नितिनमोहन शर्मा। शहर के एक कोने में पत्नी की बेवफाई से एक आत्महत्या हुई। मरने वाला नोजवान था। एक 11 साल का मासूम बेटा भी। मरने वाले ने दो पन्नो का सुसाइड नोट भी छोड़ा। नोट में लिखी बाते किसी भी संवेदनशील व्यक्ति को अंदर तक हिला दे। लेकिन क्या फर्क पड़ता है? अखबार के किसी पन्ने पर जैसे ये घटना सिमट गई, वैसे शहर को भी हजम हो गईं। किसी की मौत से अब किसी दूसरे का क्या सरोकार? एक घटना घटी। सुर्खियों में आई। सनसनी बनी और सबने पड़ ली। शहर फिर अपनी गति से चलने लगा। किसी को कोई फर्क नही पड़ा। सिवाय उस मासूम 11 साल के बच्चे के, जिसके सिर से उसे खूब प्यार करने वाला पिता का साया उठ गया। माँ की बेवफ़ाई की कीमत उसने पिता को खोकर चुकाई।
जिस व्यक्ति की वजह से 11 साल के मासूम के सिर से पिता का साया उठा, वो भाजपा नेता हैं। कृष्णा राठौर। मावा वाला उसका तख़ल्लुस है। हिंदूवादी नेता के रूप में उपनाम भी हैं। साथ है प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान। प्रदेश अध्यक्ष वी डी शर्मा। उच्च शिक्षा मंत्री मोहन यादव। राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय। विधायक रमेश मेंदोला। सभी नेताओं के साथ इस कथित नेता के बहुत आत्मीयता वाले फोटो भी हैं। एक फोटो में वो प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का हाथ पकड़कर अपनी तरफ खींच रहा है और उसकी इस हरकत साधना सिंह नाराजगी की मुद्रा में हैं। एक फोटो में वो ऐसे ही हाथ थामे उच्च शिक्षा मंत्री मोहन यादव के संग हैं। कैलाश विजयवर्गीय और मेंदोला के साथ भी बहुत आत्मीयता वाले फोटो भी सामने आये। ये सब फोटो आरोपी के फेसबुक अकाउंट पर भी हैं।
कथित भाजपा नेता का स्टेटस बता रहा है कि वो भाजपा की पिछड़ा वर्ग विंग में प्रदेश स्तर का पदाधिकारी है। राष्ट्रीय अटल सेना का भी वो स्वयम का मुखिया बता रहा है और पँडित श्यामा प्रसाद मुखर्जी विचार मंच का भी कर्ताधर्ता बता रहा हैं। नई भाजपा के नेता “सम्बंध” बनाने में इतनी जल्दी में है कि वे ये भी नही देखते की भाजपा में अटल सेना का कब गठन हुआ? हुआ भी है कि केवल कागज पर ये सेना है? श्यामाप्रसाद के विचारों का मंच कब बना? अब तो स्वयम भाजपा भी मुखर्जी को जयंती और पुण्यतिथि पर ही याद करती है तो फिर ये ऐसा कैसा बिरला नेता आ गया जो श्यामाप्रसाद के विचारों को आज भी जी रहा है? सत्ता के नजदीक जाने और बने रहने के लिए गढ़े गए संगठन कथित नेताओ की प्रोफाइल को मजबूत करती हैं। लिहाजा भाजपा में अब चलन में हैं।
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अब अटल जी तो है नही। न श्यामाप्रसाद जी। न उनके समय मे ये चलन था। न वे लोग इस तरह के लोगो के नजदीक थे। न नजदीक आने देते थे। पर अब नई भाजपा में वो ही बड़ा नेता, जिसके बड़े नेताओं के साथ गलबहियां वाले सम्बंध हैं। फिर बड़े नेता ये भी नही देखते की गले मे बांहे डालने वाला कौन है? क्या करता है? क्या पृष्ठभूमि है? और इतना क्यो चिपक रहा है?
‘ सत्ता वाली भाजपा’ में ऐसे तत्वों की तेजी से भरमार आई है, जो विपक्ष वाली भाजपा में दूर दूर तक नजर नही आते थे। ये सत्ता के साथ अचानक प्रकट हुए और देखते ही देखते उन सब नेताओ कार्यकर्ताओं से आगे निकल गए, जो बरसो से पार्टी के लिए मर-खप रहे हैं। बड़े नेताओं का प्रश्रय भी हाथों हाथ मिल जाता हैं। क्योकि ऐसे तत्व उनको “साधने” की कला से पारंगत हो गए हैं कि कहाँ पर ” साधना ” करने से उनको सर्वसिद्धि मिलेगी। इन्दौर में भी ऐसे नेता है जो इसी तरह की “साधना” कर न केवल समर्पित भाजपाइयों को पीछे छोड़ आगे निकल गए बल्कि हर ” काला-पिला” भी बेजीझक कर रहे हैं। सत्ता के शीर्ष से सम्बंध जो हैं और रणनीति के तहत समय समय पर ऐसे सम्बन्धो का बखान भी करते रहते है ताकि शासन प्रशासन पर एक अपरोक्ष दबाव बना रहे। उनके हर काले पीले कारनामो पर। और पार्टी का स्थानीय नेतृत्व भी समझे कि अगले की पकड़ तो सीधे सीएम हाउस या प्रदेश अध्यक्ष से हैं।
कृष्णा भी इसी प्रजाति का नेता हैं। उसका सोशल मीडिया अकाउंट चीख चीख कर ये ही कह रहा हैं। अब सवाल ये है कि ऐसे अवसरवादियों की हिम्मत कैसे हो जाती है भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को अपनी जेब मे जमा बताने की? किसके जरिये ये बड़े नेता तक जाते है? और ऐसा क्या ” परोसते ” है कि बड़ा नेता झट से गलबहियां स्वीकार कर लेता हैं। ये भी नही देखता कि ये कही मेरी ओर मेरे संगठन, पार्टी की इज़्ज़त से तो नही खेल जाएगा?
शिवराज सिंह चौहान को पता है क्या कि उनके साथ नजदीकी दिखाने वाले ये अवसरवादी नेता उनकी पीठ पलटते ही क्या गुल खिलाते हैं? किन किन जमीन के धंधों में ” माण्डवली” करते है और कौन कौन से ” मेटर” निपटाते हैं? ट्रांसफर, पोस्टिंग, टेंडर, ठेके की फ़ाइल लेकर कैसे इन्दौर भौपाल एक किये हुए है? विजयवर्गीय ओर मेंदोला ये विचारते है कि जो गले लगकर फोटो खिंचवा रहा है, वो बाद में इन फोटो के जरिये दबाव बनाकर क्या गुल खिला रहा है? उच्च शिक्षा मंत्री यादव या प्रदेश अध्यक्ष शर्मा ने पता लगाया कि बार बार भोपाल आ रहे इस कथित नेता का मकसद क्या है?
दागदार चेहरे और सियासत का साथ। उसके बाद सब कुछ करने की छूट। बड़े नेताओं से नजदीकी। उनके साथ अंतरंग सम्बन्धो का सोशल मीडिया पर प्रदर्शन। ये ही तो चल रहा है इन दिनों सत्ता वाली भाजपा में। पर किसे फिक्र? मरने वाला मर गया। रोने वाले रोते रहेंगे। कृष्णा राठौर की प्रोफाइल की आगे सब कुछ बोना हैं। कानून की गति, प्रगति भी घटना के सुर्खियों में रहने तक नजर आयेगीं। फिर किसी दिन खबर आएगी की कृष्णा को विरोधियों ने फंसाया था ताकि शिवराज, वीडी, कैलाश, रमेश, मोहन आदि का नाम बदनाम हो। सब स्वीकार भी लेंगे। क्योंकि ये ही चलन हैं। बस..उम्र भर वो 11 साल का मासूम ये स्वीकार नही पायेगा कि उसके पिता की मौत का जिम्मेदार कृष्ना राठौर मावा वाला नही था…!!