संतों ने शुरू किया। तब से इस बात को बहुत ज्यादा ताकत मिली।

ईश्वर कण कण में समाहित है, लेकिन अब हम देखते हैं कि जिस तरह से साधु संतों ने देश के लोगों को मूर्ख बनाने का जो सिस्टम बना लिया है। वह भारत के भविष्य के लिए एक नई चुनौती और खतरा भी है। अभी ताजा उदाहरण पंडित प्रदीप मिश्रा का है। अपने निजी सीहोर के कुब्रेश्वर धाम में जिस तरह से लोगों को रुद्राक्ष के नाम पर लो लाखों लोगों की भीड़ जुटाई। उसने लोगों की समझ पर सबसे बड़ा सवाल उठाया है। रुद्राक्ष असली है या नकली इसकी जांच तो कोई वैज्ञानिक तरीके से होती नहीं। सबके अपने-अपने तर्क और कुतर्क है। जिस तरीके से लाखों लोग किसी साधु महात्मा के पास जाकर अपनी हर पीड़ा को खत्म करने की बात सोचता है। बस यही से मनुष्य के खुद को धोखा देने की शुरुआत हो जाती है।

जब ईश्वर आस्था और विश्वास का मामला है, तो फिर हमें किसी और के पास जाने की क्या जरूरत है। क्या हम अपने घर में भगवान रूपी माता पिता की सेवा नहीं कर सकते। क्या हम अपने घर में बने मंदिर में पूजा करके ईश्वर की प्रार्थना नहीं कर सकते। कौन सी किताब में और किस भगवान ने यह कहा कि मेरे नाम पर जो दुकान चला रहे हैं। उनके पास जाकर अपनी समस्या हल कर लेना। यदि साधु महात्मा के पास वाकई शक्ति होती तो क्या वह किसी की मौत को रोक सकते हैं। या किसी की मौत की तारीख और समय बता सकते हैं। जो ज्योतिष और पंडित अपना खुद का भविष्य नहीं जानते उनके भरोसे हम आखिर क्यों रहते हैं। आसाराम बापू जैसे कई साधु संत जेल की हवा खा रहे हैं, लेकिन अंधविश्वास वाली जनता अपने आप को धोखा देने से बाज नहीं आ रही। जितनी गलती पंडित प्रदीप मिश्रा की है, उससे सौ गुना ज्यादा गलती आम जनता की है।

पंडित मिश्रा ने किसी को जबरदस्ती तो सीहोर बुलाया नहीं। यदि कोई व्यक्ति कहता है कि मैं तुम्हारे दुख-सुख में बदल दूंगा। उस पर अंधविश्वासी जनता आखिर भरोसा कैसे कर लेती है। हिंदुस्तान की जनता आज भी अपनी समझदारी का परिचय क्यों नहीं दे पा रही है। इसका सबसे बड़ा कारण है कि ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी पचास से ज्यादा लोग पढ़े लिखे नहीं है। इन लोगों के कारण धर्म की दुकान बहुत तेजी से चल रही है। करोड़ों रुपए की कार और आलीशान कोठीनुमा आश्रम में रहने वाले साधु संत आखिर समाज को कैसे बदल देंगे। साधु संत खुलेआम धोखा दे रहे हैं, और अंधविश्वासी जनता इस धोखे में अपने आप को शामिल कर रही है, क्योंकि जनता को आप लाख समझा दो साधु संतों की बात में मत आना, तो वह जवाब देते हैं कि तुम अधर्मी हो। अंधविश्वासी धोखे में आने वाली जनता समझाने वाले को तो अधर्मी और न जाने क्या-क्या बोल देती है, लेकिन यह जनता भारत के भविष्य के विजन को समाप्त करने में लगी है। आई टी से लेकर विज्ञान के क्षेत्र में देश के होनहार लोगों ने जिस तरीके से शिखर पर जाकर सफलता प्राप्त की है। उनको यह अंधविश्वासी लोग चुनौती देने में लगे हैं।

आखिर क्या कारण है कि विज्ञान के इस युग में भी अंधविश्वासी लोग धोखेबाज साधु-संतों के पास लाखों की संख्या में पहुंच जाते हैं। पंडित प्रदीप मिश्रा ने यदि जबरदस्ती नहीं बुलाया तो लोगों को वहां जाने की क्या जरूरत है। क्या लोगों को यह बात पता नहीं है कि हम आ जाएंगे तो ट्रैफिक जाम होगा। लाखों लोगों के ठहरने का इंतजाम कैसे होगा। भूख प्यास से कैसे निपटेंगे। अंधविश्वासी जनता पर अब मुझे दया नहीं गुस्सा आ रहा है कि यह लोग दो चार साल के बच्चों को लेकर लाखों लोगों के हुजूम में शामिल क्यों हो जाते हैं। क्या प्रदीप मिश्रा ही इस भीड़ के लिए जिम्मेदार है। ऐसा बिल्कुल भी नहीं है, क्योंकि प्रदीप मिश्रा लाख लोगों को बुलाए लेकिन यदि लोग अंधविश्वासी नहीं होंगे तो फिर प्रदीप मिश्रा के यहां लाखों लोगों की भीड़ की बजाए कभी उड़ते हुए दिखाई देंगे। जब तक आम जनता इन साधु-संतों को ठिकाने नहीं लगाएगी। तब तक यह सारे साधु संत मूर्ख बनाते रहेंगे। कोई भी मंदिर में कभी भगवान किसी को आवाज देकर नहीं बुलाते। कोई साधु संत अंधविश्वासीयों को जबरदस्ती अपने आश्रम नहीं बुलाता।

जब हर धर्म में कहा गया है, कि मानव सेवा सबसे बड़ी सेवा है। तो क्यों ना यह अंधविश्वासी जनता इस बात का संकल्प लें कि हम तब तक चुप नहीं बैठेंगे जब तक इस देश की जनता साक्षर हो जाएगी। आम जनता को आखिर कौन और कैसे समझाएगा कि वह अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने का काम कब तक करेंगे। परीक्षा में फेल होने पर अपने बच्चों के फेवर में बोलने वाले ऐसे ही अंधविश्वासी लोग होते हैं। जो यह कहते हैं कि मेरे बच्चे ने मेहनत तो बहुत की पर उसकी किस्मत खराब है। किस्मत लिखने वाला ही यदि अपनी किस्मत खराब करेगा। तो यदि वाकई साक्षात ईश्वर भी यहां पर आ जाए तो ऐसे लोगों को कभी फेल होने के बाद भी पास नहीं कर सकते। प्रैक्टिकल बात यह है कि हमें अपने खुद के कर्मों पर भरोसा करना चाहिए।

हमें भगवान की भक्ति और श्रद्धा पूरी ताकत और भक्ती के साथ करना चाहिए, लेकिन उसके भी मापदंड हैं। उसकी भी कोई सीमा है। उसका भी कोई तरीका है। प्रदीप मिश्रा जैसे साधु संत पनपते रहेंगे और मूर्ख जनता खुद कर्म करने की बजाय इन धोखेबाज साधु संतों के पास जाते रहेंगे। लोगों को समय रहते हुए जागना होगा। उनको सोचना होगा कि उनका असली भगवान कर्म है। उनके असली भगवान माता-पिता हैं। उनके असली भगवान उनके घर में बैठे हुए मंदिर में है। कब तक अंधविश्वासी जनता भीड़ की जानकारी होने के बावजूद भीड़ का हिस्सा बनकर जाती रहेगी। तब तक धार्मिक स्थलों पर होने वाले आयोजनों में लाखों लोग न केवल जाएंगे, बल्कि अव्यस्था के कारण बेमौत मरेंगे भी।
अब अगले रविवार को मुलाकात होगी।